कोरोना वायरस महामारी पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले चुका है।
लेकिन एक देश है तुर्कमेनिस्तान, जो ईरान से सटा। हर देश कोरोना वायरस संक्रमण
खत्म करने में जुटा है। पर तुर्कमेनिस्तान में कुछ अलग ही तरीका अपनाया गया है।
यहां कोरोना शब्द पर ही बैन लगा दिया गया है। यहां कोरोना बोलने और लिखने वालों पर
कार्रवाई हो रही है। मास्क पहनने पर पहले ही बैन है। अगर कोई नियमों को तोड़ता
है, तो उसे जेल हो सकती है। दरअसल, तुर्कमेनिस्तान ईरान के दक्षिण में है। ईरान
में कोरोना से 4110 लोगों की मौत हो चुकी है। 66 हजार से ज्यादा संक्रमित हैं। (10
अप्रैल 2:22 बजे तक) लिहाजा, तुर्कमेनिस्तान में इस तरह की पाबंदी पर कई देशों ने
नाराजगी जाहिर की है।
फोटोः इंटरनेट |
लेकिन, एक कहानी यही से शुरू होती है कि जब ईरान सटे
तुर्कमेनिस्तान का रवैया कुछ अजीब है, तो यहां से पाकिस्तान की हालत कैसे ख़राब
होती जा रही है। हम उस पर भी बात नहीं
करेंगे। हम बात करेंगे ईरान की, जो एशिया में कोरोना वायरस की उत्पत्ति माने जाने
वाले देश चीन को भी मौतों के मामले में पीछे छोड़ चुका है। साथ ही, इसी बहाने
पाकिस्तान वाले कुछ इलाकों की भी बात करेंगे। तो फरवरी 2020 के अंतिम सप्ताह में बलूचिस्तान
प्रांत की सीमा चौकी तफ्तान से 6,500 तीर्थयात्रियों को अपने-अपने घर पाकिस्तान
लौटने की इजाजत दी गई. ये सभी कोरोना के संदिग्ध बताए जा रहे थे। ये सभी शिया
तीर्थयात्री थे, जिन्होंने ईरान में क़ौम और मशहद जैसे पाक जगह की यात्रा की थी।
चीन ने फरवरी की शुरुआत में ही कोरोना वायरस संक्रमण के बारे में
आगाह किया था। लेकिन ईरान ने कोई ध्यान नहीं दिया और चीन से लोगों का आना जारी
रहा। यहां कौम में दुनिया भर से इकट्ठा हुए लोगों को क्वांरटीन करने का कोई
बंदोबस्त नहीं किया गया। इस तरह ईरान ने अपने इस शहर को कोरोना वायरस का केंद्र या
गढ़ बनने की एक तरह से इजाजत दे दी थी। भले ही अनजाने में। इसके अगले ही महीने
यानी मार्च में पूरे मध्य पूर्व में लगभग 17,000 मामले कोरोना वायरस के दर्ज किए
गए। इन 17 हजार मामलों में से 90 प्रतिशत का ताल्लुक ईरान से था। ईरान को सर्वोच्च नेता
अयातुल्ला खामेनई ने 3 मार्च को कहा था कि कोरोना कोई बड़ी त्रासदी नहीं है। इस
त्रासदी पर लोगों की दुआएं और पवित्र स्थल कहीं अधिक भारी है। लेकिन ईरान के 13 आला
अधिकारियों की मौत और 30 के संक्रमित होने के बाद खामेनई ने महामारी के लिए
अमेरिका को कोसना शुरू कर दिया।
उधर,
तफ्तान में पाकिस्तान की ओर से क्वारंटीन में रखे गए हजारों लोगों की वायरस से
सुरक्षा का शायह ही ध्यान रखा गया। लोगों भेड़ों की तरह एक टेंट में ठूस कर रखा
गया। इससे जो लोग संक्रमित नहीं थे, वे भी वायरस की चपेट में आ गए। सारे के सारे शिया
मुसलमान थे और अधिकांश का ताल्लुक पाकिस्तान के सिंध प्रांत से था। सिंध में ही 2.2
करोड़ की आबादी वाला पाकिस्तान का सबसे बड़ा शहर कराची है। चूंकि इनमें से किसी भी
तीर्थयात्री में वायरस संक्रमण की जांच नहीं की गई, तो एक तरह से ये पूरे
पाकिस्तान में वायरस फैलाने का जरिया बन गए। आज पाकिस्तान में 4489 लोग (हालांकि टेस्टिंग कम होने से आंकड़ा कम है) संक्रमित
हैं औऱ 65 की जान जा चुकी है।
जिस
तरह तबलीगी जमात को दिल्ली के निजामुद्दीन में धार्मिक कार्यक्रम किया। उस तरह
जमात ने पाकिस्तान में भी अपना सालाना कार्यक्रम किया था। पाकिस्तानी अख़बार 'डॉन' की रिपोर्ट के अनुसार, 10
मार्च को हुए कार्यक्रम में 70 से 80 हजार लोगों ने शिरकत की थी। हालांकि, तबलीगी
जमात ने दावा किया कि उनके कार्यक्रम में ढाई लाख से ज्यादा लोग पहुंचे थे। इसमें
40 देशों से करीब 3000 लोग शामिल थे। पाकिस्तान
की तबलीगी जमात ने भी न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि दूसरों देशों में भी वायरस फैलाने
का काम किया। इसमें शामिल किर्गिस्तान के कम-से-कम दो नागरिकों और दो फिलिस्तीनियों
ने वापस देश के लिए उड़ान भरी। उनकी वजह से फिर गाजा पट्टी में वायरस फैला। इसी
तरह, मलेशिया में तबलीगी जमात की धार्मिक सभा की वजह 620 लोगों को कोरोना हुआ। बाद
ये सभी दक्षिण एशिया लौटे और फिर क्या हुआ होगा, आप सोच सकते हैं।
पाकिस्तान में कोरोना वायरस संक्रमण के लिहाज से सबसे असुरक्षित जगह मस्जिद है, जहां लोग दिन में पांच बार नमाज के लिए आते हैं और कंधे-से-कंधा सटाकर खड़े होते हैं। पाकिस्तान में तकरीबन 5 लाख मस्जिद हैं। यहां 1947 के बाद के शुरुआती दिनों में ज्यादातर शुक्रवार को ही मस्जिदों में नमाज पढ़ते थे, लेकिन आज अधिकांश लोग पड़ोस की मस्जिदों ही हर रोज दिन में पांच बार नमाज करते हैं। अब लोग इतनी बार मिलेंगे और भीड़ में इकट्ठा होंगे, तो वायरस का संक्रमण किस रफ्तार से होगा?जब पाकिस्तान ने लॉकडाउन का फैसला किया, तो मस्जिद की सभाओं को नजरअंदाज करना पड़ा, क्योंकि अधिकांश मौलवी इसके ख़िलाफ़ थे। न्यूजवीक पाकिस्तान के खालिद अहमद बताते हैं कि तब पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने इस मामले को सर्वोच्च इस्लामी संस्था जमीयत अल-अजहर या अल-अजहर यूनिवर्सिटी मिस्र को इस मामले को रेफर किया। इसके बाद ही सभी मस्जिदों को बंद करने की नसीहत दी गई। फिर भी कुछ मौलवी इसके पक्ष में नज़र नहीं दिखते, लेकिन सऊदी अरब ने मक्का और मदीना को बंद करने का फैसला कर लिया। पाकिस्तान ने बीच का रास्ता निकाला, जो बेतुका औऱ नासमझी वाला लगता है। यहां फैसला किया गया कि मस्जिदें बंद नहीं होंगी, लेकिन नमाज के दौरान पांच से अधिक लोगों का समूह साथ में नहीं होगा।
कुछ इस तरह से कोरोना वायरस से जंग जीतने के लिए रेत पर तस्वीर बनाई जा रही है और जीतने की तमन्ना भी पाली जा रही है।
पाकिस्तान में कोरोना वायरस संक्रमण के लिहाज से सबसे असुरक्षित जगह मस्जिद है, जहां लोग दिन में पांच बार नमाज के लिए आते हैं और कंधे-से-कंधा सटाकर खड़े होते हैं। पाकिस्तान में तकरीबन 5 लाख मस्जिद हैं। यहां 1947 के बाद के शुरुआती दिनों में ज्यादातर शुक्रवार को ही मस्जिदों में नमाज पढ़ते थे, लेकिन आज अधिकांश लोग पड़ोस की मस्जिदों ही हर रोज दिन में पांच बार नमाज करते हैं। अब लोग इतनी बार मिलेंगे और भीड़ में इकट्ठा होंगे, तो वायरस का संक्रमण किस रफ्तार से होगा?जब पाकिस्तान ने लॉकडाउन का फैसला किया, तो मस्जिद की सभाओं को नजरअंदाज करना पड़ा, क्योंकि अधिकांश मौलवी इसके ख़िलाफ़ थे। न्यूजवीक पाकिस्तान के खालिद अहमद बताते हैं कि तब पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने इस मामले को सर्वोच्च इस्लामी संस्था जमीयत अल-अजहर या अल-अजहर यूनिवर्सिटी मिस्र को इस मामले को रेफर किया। इसके बाद ही सभी मस्जिदों को बंद करने की नसीहत दी गई। फिर भी कुछ मौलवी इसके पक्ष में नज़र नहीं दिखते, लेकिन सऊदी अरब ने मक्का और मदीना को बंद करने का फैसला कर लिया। पाकिस्तान ने बीच का रास्ता निकाला, जो बेतुका औऱ नासमझी वाला लगता है। यहां फैसला किया गया कि मस्जिदें बंद नहीं होंगी, लेकिन नमाज के दौरान पांच से अधिक लोगों का समूह साथ में नहीं होगा।
कुछ इस तरह से कोरोना वायरस से जंग जीतने के लिए रेत पर तस्वीर बनाई जा रही है और जीतने की तमन्ना भी पाली जा रही है।
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