ग्लोबल वार्मिंग आज पूरी दुनिया के सामने एक गंभीर समस्या के रूप में सामने है। इसकी वजह से हमारे अस्तित्व पर ही ख़तरा आ गया है। विकास और उच्च जीवन स्तर के लिए हम प्राकृतिक एवं कृत्रिम संसाधानों का भरपूर दोहन कर रहें हैं, नतीजतन हमें इसकी क़ीमत अपने अस्तित्व के साथ पूरे जीव समुदाय को ख़तरे में डालकर अदा करनी पर रही है।
ऐसा माना गया है कि इसी वजह से पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में सुंदरवन का अठारह हज़ार एकड़ से अधिक का इलाका जलमग्न हो चुका है, क्योंकि ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि होती है और तटवर्ती इलाक़े जल-मग्न हो जाती हैं। अगर विशेषज्ञों की राय देखें तो, आनेवाले दिनों में इसके भयावह परिणाम हमें झेलने होंगे-मसलन,
१ जलवायु परिवर्तन, पानी की किल्लत।
२ मानसूनी वर्षा इसके निशाने पर है,
३ गंगोत्री ग्लेशियर ३० मी प्रति वर्ष की दर से सिकुड़ रहा है,
४ जलवायु परिवर्तन के कारण सर्वाधिक असर प्राकृतिक संसाधनों पर है( कृषि पैदावार प्रभावित, बिजली की कमी आदि)
५ मौसम चक्र में बदलाव से संक्रामक बीमारियों में वृद्धि।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारणों में वातावरण में कार्बन-डाई-ऑक्साइड, मिथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि, अंधाधुंध औद्योगिक विकास, कार्बन-मोनोक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन और अन्य गैसों का उत्सर्जन शामिल है।
यह मुद्दा देखने में लोगों को समझ से परे लग सकता है, क्योंकि हमारी सोच किसी भी काम के दूरगामी नतीजों से कोई ताल्लुक नहीं रखना चाहती है, इसीलिए यह कोई मुद्दा नहीं बनता है, लेकिन हक़ीक़त में यह हमारे अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। और जब हम सब ही इसे कोई मुद्दा नहीं मानते तो हमारे नेता इसे कैसे मुद्दा मान सकते हैं, वो तो बस राम और मंदिर-मस्जिद के मुद्दे पर ही वोट मांगेंगे, हमारे बीच फूट डालकर। तो फिर हम किस मुंह से अपनी दुर्गति के लिए नेताओं ज़िम्मेदार ठहराते हैं,
जब हमें ख़ुद हमारी मुद्दों की समझ नहीं है।
in fact blogging inhi muddo par honi chahiye.... aasha karta hoo ki next time kisi aur janhit muddo par padhne ko milega.... read my blog.. www.aapkiawaj.blogspot.com
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