प्रेम प्याला पत्रकार पिया.........


नाम नहीं बताउंगा। सारा खेल ही तो नाम का है। ख़बर ही तो सूत्रों के हवाले से निकलती है। ऐसे में नाम का गुमनाम रहना ही बेहतर है। हालांकि मेरे कुछ मित्रों को इस कहानी की पूरी हक़क़ीत मालूम है। शुरूआत में मुझे कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं, फैज़ की हैं,,,,,,,
सैर कर दुनिया की ग़ाफिल,
ज़िंदगानी फिर कहां,
ज़िंदगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहां।।
जी हां, जनाब ज़िंदगानी का ही लुत्फ़ उठा रहे थे। उनके सफर की शुरूआत भी एक बड़े चैनल से हुआ, और आज वे टीआरपी के ख़बरिया चैनल में 12 वें रैंक के चैनल में कार्यरत हैं, आप क्या ख़ूब कहेंगे कि आपको उसका पता नहीं बताया। मोहब्बत कब, किससे और किस उम्र में हो जाए, किसे मालूम? इश्क करने की कोई तय उम्र होती भी नहीं। अपने मटूकनाथ और जूली को ही देख लीजिए उम्र का फासला तो बाप-बेटी का होगा, लेकिन दिल के आगे किसका जोर चलता है,,,,जो ये जनाब अपने धड़कते दिल को काबू में कर लेते। लेकिन कहानी में एक ट्विस्ट भी है,,,दरअसल पिछले दिनों मैंने एक मूवी देखी। नाम था-“सैंडविच” । जिसमें गोविंदा की दो बीवियां रहती हैं....उसमे ही बाबा बने शम्मी कपूर कहते हैं- तू जिस बीवी को ज्यादा प्यार करता है, उसकी मौत हो जाएगी।लेकिन गोविंदा की दोनों बीवियां फिल्म ख़त्म होने के बाद भी सही-सलामत रहती हैं, गोली लगने के बाद भी। बाद में बाबा कहते हैं, हां तू अपनी दोनों बीवियों से एक-समान मोहब्बत करता है इसलिए दोनों बच गईं।
यहां मामला थोड़ा जायकेदार है। हमारे पत्रकार महोदय की अच्छी-खासी शादी-शुदा ज़िदगी है...एक बीवी जी हां, एक इसलिए कि होने को तो अनेक भी हो सकती हैं, खैर, एक प्यारा-सा बेटा भी है। उनके मुताबिक़ पत्नी से हमेशा अनबन रहती है, उनकी ज़िंदगी जैसे जहन्नुम हो गई है, उपर वाले ने हमेशा उनसे कुछ छीना ही है, दिया कुछ नहीं.........लेकिन अपने बेटे को बेइंतहा चाहते हैं, इसीलिए अपनी बीवी के साथ हैं, नहीं तो ज़माने में उनके जीने का तो कोई सहारा ही नहीं है....दुनिया में थोड़ा ग़म है, मेरा ग़म सबसे नम है...ये सारा दुखरा जनाब ने अपने ही ऑफिस में काम करने वाली ख़ूबसूरत महिला पत्रकार को सुनाया और माशा-अल्ला सुनकर उनका भी दिल भर आया...बात आगे बढ़ी, दो दिलवालों का मिलन हुआ...नित-नए कसमें-वादे खाए जाने लगें...पत्रकार महोदय को तो मानो जन्नत मिल गई। साथ लंच, घंटो फोन पर चिपके रहना, काग़ज के चिरकुट पर संदेशों का लेनदेन...लेकिन कहते हैं न..... इश्क छुपता नहीं छुपाने से,,,,इश्क पूरी तरह परवान चढता, पहले ही राज़ आम हो गया, इनके भी इश्क का वायरस पूरे ऑफिस में संक्रमित हो गया...एक अच्छे ओहदे पर क़ाबिज होने और बीवी-बच्चे वाला होने की वज़ह से राज़ का आम हो जाना बदनामी का सबब ले कर आया...प्रेमी पत्रकार साहब को लगा अब पानी सर के उपर से गुजर रहा है तो प्रेमिका को चैनल से निकलवा दिया भरोसा ये कि कहीं और लगवा दूंगा, यहां ज़माना हमे जीने नहीं देगा...और ऐसा स्वांग रचा कि लोगों को लगे सबकुछ ख़त्म हो गया..काफी हद तक सफलता भी मिली....लेकिन लड़की परेशान कि सात महीने तक की मेहनत पर पानी फिर गया। दरअसल ये नई पत्रकार साहिबा सात महीने से बेगारी में ही काम कर रही थीं, लाख जतन करने के बाद भी जॉब परमानेंट नहीं हो पा रहा था...एक से एक पासा फेंकने के बाद भी कुछ दिख नहीं रहा था..उधर बदनामी का पारा चढ़ता ही जा रहा था. लड़की भी खेल थोड़ा बहुत समझने लगी थी..लेकिन वो भी हार मानने वाली नहीं थी। लेकिन सबसे बड़ा झटका तो प्रेमी पत्रकार साहब को लगा था..बिना कुछ किए-धड़े बदनामी को गले लगा लिया,,तो फिर खेल शुरू हुआ “इमोशनल अत्याचार” का। एक नौजवान, प्रेमी,तिस पर पत्रकार के आंखों से आंसूओं का सैलाब बहने लगा। ऐसा कि पूरा चैनल ही डूब जाए। हररोज़ यह जताने की कोशिश कि अब तो बस चार दिनों का ही मेहमान हूं मैं। उधर परवान चढ़ते प्रेम और बदनामी के दाग ने महिला पत्रकार को कहीं का नहीं छोड़ा। फिर भी कहती फिरती हैं कि दाग़ अच्छे हैं...लेकिन हक़क़ीत देखें तो जिस चेज़ को हासिल करने के लिए उसने प्रेम किया, उसी ने फ़कीर बना दिया..मीरा बन दर-दर भटकती फिरती हैं..
और किसी पर इल्ज़ाम भी नहीं लगा सकती, क्योंकि
“कैसे हम इल्जाम लगाएं, बारिश की बौछारों पर।
हमने ख़ुद तस्वीर बनाई, मिट्टी की दीवारों पर।।“

11 comments:

  1. mai pahli baar aapke blog par aaya hun.... aane ka anibhav sukhad raha..bahut achha likhte hai aap

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  2. ... प्रभावशाली लेख ... शेर तो कमाल का है !!!!!

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  3. धन्यवाद अरविंद जी, दरअसल ये आप एक हक़क़ीत ही मानिए जो मैं बस आप सभी से साझा कर रहा हूं......उम्मीद है आगे भी ऐसे और दूसरे मुद्दों से आप सभी की सेवा करता रहूंगा................

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  4. अच्छा लिखा है. लगता है पुण्य प्रसून वाजपेयी की तरह आप भी मीडिया का 'इंट्रोस्पेक्शन' कर रहे हैं. वैसे ये लेख पढ़कर मै पात्रों और चैनल के बारे में समझ गया.

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  5. तुम तो बहुत समझदार निकले सबसे बड़ी बात पात्र भी समझ गए,,,,,,,,,,,,,,लेकिन न तो मीडिया को इंट्रोस्पेक्ट कर रहा हूं, और न ही पुण्य प्रसून वाजपेयी के मुक़ाबले कहीं ठहरता हूं...............

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  6. क्या लिखा है, हक़क़ीत या फ़साना। या किसी को फंसाना चाहते हो। लेकिन है उम्दा और मंडी बनती जा रही मीडिया की हक़क़ीत................

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  7. kamaal ka lekh hai ......sath me sher laazawaab

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  8. धन्यवाद ओम साहब, ये तो बस पर्दे के पीछे की कहानी है....................

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  9. bahut khub chandan sahab prem or patrkar pata nahi kab tak chalegi ye sarkar

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  10. मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं, यहां पर्दे की आड़ में बहुत कुछ होता है और किसी को कानों कान ख़बर तक नहीं होती............

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  11. सरकार तो जोड़तोड़ की राजनीति से चलती है,और यहां भी किस्सा लगभग वही है,,,,,,,

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