बयान का बवाल और उनकी सज़ा

चंद दिनों पहले कहीं पढ़ा था, कांग्रेस ने अकालियों की हवा निकलने के लिए
जनरैल सिंह भिन्दरेवाला को खड़ा किया, भिन्दरेवाला ने आतंकवाद को पैदा किया। आतंकवाद ने इंदिरा गाँधी की जान ले ली। और इंदिरा गाँधी की हत्या हजारों सिक्खों के नरसंहार की वजह बनी। कांग्रेस अपने राजनितिक फायदे के लिए ऐसे हत्कंडे अपनाती रही है। आज वह जिस वरुण गाँधी पर तीखे प्रहार कर रही है वह भी गाँधी परिवार का ही है। लेकिन यह गाँधी भगवा रंग ने रंगा हुआ है। इसमें कोई शको-शुबहा नहीं है की वरुण ने जो बयान दिए, वह किसी भी नज़रिए से सही है। एक सांप्रदायिक भाषण जो राष्ट्र को सिर्फ़ बांटने का ही काम कर सकती है। हालाँकि उनके मुताबिक उनके इस बयान की जो सी .डी दिखाई जा रही उसके साथ छेड़छाड़ किया गया है। उसमें उनकी आवाज़ नहीं है। उनके खिलाफ साजिश रची जा रही है। अब ये बात किस हद तक सही है और ग़लत, ये तो या वरुण ही बता सकते है या जाँच से ही पता चल सकता है।
लेकिन इस मामले में जो बात सबसे महत्वपूर्ण है, वह ये की जिस तरह कानून का हवाला देकर और राष्ट्रद्रोही बयान मानकर उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया गया है। इससे तो बिल्कुल ऐसा लगता है उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है। उन पर कुछ ज़्यादा ही ज्यादतियां की जा रही हैं। उनके इस बयान को इस तरह प्रचारित किया गया की वो देश के दुश्मन हो गए। वाकई उनका भाषण ज़हरीला था, इसमे कोई संदेह नहीं है। उनके खिलाफ कदम उठाये जाने चाहिए। लेकिन मेरी समस्या ये है की एक तरह के बयान और उससे भी खतरनाक और देश की अखंडता पर चोट पहुंचाने वाले भाषण देने वालों को बड़ी आसानी से छोड़ दिया जाता है। जिस तरह महाराष्ट्र में राज ठाकरे ने अपनी गुंडागिरी दिखाई, उत्तर भारतियों के खिलाफ रोज़ एक से एक bhadkau भाषण देते रहे, हिंसक गतिविधियों को उकसाते रहे। उसके बावजूद उनपर इस तरह की कोई करवाई नहीं की गई। उन्हें मेहमान बना कर पुलिस ने आवभगत की। मुंबई पुलिस कमिश्नर की बेटी शादी में शिरकत की उससे काफी कुछ पता चल जाता है। ऐसा लगता है की वही केवल मराठियों के शुभ- चिन्तक हैं।
उस समय न तो कांग्रेस ने कुछ किया और न ही उसकी सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी । जिसके मुखिया शरद पवार ने हिन्दुओं पर आतंकवादी होने का ठप्पा लगा दिया और हवाला दिया मलेगाओ विस्फोट का। कहा की देश में उसके बाद कोई विस्फोट भी नहीं हुए। शायद उन्हें भी शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस की बीमारी है, उन्हें याद नहीं की उनके ही स्टेट में मुंबई पर किस तरह आतंकवादियों कहर बरपाया था।
खैर, ये तो उनकी वोट बैंक की राजनीती है। लेकिन कानून का ये दोहरा चेहरा है या राजनीती का की एक का स्वागत किया जाता है तो दूसरे को हवालात की हवा खिलाई जाती है। यकीनन ये राजनीती ही है। जब रह ठाकरे उस वक्त अपनी हुकूमत चला रहे थे तो किसी इस तरह का बवाल नहीं मचाया। अब हाय - तौबा मचने वालों ने बताया है देश को खतरा है वरुण से। खतरा है बिल्कुल है, लेकिन उनसे भी , उन तमाम लोगो से जो वरुण जैसे भाषा देते हैं, उनसे बढ़कर , एक कदम आगे बढ़कर अपनी दादागिरी दिखाते हैं । इस सूची में लोगों की तादाद काफी ज़्यादा है। ज़रूरत है उन सब पर कारवाई कराने की। नहीं तो देश सही में टूट जाएगा। और एक तरह के जुर्म के लिए ये दोहरा पैमाना नहीं होना चाहिए।
हालाँकि ऐसा बिल्कुल नहीं होगा, हमारी राजनीती ही कुछ इस ढर्रे पर चल रही है। अपनी सहूलियत के लिए नेता किसी भी चीज़ को इस्ते माल करने से नहीं चुकते हैं ।
तो ये कहानी है ।










3 comments:

  1. अच्छा लिखा है भाई साहब. वैसे वोट की राजनीति में अधिकारों के हमेशा से ही दो माएने होते हैं.

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छा लिखा है लगातार लिखते रहो जल्द ही तुम्हे हम टीवी पर देखेगे तुम्हारी आवाज़ में ये voice ओवर अच्छा लगेगा......... राजनीति का असली चेहरा यही है...ये तो उनकी वोट बैंक की राजनीति है। नेताओ के ऐसे चेहरे चुनावों के समय जनता के सामने आते है

    ReplyDelete