आख़िर कसूर किसका ?


आतंकवाद, उग्रवाद और नक्सलवाद, जी हां ये महज अल्फाज़ नहीं हैं। आज ये एक ऐसी विचारधारा के रूप में हमारे सामने है जो बेहद ही ख़ौफनाक शक्ल अख़्तियार कर चुका है। केवल बेग़ुनाहों का कत्लेआम ही इनका मक़सद है। सिविल सोसायटी में इनके लिए कोई जगह नहीं है। आज ऐसे समूहों की तादाद एक या दो नहीं है, बल्कि लाखों से कम भी नहीं है। आख़िर कभी हमने ढंग से सोचने या समझने की कोशिश की, किस वजह से समाज के ये लोग समाज के ही ख़िलाफ हो गए। चलिए एक हद तक ये मान भी लेते हैं कि अतिवादी सोच ने इन्हें अपनों का दुश्मन बना दिया,अपनी हुकूमत या कहें तो अपने मुताबिक़ दुनिया चलाने की जिद ने इन्हें अपनों से दूर कर दिया। लोकतांत्रिक व्यवस्था में यकीन न होना, ख़ून-खराबा करना इनकी फितरत बन चुकी है। लेकिन क्या सही में यही सच्चाई है?

आज देश में नक्सली समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि हर रोज ही कहीं न कहीं किसी वारदात की ख़बर मिल ही जाती है। इन्हें राष्ट्रविरोधी कहकर इनके खिलाफ़ कार्रवाई कर , वास्तविक समस्या से मुंह मोड़ लिया जाता है। दरअसल प्रॉब्लम वहां नहीं, ग़रीबों की वोटों से बनी सरकार अमीरों की अमीरी बढ़ाने का काम करती है और इसे राष्ट्रीय समृद्धि बताकर फूले नहीं समाती। और जो हिंसा नक्सलवाद और आतंकवाद के नाम पर हो रही है, उसके पीछे स्टेट का कितना आतंक है, यह सवाल आते ही देशभक्ति का ऐसा जज्बा जगाया जाता है, कि हर कोई लाचार हो जाता है। यह लाचारी किस हद तक समाज के भीतर या कहें राज्य के सिस्टम में मौजूद है, यह समझना काफी मुश्किल है। आगर राज्य की नीतियां राज्यहित और राज्य की जनता के ही ख़िलाफ़ हैं, तो कोई न्याय की गुहार करने कहां जाएगा? जब देश के सबसे अमीर और ग़रीब आदमी के बीच नब्बे लाख गुना का फ़र्क हो और इस हालत में जब सतहत्तर फीसदी आबादी रोज़ बीस से भी कम रूपये पर गुजारा करने को मज़बूर हो, उसे पता नहीं कि सुबह के बाद रात को खाने को कुछ नसीब होगा भी नहीं ऐसे में फिर कौन से रास्ते बचते हैं। बर्दाश्त करने वाला कर जाता है जो नहीं करता वो विद्रोह करता है, सरकार उसे नक्सलवादी कहती है, देशद्रोही कहती है।

3 comments:

  1. your post is thought-provoking but which civil society is civil now...People now don't hesitate to take law in own hand, in general, and this make me ... wotsay...

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  2. exactly, actually government don't like to solve the problem, because if the the problem will be solved then they would not have the issue for doing politics. but when the problem goes extreme people don't hesitate to take law in his own hand.............

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  3. मैं आपकी बातो से पूरी तरह सहमत हूं,दरअसल अति ही लोगों को कानून अपने हाथों में लेने को मज़बूर करती है , जब उनके पास कोई विकल्प नहीं होता फिर लोग कभी अपने हाथो में हथियार उठाने को मज़बूर हो जाते हैं, तो वहीं सरकार समस्या का समाधान करने के बजाय उसे और पेचीदा बना देती है........

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