कोविड-19 और चीन की शातिर कूटनीति पर भारी ताइवान की मास्क डिप्लोमेसी

चीन के वुहान से जन्मा कोरोना वायरस पूरी दुनिया में तबाही मचा रहा है। अभी तक 19 लाख से ज्यादा लोग पूरी दुनिया में इस महामारी की चपेट में हैं, जबकि 1 लाख 18 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन, चीन के बेहद करीब का देश ताइवान काफी पहले ही इस पर काबू पाने में कामयाब रहा है। ताइवान आबादी और संसाधनों के मामले में चीन ही नहीं, दुनिया के अधिकांश देशों के मुकाबले बेहद कमजोर है। उसके बावजूद कोरोना जैसी महामारी को इस देश ने काफी हद तक आगे बढ़ने से रोक दिया है। यहां आज की तारीख में 308 लोग संक्रमित हुए हैं, जिसमें से 109 लोग ठीक भी हो चुके हैं। सिर्फ 6 लोगों की ही मौत हुई है।
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आख़िर ऐसी क्या वजहें रहीं और उसने क्या उपाय किए, जिससे ताइवान को यह महामारी अपनी जकड़ में नहीं ले पाया। जबकि ताइवान विश्व स्वास्थ्य संगठन का सदस्य देश भी नहीं है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन जिस पर इस महामरी को लेकर चीन के पक्ष में काम करने का आरोप लग रहा है। तो इसके पीछे वजह यह है कि जब चीन में कोरोना की शुरुआत हुई, तभी ताइवान ने मास्क, टेस्ट, सैनिटाइजर और दूसरी जरूरी मेडिकल वस्तुओं को बनाने पर जोर देने लगा था। उसने डिजिटल थर्मामीटर से लेकर मास्क और वेंटिलेटर वगैरह के निर्यात पर भी बैन लगाया।
अब वह मास्क डिप्लोमेसी के जरिए वैश्विक परिदृश्य में अपनी मजबूत धमक या कूटनीतिक पहुंच साबित कर रहा है। हम जानते हैं कि कोरोना वायरस महामारी ने बुनियादी चिकित्सा उपकरणों और सामानों की सप्लाई को पूरी तरह से बदल दिया है। कई देशों में इस मुश्किल घड़ी में फेस मास्क, दस्ताने और गाउन जैसे महत्वपूर्ण सामानों की भारी कमी हो गई है। कई देश पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPE) के निर्यात प्रतिबंध लगा रहे हैं। वहीं कई देश इनके आयात के के लिए बेचैन हैं, क्योंकि वहां इसकी कमी की वजह से खतरा बढ़ता जा रहा है। मेडिकल जरूरतों की सप्लाई इससे पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कभी भी बाधित नहीं हुई, क्योंकि देश पहले अपना हित देख रहे हैं। इसकी वजह है कि इनका उत्पादन करने वाले देश खुद कोरोना वायरस महामारी की भारी चपेट में हैं। ताइवान इन उत्कृष्ट स्तर के मेडिकल मास्क का दुनिया के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में एक है। ताइवान उन चुनिंदा देशों में भी है, जिसने कोविड-19 से सफलतापूर्वक निपटा है। अब इसके पास इस अवसर का लाभ उठाने का एक दुर्लभ अवसर है कि वह अपने खिलाफ लंबे समय से चल रहे चीन विरोधी राजनीति का लाभ उठा सके। उसे अपने पत्ते सावधानी से खेलने होंगे। खासतौर पर अमेरिका के साथ।
ताइवान की आबादी सिर्फ 2.3 करोड़ है और वह चीन के बाद फेस मास्क का दूसरा सबसे बड़ा वैश्विक उत्पादक है। यानी दुनिया में चीन के बाद ताइवान ही सबसे अधिक फेस मास्क बनाता है। यह हर रोज तकरीबन 1.5 करोड़ मास्क का उत्पादन करता है। चूंकि दुनिया में अब इसी मांग बड़ी तेजी से बढ़ी है, तो यह एक दिन में 1.7 करोड़ मास्क का उत्पादन कर रहा है।
अमेरिका में अभी तक कोरोना वायरस से सबसे अधिक मौतें 23 हजार से ज्यादा हुई हैं और यहीं सबसे अधिक संक्रमित 5 लाख
87 हजार से अधिक लोग हैं। वह ताइवान के मास्क निर्यात का लाभ उठाने के लिए तैयार है, क्योंकि उसे अभी बड़ी बेसब्री से इसकी जरूरत है। मार्च में ताइवान ने अमेरिका को हर सप्ताह लगभग 100,000 सर्जिकल मास्क दान करने का वादा किया था। बदले में अमेरिका ने  ताइवान को 300,000 हाजमत सूट देने पर सहमत हुआ। इसके बाद ताइवान ने 1 अप्रैल को घोषणा की कि वह दुनिया के सबसे अधिक जरूरतमंद देशों को 1 करोड़ मास्क दान करेगा। इसमें अमेरिका के लिए अलग से उसने 20 लाख मास्क देने का वादा किया। इसी सप्ताह उसने अमेरिका को 400,000 मास्क दिए। पिछले कुछ दिनों में ताइवान ने अपने कूटनीतिक रूप से सहयोगी देशों के साथ-साथ इटली, स्पेन, फ्रांस, नीदरलैंड और यूनाइटेड किंगडम जैसे कोरोना से सबसे प्रभावित यूरोपीय देशों को मास्क और पीपीई दिए।
उधर, चीन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस बात को लेकर खूब आलोचना हुई कि उसे महामारी फैलने की शुरुआत में ही दुनिया को आगाह नहीं किया और मामले को दबाता रहा, जिससे आज यह महामारी घातक हो चुकी है। चीन इसकी काट के तौर पर एक अलग बहस छेड़ने की कोशिश करता रहा। इसने अमेरिका की तुलना में खुद को महामारी से सबसे प्रभावित यूरोपीय देशों का भरोसेमंद सहयोगी साबित करने की कोशिश की। इन प्रयासों के तहत उसने
पूरे यूरोप में चिकित्सा उपकरण, पीपीई और दवाइयां भेज रहा है। चीनी कंपनियां भी अपनी सरकार का समर्थन कर रही हैं। 
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ई-कॉमर्स के दिग्गज और अलीबाबा के सह-संस्थापक चीनी अरबपति जैक मा ने यूरोपीय देशों में 18 लाख फेस मास्क और 100,000 टेस्ट किट भेजने का वादा किया। चीनी कंपनी हुआवे ने भी यूरोप देशों के लिए इसी तरह के राहत पैकेजों की घोषणा की औऱ लाखों मास्क दान में दिए। चीन की कुछ छोटी-बड़ी कंपनियों ने अमेरिका में मेडिकल उफकरण भेजे, लेकिन अफ्रीकी और यूरोपीय देशों को भेजे जाने वाले मदद पैकेजों की तुलना में वह मामूली लगते हैं। चीन ने पूरे यूरोप में एक तरह से मानवीय मदद का प्रोपेगेंडा का खेल खेला है, लेकिन उसकी यह चाल अमेरिका के साथ सफल नहीं रही। अमेरिका ने चीनी कंपनियों जैसे हुवावे के कारोबार पर लगाम लगाने की कोशिश की। इस पर कहा गया कि अगर अमेरिका इस तरह के कदम उठाता है, तो चीन मौजूदा समय में बहुत जरूरी फेस मास्क की आपूर्ति अमेरिका को बंद कर सकता है। चीन एक तरफ मास्क डिप्लेमेसी का कूटनीतिक खेल खेल रहा है, तो इसी बीच कुछ देशों ने चीन में बने मेडिकल इक्विपमेंट और मास्क की गुणवत्ता पर सवाल उठाने शुरू कर दिया है। नीदरलैंड ने चीन से आयात किए गए हजारों मास्क को लौटा दिया है। आगे के आयात पर भी रोक लगा दी है, क्योंकि उनकी गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करते हैं। स्पेन और तुर्की सहित अन्य देशों ने भी चीनी कंपनियों के कोरोना वायरस की जांच के लिए रैपिड टेस्टिंग किट की शिकायत की है।
ऐसे में अमेरिका की मदद से ताइवान के पास खुद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से पेश करने का मौका आया है। वह भी ऐसे समय में जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से वह बाहर है, उसे चीन के दबाव में इस संगठन का सदस्या नहीं बनाया गया। इसके बावजूद ताइवान ने कोरोना वायरस पर काबू पाया है। दरअसल, डब्ल्यूएचओ की सदस्यता केवल उन देशों मिलती है, जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं। ताइवान को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता नहीं मिली है। कोरोना वायरस महामारी के बीच कनाडा, यूरोपीय संघ, जापान और अमेरिका ने WHO से ताइवान को सदस्यता देने की अपील की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कोरोना वायरस पर आपातकालीन बैठकों और महत्वपूर्ण ब्रीफिंग से ताइवान को दूर रखा गया।
डब्ल्यूएचओ इस महामारी से निपटने की कोशिशों को लेकर लगातार चीन की तारीफ करता रहा। इससे कुछ देशों ने उस पर चीन का पक्षधर होने का आरोप भी लगाया। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने तो यहां तक कह दिया कि डब्ल्यूएचओ को इस महामारी में पूरी तरह से चीन-केंद्रितहै। ट्रंप ने इसकी फंडिंग रोकने की भी धमकी दी। इस पर डब्ल्यूएचओ के महासचिव ने ट्रंप को इस महामारी का राजनीतिकरण न करने की अपील की। टेड्रोस ने ताइवान के नेताओं पर नस्लवादी टिप्पणी और हत्या की धमकी देने का भी आरोप लगाया। ताइवान ने उनके दावे को सिरे से खारिज कर दिया।
ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका और ताइवान के बीच संबंध पहले की ही तरह मजबूत रहे हैं और कहा जाता है कि ट्रंप अमेरिकी इतिहास में शुरू से सबसे अधिक ताइवान समर्थकों में एक माने जाते हैं। अब कोरोनो वायरस संकट ने दोनों को और भी करीब ला दिया है। अमेरिकी-चीन के तनावों के बीच ट्रप ने 26 मार्च को ताइवान अलाइज इंटरनैशनल प्रोटेक्शन ऐंड अन्हांसमेंट इनिशिएटिव (TAIPEI) अधिनियम पर हस्ताक्षर किए। यह अधिनियम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ताइवान को अमेरिका का खुला समर्थन का प्रतीक है।
मौजूदा समय में चीन और अमेरिका के बीच तकरार बढ़ रही है, तो दूसरी तरफ ताइवान खुद को बेहतर स्थिति में ला रहा है। अब अमेरिका और ताइवान के बीच कोई मोहरा नहीं है। ताइवान खुद अपने बूते खड़ा हो रहा है।

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