भ्रष्टाचार को लेकर देश में कोई कुलबुलाहट हो या न हो पर सरकार और विपक्ष में ज़रूर है. राष्ट्रमंडल खेल से लेकर टू-जी स्पेक्ट्रम तक दलाली और घोटालों को लेकर कई नए खुलासे हुए. अरब नहीं खरबों रुपये का चुना लगा. इतना हंगामा अब किया जा रहा है. संसद को विपक्ष ने चलने नहीं दिया. यह सब हंगामा बेकार ही जायेगा. सरकार जेपीसी बनाने पर राज़ी नहीं है. मेरा तो सवाल ये है कि कोई जाँच कर ले नतीजा कुछ नहीं आने वाला है. हमें यह सच कबूल लेना चहिये कि हमारा मुल्क एक भ्रष्टाचार प्रधान देश है. यहाँ कानून का पालन करने वाले को सजा और घोटाला करने वालों को इनाम मिलता है. मधु कोड़ा से लेकर ए राजा तक. जिस मुल्क के प्रधानमंत्री पर घोटाले का आरोप लगा हो (बोफोर्स) उसके बारे में इन सब मसलों पर क्या बात की जाये. आजादी के बाद से लेकर देश को विकसित बनाने तक इन सबके नाम न जाने कितने घोटाले हुए होंगे किसी को सही आंकड़ा भी पता नहीं होगा. दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं होता. अमूमन हाशिए पर वे ही धकेले जाते हैं, जहां से प्रतिरोध की आशंका कम होती है. तकरीबन तमाम देशों की सरकारें कॉरपोरेट जगत एवं ऊंचे तबके पर बैठे लोगों को नाराज करने की स्थिति में नहीं होतीं लेकिन आम जनता को ठगना आसान होता है. मसलन, भारत सरकार यहां के उद्योग जगत को लाखों करोड़ रुपये की रियायत चुटकी में दे देती है, जिसका जिक्र शायद ही कहीं होता है. टू जी स्पेक्ट्रम के मामले में भी यही हुआ. पहले तो मनमोहन सिंह ने अपनी मर्जी के खिलाफ राजा को मंत्री बनाया और अब वही राजा मनमोहन की प्रजा के लिए एक नासूर बन गए हैं. फिर भी हिम्मत की दाद तो दीजिये कि कोई ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है. भारत में एक सबसे अनूठी बात यह है कि किसी भी स्तर पर...चाहे कोई मंत्री हो या मामूली सा अर्दली अगर कोई अच्छा काम होता है तो सभी क्रेडिट लेना चाहते है. भले ही वह काम उन्होंने नहीं किया पर क्रेडिट लेने से चूकते नहीं. पर, कोई गलत काम भले ही उन्होंने ही किया पर उसकी हांडी वह दूसरो पर ही फोड़ते हैं. भारत चलता है सिंड्रोम से ग्रस्त हैं. अब राष्ट्रमंडल खेल का मामला ही ले लीजिये कितना हो हल्ला हुआ था, लेकिन जब खेल ख़त्म हुआ तो सब कुछ हल्ला भी कहीं दब के रह गया. यदि हमारे राजनीतिज्ञ और देश के उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों सहित हम स्वयं अपनी जिम्मेदारियों को समझें और उनका पालन ईमानदारी पूर्वक करे तो इस देश को महाशक्ति बनने से कोई भी नहीं रोक सकता है. लेकिन यहाँ तो मामला ही उलट है सभी को बस एक अवसर की तलाश होती है. मौका मिला नहीं कि बस सब कुछ हसोथ के रख लिए. कलमाड़ी को बलि का बकरा बनाना ठीक नहीं है. सब कुछ पीएमओ और दस जनपथ की नाक के नीचे हो रहा था. इसके पीछे कलमाड़ी जी का हाथ नहीं है और भी कई लोग इसके पीछे हैं. परदा उठना जरूरी है. और यह सच्चाई सामने आनी चाहिए. किसी भी कीमत पर, लेकिन मेरा यकीं मानिये अभी तक जितनी जाँच चल रही है सब पूरे मामले की लीपापोती करने की कवायद है. चाहे वह राष्ट्रमंडल खेल का हो या टू जी.
जय जय हो, सब लुट जायेगा, तब तो लूट बंद हो जायेगी।
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