झूठ का उदाहरणशास्त्र

बात अब उदाहरणों की. पिछले लेख में मैंने झूठ का तर्क-कुतर्क लिखा. लोग क्यों झूठ बोलते हैं और उनका इरादा क्या होता है? मेरे एक मित्र ने कहा, आपने जो लिखा वह तो सही था लेकिन उदहारण से समझा देते तो सोने में सुहागा वाली कहावत साबित हो जाती. मैंने उसे बताया, यदि मैं ऐसे करता हूँ तो मेरा संबंध कई लोगों से पटरी से उतर सकता है. फिर भी, मैंने सोचा अगर अभी से ही संबंधों के बारे में सोचने लगूं तो हुआ. यह उम्र की युवा अवस्था है. और मुझे याद आ रही है एक कविता जो बचपन में हमें पढ़ाई जाती थी. 'झूठ का तर्क-कुतर्क' पर उदहारण लिखने से पहले मैं उससे आपको वाकिफ कराना चाहता हूँ.
हवा हूँ हवा मैं, बसंती हवा हूँ,
सुनो बात मेरी, अनोखी हवा हूँ,
बड़ी बावली हूँ, बड़ी मस्त मौला,
नहीं कुछ फिकर है, बड़ी ही निडर हूँ...
अब बात शुरू करते हैं, दरअसल एक बार हुआ यह कि मैं अपने ऑफिस जल्दी पहुँच गया था. वजह मुझे जल्दी आने को कहा गया, क्योंकि हमारे एक साथी अवकाश पर थे. इसके दो दिन पहले तक मैंने भी छुट्टी ली थी. मेरे साथी अकेले पड़ गए. तो उस दिन मैं जब पहुंचा तो काफी खबरें मैंने बनाई. वो भाई साहब अपना व्यक्तिगत काम करते रहे. जब पेज पर खबर लगाने की बरी आयी तो. मुझे भी खबर की ज़रुरत पड़ी. मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा मैंने 'यह' खबर बनाई है तुम लगा लो. मैंने लगा तो लिया लेकिन जिस खबर की बात हो रही थी, वह उनकी नहीं बल्कि, मेरी ही बनाई थी. इन भाई साहब को समस्या यह है कि इन्हें काम का क्रेडिट लेने की बीमारी है. इस चक्कर में यह भूल गए कि, झूठ भी बोलूँ तो किसके सामने. खैर मैंने उनसे कुछ नहीं कहा, नहीं तो उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ती. वैसे भी उस वक़्त मेरा थोडा बुरा समय भी चल रहा था. तो कहना यह यह कि कुछ लोग दूसरों का हक मरने के लिए भी झूठ बोलते हैं. 
एक झूठ यह भी कि किसी को अपनी गलती की ज़िम्मेदारी लेने की लत नहीं होतो. हाँ, यह लत ही तो है. खैर, तो अपनी खामी को उस शक्श पर थोप देते हैं जो काम तो बहुत ईमानदारी से करता है, लेकिन थोड़ा दब्बू हो और किसी तरह के तिकरम में पड़ना नहीं चाहता हो. मुझे लगता मुझे लगता है यह एक उदहारण काफी है. एक बार में यदि एक ही पर पर कुल्हाड़ी मारी जाये तो ठीक है. दूसरे पर मरने से पहले पहले का घाव भरना भी तो चाहिए. नहीं तो अपंग को कोई नहीं पूछता और इस दुनिया में इंसान खुद पर जब तक निर्भर है तब तक वह सब की आँखों का चहेता है. जैसे ही वह पर निर्भर की रह पर चला उसे धकियाने वालों की संख्या भी बढ़ती जाएगी. चलते-चलते यह कि मैं भी झूठ बोलता हूँ. मैं कोई हरिश्चंद्र नहीं. लेकिन कोशिश होती है, उससे किसी का नुकसान न हो. कभी-कभी मकसद लोगों के चहरे पर मुस्कराहट देखना होता है. मैं भी इन्सान हूँ तो कभी कभी झूठ बोलने का मकसद मानवीय प्रकृति भी होती है.

9 comments:

  1. chandan ji aap ne jo likha hai vo bilkul 100% satya hai... our mere ko aap ka udharan bhi achcha laga... pata nahi kyon mere ko lagta hai ki meri soch aap se milti hai... aap ne ye sab badi hi sawdhani ke sath likha hai achcha laga... our aapne isme ek kavita ka bhi udharan diya achcha laga... pata nahi aisha hi kuch main bhi likhna chahta hoon lekin pata nahi kyon darta hoon.... aap ki kavita se himmat to milti hai lekin bhir bhi main nahi likh sakta mujhe pata hai ki agar maine likha to kuch jaror ulta ho jayega... kyon ki main banawti nahi likh sakta.... lekin aap ne achcha likha hai uske liye badhai.... our asha karta hoon ki aage our kuch likhte rahenge....

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  2. chandan ji aapki baten ruchikar hain aur satya bhi aakhir jhooth par lekh likhne chale aur sach ki rah par chale vah......

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  3. mere "kanoni gyan "blog par bhi aayen ......

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  4. बढ़िया ! आपने सच सच कहा कि आपने खबर बनाई है ... तो खबर बनाई भी जाति है ... great !

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  5. @indranilji shayad aap meri baat dhang se samjh nahin sake ya...aapne thik se lekh par dhyan nahin dega...khabren banana ek term hai newspaper me jiska matlab hota hai...koi khabar agency se aati hai usmen factual aur language ki kafi samsya hoti hai...to use news ke layak banana hi khabaren banana kahte hain......ummeed hai ab aap samjhenge........

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  6. एक झूठ यह भी कि किसी को अपनी गलती की ज़िम्मेदारी लेने की लत नहीं होतो. sahi kaha aapne lat to lat achhi post.

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  7. या कह लें कि उदाहरण का झूठशास्त्र।

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  8. @sunil ji vakai lat to lat hoti hai, @ pravin ji kah sakte hain lekin jhooth ka udaharanshastra hi rahne de to behtar hai kyon???????

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  9. nice....
    mere blog par bhi kabhi aaiye waqt nikal kar..
    Lyrics Mantra

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