कोविड-19 और चीन की शातिर कूटनीति पर भारी ताइवान की मास्क डिप्लोमेसी

चीन के वुहान से जन्मा कोरोना वायरस पूरी दुनिया में तबाही मचा रहा है। अभी तक 19 लाख से ज्यादा लोग पूरी दुनिया में इस महामारी की चपेट में हैं, जबकि 1 लाख 18 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन, चीन के बेहद करीब का देश ताइवान काफी पहले ही इस पर काबू पाने में कामयाब रहा है। ताइवान आबादी और संसाधनों के मामले में चीन ही नहीं, दुनिया के अधिकांश देशों के मुकाबले बेहद कमजोर है। उसके बावजूद कोरोना जैसी महामारी को इस देश ने काफी हद तक आगे बढ़ने से रोक दिया है। यहां आज की तारीख में 308 लोग संक्रमित हुए हैं, जिसमें से 109 लोग ठीक भी हो चुके हैं। सिर्फ 6 लोगों की ही मौत हुई है।
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आख़िर ऐसी क्या वजहें रहीं और उसने क्या उपाय किए, जिससे ताइवान को यह महामारी अपनी जकड़ में नहीं ले पाया। जबकि ताइवान विश्व स्वास्थ्य संगठन का सदस्य देश भी नहीं है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन जिस पर इस महामरी को लेकर चीन के पक्ष में काम करने का आरोप लग रहा है। तो इसके पीछे वजह यह है कि जब चीन में कोरोना की शुरुआत हुई, तभी ताइवान ने मास्क, टेस्ट, सैनिटाइजर और दूसरी जरूरी मेडिकल वस्तुओं को बनाने पर जोर देने लगा था। उसने डिजिटल थर्मामीटर से लेकर मास्क और वेंटिलेटर वगैरह के निर्यात पर भी बैन लगाया।
अब वह मास्क डिप्लोमेसी के जरिए वैश्विक परिदृश्य में अपनी मजबूत धमक या कूटनीतिक पहुंच साबित कर रहा है। हम जानते हैं कि कोरोना वायरस महामारी ने बुनियादी चिकित्सा उपकरणों और सामानों की सप्लाई को पूरी तरह से बदल दिया है। कई देशों में इस मुश्किल घड़ी में फेस मास्क, दस्ताने और गाउन जैसे महत्वपूर्ण सामानों की भारी कमी हो गई है। कई देश पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPE) के निर्यात प्रतिबंध लगा रहे हैं। वहीं कई देश इनके आयात के के लिए बेचैन हैं, क्योंकि वहां इसकी कमी की वजह से खतरा बढ़ता जा रहा है। मेडिकल जरूरतों की सप्लाई इससे पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कभी भी बाधित नहीं हुई, क्योंकि देश पहले अपना हित देख रहे हैं। इसकी वजह है कि इनका उत्पादन करने वाले देश खुद कोरोना वायरस महामारी की भारी चपेट में हैं। ताइवान इन उत्कृष्ट स्तर के मेडिकल मास्क का दुनिया के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में एक है। ताइवान उन चुनिंदा देशों में भी है, जिसने कोविड-19 से सफलतापूर्वक निपटा है। अब इसके पास इस अवसर का लाभ उठाने का एक दुर्लभ अवसर है कि वह अपने खिलाफ लंबे समय से चल रहे चीन विरोधी राजनीति का लाभ उठा सके। उसे अपने पत्ते सावधानी से खेलने होंगे। खासतौर पर अमेरिका के साथ।
ताइवान की आबादी सिर्फ 2.3 करोड़ है और वह चीन के बाद फेस मास्क का दूसरा सबसे बड़ा वैश्विक उत्पादक है। यानी दुनिया में चीन के बाद ताइवान ही सबसे अधिक फेस मास्क बनाता है। यह हर रोज तकरीबन 1.5 करोड़ मास्क का उत्पादन करता है। चूंकि दुनिया में अब इसी मांग बड़ी तेजी से बढ़ी है, तो यह एक दिन में 1.7 करोड़ मास्क का उत्पादन कर रहा है।
अमेरिका में अभी तक कोरोना वायरस से सबसे अधिक मौतें 23 हजार से ज्यादा हुई हैं और यहीं सबसे अधिक संक्रमित 5 लाख
87 हजार से अधिक लोग हैं। वह ताइवान के मास्क निर्यात का लाभ उठाने के लिए तैयार है, क्योंकि उसे अभी बड़ी बेसब्री से इसकी जरूरत है। मार्च में ताइवान ने अमेरिका को हर सप्ताह लगभग 100,000 सर्जिकल मास्क दान करने का वादा किया था। बदले में अमेरिका ने  ताइवान को 300,000 हाजमत सूट देने पर सहमत हुआ। इसके बाद ताइवान ने 1 अप्रैल को घोषणा की कि वह दुनिया के सबसे अधिक जरूरतमंद देशों को 1 करोड़ मास्क दान करेगा। इसमें अमेरिका के लिए अलग से उसने 20 लाख मास्क देने का वादा किया। इसी सप्ताह उसने अमेरिका को 400,000 मास्क दिए। पिछले कुछ दिनों में ताइवान ने अपने कूटनीतिक रूप से सहयोगी देशों के साथ-साथ इटली, स्पेन, फ्रांस, नीदरलैंड और यूनाइटेड किंगडम जैसे कोरोना से सबसे प्रभावित यूरोपीय देशों को मास्क और पीपीई दिए।
उधर, चीन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस बात को लेकर खूब आलोचना हुई कि उसे महामारी फैलने की शुरुआत में ही दुनिया को आगाह नहीं किया और मामले को दबाता रहा, जिससे आज यह महामारी घातक हो चुकी है। चीन इसकी काट के तौर पर एक अलग बहस छेड़ने की कोशिश करता रहा। इसने अमेरिका की तुलना में खुद को महामारी से सबसे प्रभावित यूरोपीय देशों का भरोसेमंद सहयोगी साबित करने की कोशिश की। इन प्रयासों के तहत उसने
पूरे यूरोप में चिकित्सा उपकरण, पीपीई और दवाइयां भेज रहा है। चीनी कंपनियां भी अपनी सरकार का समर्थन कर रही हैं। 
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ई-कॉमर्स के दिग्गज और अलीबाबा के सह-संस्थापक चीनी अरबपति जैक मा ने यूरोपीय देशों में 18 लाख फेस मास्क और 100,000 टेस्ट किट भेजने का वादा किया। चीनी कंपनी हुआवे ने भी यूरोप देशों के लिए इसी तरह के राहत पैकेजों की घोषणा की औऱ लाखों मास्क दान में दिए। चीन की कुछ छोटी-बड़ी कंपनियों ने अमेरिका में मेडिकल उफकरण भेजे, लेकिन अफ्रीकी और यूरोपीय देशों को भेजे जाने वाले मदद पैकेजों की तुलना में वह मामूली लगते हैं। चीन ने पूरे यूरोप में एक तरह से मानवीय मदद का प्रोपेगेंडा का खेल खेला है, लेकिन उसकी यह चाल अमेरिका के साथ सफल नहीं रही। अमेरिका ने चीनी कंपनियों जैसे हुवावे के कारोबार पर लगाम लगाने की कोशिश की। इस पर कहा गया कि अगर अमेरिका इस तरह के कदम उठाता है, तो चीन मौजूदा समय में बहुत जरूरी फेस मास्क की आपूर्ति अमेरिका को बंद कर सकता है। चीन एक तरफ मास्क डिप्लेमेसी का कूटनीतिक खेल खेल रहा है, तो इसी बीच कुछ देशों ने चीन में बने मेडिकल इक्विपमेंट और मास्क की गुणवत्ता पर सवाल उठाने शुरू कर दिया है। नीदरलैंड ने चीन से आयात किए गए हजारों मास्क को लौटा दिया है। आगे के आयात पर भी रोक लगा दी है, क्योंकि उनकी गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करते हैं। स्पेन और तुर्की सहित अन्य देशों ने भी चीनी कंपनियों के कोरोना वायरस की जांच के लिए रैपिड टेस्टिंग किट की शिकायत की है।
ऐसे में अमेरिका की मदद से ताइवान के पास खुद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से पेश करने का मौका आया है। वह भी ऐसे समय में जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से वह बाहर है, उसे चीन के दबाव में इस संगठन का सदस्या नहीं बनाया गया। इसके बावजूद ताइवान ने कोरोना वायरस पर काबू पाया है। दरअसल, डब्ल्यूएचओ की सदस्यता केवल उन देशों मिलती है, जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं। ताइवान को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता नहीं मिली है। कोरोना वायरस महामारी के बीच कनाडा, यूरोपीय संघ, जापान और अमेरिका ने WHO से ताइवान को सदस्यता देने की अपील की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कोरोना वायरस पर आपातकालीन बैठकों और महत्वपूर्ण ब्रीफिंग से ताइवान को दूर रखा गया।
डब्ल्यूएचओ इस महामारी से निपटने की कोशिशों को लेकर लगातार चीन की तारीफ करता रहा। इससे कुछ देशों ने उस पर चीन का पक्षधर होने का आरोप भी लगाया। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने तो यहां तक कह दिया कि डब्ल्यूएचओ को इस महामारी में पूरी तरह से चीन-केंद्रितहै। ट्रंप ने इसकी फंडिंग रोकने की भी धमकी दी। इस पर डब्ल्यूएचओ के महासचिव ने ट्रंप को इस महामारी का राजनीतिकरण न करने की अपील की। टेड्रोस ने ताइवान के नेताओं पर नस्लवादी टिप्पणी और हत्या की धमकी देने का भी आरोप लगाया। ताइवान ने उनके दावे को सिरे से खारिज कर दिया।
ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका और ताइवान के बीच संबंध पहले की ही तरह मजबूत रहे हैं और कहा जाता है कि ट्रंप अमेरिकी इतिहास में शुरू से सबसे अधिक ताइवान समर्थकों में एक माने जाते हैं। अब कोरोनो वायरस संकट ने दोनों को और भी करीब ला दिया है। अमेरिकी-चीन के तनावों के बीच ट्रप ने 26 मार्च को ताइवान अलाइज इंटरनैशनल प्रोटेक्शन ऐंड अन्हांसमेंट इनिशिएटिव (TAIPEI) अधिनियम पर हस्ताक्षर किए। यह अधिनियम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ताइवान को अमेरिका का खुला समर्थन का प्रतीक है।
मौजूदा समय में चीन और अमेरिका के बीच तकरार बढ़ रही है, तो दूसरी तरफ ताइवान खुद को बेहतर स्थिति में ला रहा है। अब अमेरिका और ताइवान के बीच कोई मोहरा नहीं है। ताइवान खुद अपने बूते खड़ा हो रहा है।

कोरोना की टेस्टिंग में फिसड्डी भारत, दावे बड़े दर्शन छोटे


पिछले दिनों एक ख़बर आई कि भारत कोरोना वायरस के मामलों की बहुत कम टेस्टिंग कर रहा है। यह ठीक है कि लॉकडाउन जैसे कुछ फैसले भारत ने दुनिया के कई देशों की तुलना में पहले लिए, जिसका थोड़ा-बहुत फायदा वह अपने हक़ में बता सकता है। हालांकि, इस लॉकडाउन की वजह से कितनी बड़ी आबादी पलायन और भूख से लेकर तमाम तरह की दिक्कतों से जूझने को मजबूर हुई वह अलग कहानी है। तीन-चार दिन पहले एक खबर आई कि भारत प्रति 10 लाख बहुत ही कम लोगों की टेस्टिंग कर रहा है। यह आंकड़ा हर 10 लाख पर महज 102 था। यानी देश की 1 अरब 33 करोड़ आबादी को मानें, तो इसमें 10 लाख लोगों में से सिर्फ 102 लोगों की ही कोरोना की टेस्टिंग की जा रही है। पिछले दिनों कहीं पढ़ा कि भारत के जिन राज्यों ने सबसे ज्यादा टेस्टिंग की वहां कोरोना से मौत की दर कम है। उदाहरण के तौर पर, हर 100 केसों के हिसाब से देखें, तो मध्य प्रदेश में कोरोना से मृत्य दर 8 फीसदी है। इसी तरह, पंजाब और झारखंड में 7.7 फीसदी, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में 7.1 फीसदी, गुजरात में 6.9 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 4.7 फीसदी है।
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वहीं, हर 10 लाख की आबादी पर दिल्ली में सबसे ज्यादा 594 टेस्ट हो रहे हैं। इसके बाद  केरल में हर 10 लाख की आबादी पर 366, राजस्थान में 279, महाराष्ट्र में 274 और गोवा में 236 लोगों की कोरोना टेस्टिंग हो रही है। यह एक औसत आंकड़ा है। यह अलग बात है कि हम चीन की तरह मौतों के आंकड़ों को छिपाएं, तो फिर कहा ही क्या जाए। बिहार में तो टेस्टिंग न के बराबर हो रही है। फिर वहां तो कुछ डॉक्टरों का कहना है कि पॉजिटिव मामलों को भी आधिकारिक आंकड़ों से गायब कर दिया जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में भारत में जिस तेजी से कोरोना वायरस संक्रमण और मौतों के मामले बढ़े हैं और वह बतलाता है कि हम अभी भी बहुत कम टेस्ट कर रहे हैं। अगर यही हालात रहे, तो जिस तरह से इटली और स्पेन की हालत हुई वह हमारी भी हो सकती है।
हालांकि, स्पेन औऱ इटली में हालात धीरे-धीरे काबू में आ रहे हैं। इसकी वजह लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपाय तो हैं ही, लेकिन उसमें कोरोना टेस्टिंग का भी बहुत बड़ा योगदान है। इसी में भारत बहुत पिछड़ रहा है। अब आंकड़ों पर नजर डालें, तो ये देश और इनसे और भी छोटे-छोटे देश (आबादी के हिसाब से) हमसे टेस्टिंग में कहीं आगे हैं। अब अमेरिका को ही लें। अमेरिका की आबादी 32.82 करोड़ है और उसने अभी तक 27 लाख 81 हजार 460 लोगों की टेस्टिंग कर ली है। स्पेन हमसे आबादी में कहीं पीछे है। लगभग 4.69 करोड़ की आबादी वह देश कोरोना से बुरी तरह प्रभावित देशों में एक है। इसने अभी तक 3 लाख 55 हजार टेस्टिंग की है। इटली की आबादी 6.04 करोड़ है। कल तक यहां कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा मौतें हुई थीं। आज अमेरिका में मौतों की संख्या इससे ज्यादा हो चुकी है। इटली ने 10 लाख 10 हजार 193 टेस्ट किए हैं। यूरोप के जिन चार देशों में कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा तबाही मचाई है, उनमें फ्रांस भी है। इसकी आबादी 6.7 करोड़ है, जबकि यह 3 लाख 33 हजार से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग कर चुका है। जर्मनी में 1 लाख 26 हजार 921 केस आ चुके हैं। इसकी आबादी 8.3 करोड़ है और यहां 13 लाख 18 हजार के आसपास लोगों की टेस्टिंग की जा चुकी है। 
इनकी छोड़िए अपने एशिया में ही आते हैं। चीन के बाद ईरान एशिया का सबसे प्रभावित देश है। यहां 71 हजार 600 से ज्यादा केस संक्रमण के आए हैं और इसने 2 लाख 63 हजार से ज्यादा लोगों की अभी तक टेस्टिंग की है। तुर्की को ही ले लीजिए 8.2 करोड़ की आबादी वाले देश में कोरोना के लगभग 57 हजार मरीज हैं औऱ इसने 3 लाख 76 हजार सैंपल टेस्ट कर लिए हैं। उससे भी अचरज तो यह लगेगा कि 5.16 करोड़ की आबादी वाले दक्षिण कोरिया में 10 हजार 500 से कुछ ज्यादा ही मरीज हैं और यहां लगभग 215 लोगों की अभी तक मौत हुई है, लेकिन इसने 5 लाख 14 हजार से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग की है।

वहीं, भारत 1 अरब 33 करोड़ की आबादी वाला देश है। अमेरिका से इसकी आबादी 1 अरब अधिक है। दक्षिण कोरिया के बराबर केस सामने आ चुके हैं, लेकिन अभी तक टेस्टिंग सिर्फ 1 लाख 90 हजार के आसपास हुई है। अब इस पर भी हम ढिंढोरा पीटें कि हमारे यहां तो मामले भी कम आ रहे हैं। तो कम-से-कम दक्षिण कोरिया से ही सबक ले लें। या फिर रूस से ही ले लें। 14.65 करोड़ की आबादी वाले रूस में 15 हजार 700 से ज्यादा मामले आ चुके हैं और इसने कम मामलों के बावजूद 12 लाख से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग कर ली है। साफ मतलब है कि ज्यादा टेस्टिंग यानी मौतें कम। लेकिन, हम इसी में फिसड्डी साबित हो रहे हैं और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन नामक दवा को लेकर खामखां अपनी सीना चौड़ा कर रहे हैं। जबकि हमारा पूरा जोड़ अभी लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपायों के साथ टेस्टिंग पर होना चाहिए।

नोटः आंकड़े 12 अप्रैल तक के हैं।

कोविड-19, चीन और WHO चीफ की चालाकियां


चीन ने 7 अप्रैल को पहली बार कोरोना वायरस संक्रमण की टाइमलाइन जारी की। 38 पेज की इस टाइमलाइन में कहा गया है कि इस वायरस का पता पहली बार वुहान में पिछले साल दिसंबर में लगा था। उस समय एक व्यक्ति में अज्ञात वजहों से निमोनिया होने का पता चला था। दिसंबर 2019 में उस एक केस के बाद 12 अप्रैल 2020 तक 17 लाख 68 हजार 19 केस हो चुके हैं। 1 लाख 8 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। अब इसमे विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO की क्या भूमिका है? इसने कोरोना वायरस महामारी यानी कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिए क्या किया? आख़िर इसने इतने कुछ किया, तो फिर इसके चीफ टेड्रोस गेब्रियेसस पर सवाल क्यों उठ रहे हैं? आज इन्हीं सवालों का जवाब जानने की कोशिश करते हैं।
WHO चीफ गेब्रेयेसिएस व चीनी राष्ट्रपति चिनफिंग। फोटोः इंटरनेट
पहले शुरू करते हैं कोरोना वायरस के पहले मामले से। तो इसका आगाज होता है 1 दिसंबर, 2019 से। चीन के वुहान शहर में एक महिला में निमोनिया के लक्षण सामने आते हैं। माना जा रहा है कि वह कोरोना वायरस का सबसे पहली मरीज़ थी। दिसंबर में इस तरह के कई मामले आए, जिनका कारण पता नहीं चल पा रहा था। इन्हें सूखी खांसी, बुखार और सांस लेने में तकलीफ होती थी। इसके बाद चीन ने 31 दिसंबर, 2019 को WHO को इन अजीबोगरीब मामलों की जानकारी दी। फिर 7 जनवरी 2020 को यह पता चला कि ये तो वायरस का नया स्ट्रेन है। इसका नाम नोवेल कोरोना वायरस रखा गया। 11 जनवरी को चीन में इससे पहली मौत की घोषणा की गई। इसके बाद 13 जनवरी को चीन से बाहर थाईलैंड में पहला केस आया। 30 जनवरी तक यह वायरस चीन के अलावा 18 देशों तक पहुंच चुका था। 30 जनवरी को ही WHO ने कोरोना वायरस को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया। 11 मार्च को कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित कर दिया।
लेकिन इन घटनाक्रमों के बीच काफी कुछ ऐसा भी घटा, जिससे आरोप लगने लगे हैं कि WHO ने कोरोना संकट के लिए चीन को बचाने का काम किया है? WHO के मुखिया पर आरोप लग रहे हैं कि कोविड-19 को लेकर उसने कमज़ोर, लेटलतीफ और ​बगैर सोचने-समझने की रणनीति अपनाई। बात-बात में चीन का बचाव करते दिखे, जबकि यह साफ है कि यह वायरस चीन से ही निकला और पूरी दुनिया में फैल गया।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल में टेड्रोस के चीनी समर्थक बयानों को लेकर कहा कि डब्‍ल्‍यूएचओ के महानिदेशक ने पक्षपात किया है। कोरोना वायरस संक्रमण के दुनिया भर में फैल जाने के पीछे चीन को ज़िम्मेदार ठहराए जाने के मामले में डब्ल्यूएचओ की तरफ से टेड्रोस ने चीन की तरफ़दारी की और चीन को दुनिया के संकट के लिए ज़िम्मेदार मानने से इनकार किया। वेबसाइट द हिल की रिपोर्ट कहती है कि चीन ने इथोपिया में भारी निवेश किया है, इसलिए टेड्रोस उसका बचाव करने पर मजबूर हैं। टेड्रोस इथोपिया से ही आते हैं। यह भी कहा जा रहा है कि वह इथोपिया के कम्युनिस्ट नेता रहे हैं।
ख़ैर हम लौटते हैं असल मुद्दे पर कि किस तरह से विश्व स्वास्थ्य संगठन औऱ टेड्रोस ने इस पूरे मामले को बिगाड़ा औऱ कोविड-19 को महामारी बनने दी। पूरी दुनिया को मौत की संख्या में झोंक दिया। दरअसल, इस बात के सबूत मिले हैं कि कोरोना वायरस अक्टूबर 2019 के बीच में ही इंसानों में फैल चुका था, लेकिन डब्लूएचओ ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई। वहीं, जनवरी 2020 में महामारी के शुरुआती दौर में चीन द्वारा इसके लिए उठाए जा रहे कदमों और इसके महामारी बनने को लेकर पारदर्शिता अपनाने के लिए उसकी तारीफ की। हालांकि, 13 जनवरी को चीन के बाहर थाईलैंड इससे मौत का मामला आ चुका था। ताइवान ने WHO को इस बारे में दिसंबर में ही सावधान कर दिया था। इस बीच कोविड-19 महामारी दुनिया भर में तेजी से फैल रही थी। टेड्रोस और उनकी टीम फिर भी दुनिया के देशों को यात्राओं पर रोक न लगाने की बात कर रहे थे। जब अमेरिका ने जनवरी में ही चीन से आने वालों पर यात्रा प्रतिबंध लगाया, तो इसने अमेरिका की ही आलोचना की। आज पूरी दुनिया इस महामारी से बचने के लिए लॉकडाउन और ट्रैवल बैन लागू कर चुकी है, लेकिन WHO ने इसके उलट सलाह दी।
अब जबकि अमेरिका और चीन के बीच इस महामारी को लेकर तू-तू मैं-मैं जारी है, तो इसकी बड़ी वजह खुद टेड्रोस हैं। अमेरिकी सीनेटर टॉड यंग ने WHO प्रमुख डॉ. टेड्रोस को अमेरिकी सीनेट की फॉरेन रिलेशंस सबकमेटी के सामने पेश होने को कहा। उन्होंने पूछा कि आप बताइए कि आपके संगठन ने कैसे इस महामारी को संभाला? सीनेटर यंग ने कहा कि चीन कोरोना वायरस को संभालने में बुरी तरह से कमजोर साबित हुआ और उसने दुनिया को सही आंकड़े नहीं बताए। टॉड यंग ने कहा कि डब्ल्यूएचओ प्रमुख चीन के साथ ऐसे खड़े थे, जैसे कोई असिस्टेंट खड़ा रहता है।
उधर, ताइवान जिसने पहले इस वायरस को लेकर WHO को चेताया था, उसने टेड्रोस पर कई आरोप लगाए। दरअसल, टेड्रोस ने ताइवान पर निशाना साधते हुए कहा था कि तीन महीने पहले ताइवान ने मुझ पर निजी हमला किया। लेकिन ताइवान ने कहा कि टेड्रोस को अपने गैर जिम्मेदाराना बयान के लिए माफी मांगनी चाहिए। दरअसल, मामला तीन महीने पहले का है और डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस गेब्रेयेसिएस ने आरोप लगाया था कि कोरोना के खिलाफ जारी लड़ाई के दौरान तीन महीने पर उन्हें जान से मारने की धमकी मिली। मुझे नीग्रो और अश्वेत कहा गया। अब सवाल यह भी उठता है कि जब मामला तीन महीने पहले का है और उन पर अमेरिका सहित कई देश चीन का साथ देने और पूरी दिया को कोरोना वायरस को लेकर अंधेरे में रखने के आरोपों को लेकर हमला कर रहे हैं, तो इस तरह से खुद को डिफेंड करना किस हद तक जायज है। मुमकिन है कि उनके साथ हुआ हो, तो फिर सवाल यह भी है कि आख़िर यह बात अभी कैसे आई। वह भी तब जब उन पर हर तरह से हमले हो रहे हैं।

नीतीश कुमार की नाकामी और ‘चीन का वुहान’ बना बिहार का सीवान


भारत में अभी तक कोरोना वायरस संक्रमण के 7598 मामले सामने आए हैं। इससे 246 लोगों की मौत हो चुकी है। www.worldometers.info › coronavirus के मुताबिक, भारत ने अभी तक 189111 टेस्ट किए हैं, जबकि आबादी 1 अरब 30 करोड़ से ज्यादा है। चलिए मान लेतें है कि दो लाख की होगी टेस्टिंग। वहीं, 33-34 करोड़ की आबादी वाला अमेरिका अभी तक 2489786 टेस्ट कर चुका है। अब अमेरिका से अपनी क्या तुलना करना। ज़रा पति करिए कि ईरान की आबादी कितनी है, लेकिन उसने 242,568 टेस्ट, तुर्की जैसा छोटा देश 8.2 करोड़ आबादी वाला 307,210 टेस्ट कर चुका है। अब हर देश का आंकड़ा देना भी उचित नहीं है वरना आप कहेंगे कि आंकड़ेबाज़ी में ही उलझा दिए। लेकिन तथ्य तो तथ्य ही। भले आप मानें या न मानें।
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लेकिन, बात भारत की नहीं। भारत में एक राज्य है बिहार। यहां एक दिन में सर्वाधिक 21 नए कोरोना पॉजिटिव मरीज मिले हैं। सबसे बड़ा ख़तरा यह है कि बिहार के सीवान ज़िले की हालत चीन के वुहान जैसी हो गई। वुहान वही शहर है, जो कोरोना का केंद्र माना जाता है। सीवान में कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या 20 हो गई है। बिहार में अब तक पहली बार ऐसा हुआ है कि एक ही दिन में वैश्विक महामारी कोरोना के सर्वाधिक मामले सामने आए हैं। 9 अप्रैल की सुबह से देर रात तक कुल 19 नए संक्रमितों की पहचान की गई। सैंपल जांच में सभी में कोरोना पाजिटिव पाया गया है। इनमें सीवान के 17 हैं। 30 मार्च को कोरोना के छह मरीज मिले थे। 7 अप्रैल को भी बिहार में एक ही दिन में कोरोना छह मरीज सामने आए थे। बिहार में 9 अप्रैल को 19 नए मरीजों के सामने आने के बाद कोरोना संक्रमितों की संख्या 39 से बढ़कर 58 हो गई। यहां एक व्यक्ति ने परिवार के 16 लोगों को संक्रमित किया। ओमान से सीवान में आए एक संक्रमित व्यक्ति ने आइसोलेशन में नहीं जाकर अपनी पहचान छिपाए रखी। अब इस परिवार की 12 महिलाएं और चार पुरुष अब तक कोरोना पॉजिटिव पाए जा चुके हैं। सीवान में एक अन्य व्यक्ति की भी पहचान कोरोना पॉजिटिव के रूप में की गई। यह युवक 16 मार्च को दुबई से आया था। इस तरह सीवान में सर्वाधिक 27 कोरोना के मरीज हो गए हैं।
इस पर तुर्रा यह कि उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी जी कह रहे हैं कि लॉकडाउन के 15 दिन बाद भी कोरोना के नए मरीजों की संख्या में वृद्धि से जाहिर है कि सामाजिक दूरी यानी सोशल डिस्टेंसिंग बरतने के निर्देश का पालन करने में कई स्तरों पर चूक हो रही है। तो इस चूक को दूर करने की जिम्मेदारी किसकी है। जानता हूं यह भी जनता के मत्थे ही थोपा जाएगा।
अब आइए नज़र डालते हैं कि बिहार कोरोना वायरस के कितने टेस्ट किए और अभी तक कितने मामले आए। कहा जा रहा है कि बिहार में कुल 60 के करीब मामले आए हैं। जब किसी अपराध की रिपोर्ट दर्ज ही नहीं की जाएगी, तो आधिकारिक आंकड़ों में उसे अपराध हुआ माना ही नहीं जाएगा। यही हाल कोरोना के मामले में भी है। जब कोरोना वायरस का टेस्ट होगा ही नहीं या कम टेस्ट होगा तो मामला ज्यादा कैसे आएगा। उधर डॉक्टरों और स्थानीय लोगों का भी कहना है कि कोरोना के मरीजों की संख्या भले ही कम बताई जा रही हो, लेकिन यह संख्या इससे कहीं अधिक है। पटना एम्स के कुछ डॉक्टरों का तो यहां तक कहना है कि ऐसे पॉजिटिव मामले भी हैं, जिनके बारे में बताने से मना किया जा रहा है।
दूसरी तरफ इसको भी छोड़ दें तो नीतीश कुमार ने अपने 15 साल के शासन में बिहार के स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कुछ किया ही नहीं। इसका भी डर उनको होगा। पिछले साल मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार का मामला सामने आए है कि कैसे बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुल गई थी। बिहार से ताल्लुक रखने वाले केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे तो प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सोते पाए गए थे। यह इस बात का भी प्रतीक है कि कोरोना महामारी पहले से ही बिहार की नाजुक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर बोझ बनने लगी है। ऐसे में खराब योजना, सुरक्षात्मक उपकरणों की कमी और सार्वजनिक जागरूकता की कमी भी चुनौती को बढ़ा रही है।
बिहार के डॉक्टर कैसे कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं, इसकी मिसाल यह है कि डॉक्टरों का कहना है कि प्रोटोकॉल के अनुसार हमें एन-95 मास्क, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किट और सैनिटाइज़र दिया जाना चाहिए। हमारी स्थिति इतनी विकट है कि हम मरीजों का इलाज करते समय खुद को बचाने के लिए एचआईवी किट का उपयोग करते हैं। हम बिना उचित सुरक्षा उपकरण के मरीजों का इलाज करते हैं, तो आठ घंटे की ड्यूटी के बाद फिर इस्तेमाल किया हुआ दस्तानी ही पहनना पड़ता है। इससे डर है कि हमें भी कोरोन वायरस न हो जाए। पीएमसीएच बिहार के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक है। यहां COVID-19 के रोगियों के लिए बेड उपलब्ध नहीं हैं।
बिहार में कोरोनो वायरस के लिए टेस्टिंग कम हो रहे हैं। इससे डॉक्टरों पर दबाव बन रहा है। उन्हें लग रहा है कि वे ऐसे मरीजों का इलाज कर रहे हैं, जिनमें इस तरह के लक्षण हो सकते हैं। ऐसे में उन्हें यह बीमारी हो सकती है। बिहार में सिर्फ एक ही रिसर्च सेंटर है, जो कोरोना वायरस सैंपल का टेस्ट करता है। फिर उसकी पुष्टि के लिए पुणे भेजा जाता है। ऐसे में कोरोन वायरस का कम्युनिटी संक्रमण होता है, तो बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त सकती है।

ईरान-पाकिस्तान में धार्मिक ज़िद, कोरोना का रिलिजयस कनेक्शन

कोरोना वायरस महामारी पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले चुका है। लेकिन एक देश है तुर्कमेनिस्तान, जो ईरान से सटा। हर देश कोरोना वायरस संक्रमण खत्म करने में जुटा है। पर तुर्कमेनिस्तान में कुछ अलग ही तरीका अपनाया गया है। यहां कोरोना शब्द पर ही बैन लगा दिया गया है। यहां कोरोना बोलने और लिखने वालों पर कार्रवाई हो रही है। मास्क पहनने पर पहले ही बैन है। अगर कोई नियमों को तोड़ता है, तो उसे जेल हो सकती है। दरअसल, तुर्कमेनिस्तान ईरान के दक्षिण में है। ईरान में कोरोना से 4110 लोगों की मौत हो चुकी है। 66 हजार से ज्यादा संक्रमित हैं। (10 अप्रैल 2:22 बजे तक) लिहाजा, तुर्कमेनिस्तान में इस तरह की पाबंदी पर कई देशों ने नाराजगी जाहिर की है।
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लेकिन, एक कहानी यही से शुरू होती है कि जब ईरान सटे तुर्कमेनिस्तान का रवैया कुछ अजीब है, तो यहां से पाकिस्तान की हालत कैसे ख़राब होती जा रही है। हम उस पर भी बात नहीं करेंगे। हम बात करेंगे ईरान की, जो एशिया में कोरोना वायरस की उत्पत्ति माने जाने वाले देश चीन को भी मौतों के मामले में पीछे छोड़ चुका है। साथ ही, इसी बहाने पाकिस्तान वाले कुछ इलाकों की भी बात करेंगे। तो फरवरी 2020 के अंतिम सप्ताह में बलूचिस्तान प्रांत की सीमा चौकी तफ्तान से 6,500 तीर्थयात्रियों को अपने-अपने घर पाकिस्तान लौटने की इजाजत दी गई. ये सभी कोरोना के संदिग्ध बताए जा रहे थे। ये सभी शिया तीर्थयात्री थे, जिन्होंने ईरान में क़ौम और मशहद जैसे पाक जगह की यात्रा की थी।
चीन ने फरवरी की शुरुआत में ही कोरोना वायरस संक्रमण के बारे में आगाह किया था। लेकिन ईरान ने कोई ध्यान नहीं दिया और चीन से लोगों का आना जारी रहा। यहां कौम में दुनिया भर से इकट्ठा हुए लोगों को क्वांरटीन करने का कोई बंदोबस्त नहीं किया गया। इस तरह ईरान ने अपने इस शहर को कोरोना वायरस का केंद्र या गढ़ बनने की एक तरह से इजाजत दे दी थी। भले ही अनजाने में। इसके अगले ही महीने यानी मार्च में पूरे मध्य पूर्व में लगभग 17,000 मामले कोरोना वायरस के दर्ज किए गए। इन 17 हजार मामलों में से 90 प्रतिशत का ताल्लुक ईरान से था। ईरान को सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनई ने 3 मार्च को कहा था कि कोरोना कोई बड़ी त्रासदी नहीं है। इस त्रासदी पर लोगों की दुआएं और पवित्र स्थल कहीं अधिक भारी है। लेकिन ईरान के 13 आला अधिकारियों की मौत और 30 के संक्रमित होने के बाद खामेनई ने महामारी के लिए अमेरिका को कोसना शुरू कर दिया।

उधर, तफ्तान में पाकिस्तान की ओर से क्वारंटीन में रखे गए हजारों लोगों की वायरस से सुरक्षा का शायह ही ध्यान रखा गया। लोगों भेड़ों की तरह एक टेंट में ठूस कर रखा गया। इससे जो लोग संक्रमित नहीं थे, वे भी वायरस की चपेट में आ गए। सारे के सारे शिया मुसलमान थे और अधिकांश का ताल्लुक पाकिस्तान के सिंध प्रांत से था। सिंध में ही 2.2 करोड़ की आबादी वाला पाकिस्तान का सबसे बड़ा शहर कराची है। चूंकि इनमें से किसी भी तीर्थयात्री में वायरस संक्रमण की जांच नहीं की गई, तो एक तरह से ये पूरे पाकिस्तान में वायरस फैलाने का जरिया बन गए। आज पाकिस्तान में 4489 लोग (हालांकि टेस्टिंग कम होने से आंकड़ा कम है) संक्रमित हैं औऱ 65 की जान जा चुकी है।
जिस तरह तबलीगी जमात को दिल्ली के निजामुद्दीन में धार्मिक कार्यक्रम किया। उस तरह जमात ने पाकिस्तान में भी अपना सालाना कार्यक्रम किया था। पाकिस्तानी अख़बार 'डॉन' की रिपोर्ट के अनुसार, 10 मार्च को हुए कार्यक्रम में 70 से 80 हजार लोगों ने शिरकत की थी। हालांकि, तबलीगी जमात ने दावा किया कि उनके कार्यक्रम में ढाई लाख से ज्यादा लोग पहुंचे थे। इसमें 40 देशों से करीब 3000 लोग शामिल थे। पाकिस्तान की तबलीगी जमात ने भी न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि दूसरों देशों में भी वायरस फैलाने का काम किया। इसमें शामिल किर्गिस्तान के कम-से-कम दो नागरिकों और दो फिलिस्तीनियों ने वापस देश के लिए उड़ान भरी। उनकी वजह से फिर गाजा पट्टी में वायरस फैला। इसी तरह, मलेशिया में तबलीगी जमात की धार्मिक सभा की वजह 620 लोगों को कोरोना हुआ। बाद ये सभी दक्षिण एशिया लौटे और फिर क्या हुआ होगा, आप सोच सकते हैं। 
पाकिस्तान में कोरोना वायरस संक्रमण के लिहाज से सबसे असुरक्षित जगह मस्जिद है, जहां लोग दिन में पांच बार नमाज के लिए आते हैं और कंधे-से-कंधा सटाकर खड़े होते हैं। पाकिस्तान में तकरीबन 5 लाख मस्जिद हैं। यहां 1947 के बाद के शुरुआती दिनों में ज्यादातर शुक्रवार को ही मस्जिदों में नमाज पढ़ते थे, लेकिन आज अधिकांश लोग पड़ोस की मस्जिदों ही हर रोज दिन में पांच बार नमाज करते हैं। अब लोग इतनी बार मिलेंगे और भीड़ में इकट्ठा होंगे, तो वायरस का संक्रमण किस रफ्तार से होगा?जब पाकिस्तान ने लॉकडाउन का फैसला किया, तो मस्जिद की सभाओं को नजरअंदाज करना पड़ा, क्योंकि अधिकांश मौलवी इसके ख़िलाफ़ थे। न्यूजवीक पाकिस्तान के खालिद अहमद बताते हैं कि तब पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने इस मामले को सर्वोच्च इस्लामी संस्था जमीयत अल-अजहर या अल-अजहर यूनिवर्सिटी मिस्र को इस मामले को रेफर किया। इसके बाद ही सभी मस्जिदों को बंद करने की नसीहत दी गई। फिर भी कुछ मौलवी इसके पक्ष में नज़र नहीं दिखते, लेकिन सऊदी अरब ने मक्का और मदीना को बंद करने का फैसला कर लिया। पाकिस्तान ने बीच का रास्ता निकाला, जो बेतुका औऱ नासमझी वाला लगता है। यहां फैसला किया गया कि मस्जिदें बंद नहीं होंगी, लेकिन नमाज के दौरान पांच से अधिक लोगों का समूह साथ में नहीं होगा।
कुछ इस तरह से कोरोना वायरस से जंग जीतने के लिए रेत पर तस्वीर बनाई जा रही है और जीतने की तमन्ना भी पाली जा रही है।