एनडीटीवी इंडिया....चला इंडिया टीवी की राह !

लगता है ये कुछ ज़्यादा ही मैंने कह दिया। मुझे इतनी भी बेरूख़ी से इस तरह की बातें नहीं कहनी चाहिए। हो सकता है एनडीटीवी वाले मुझ पर मानहानि का दावा कर दें। लेकिन क्या करूं, लगता है जिन्ना का जिन्न मेरे अंदर भी समा गया है। दिन-रात सपने में आकर अपने वजूद का एहसास दिलाते रहते हैं, क़ायदे साहब। इसलिए जो दिलोदिमाग़ में इस क़दर घर चुका है, उन्हें शब्दों में उकेरने के लिए मज़बूर हूं। इसके लिए मुझे माफ़ कीजिएगा, मैं मज़बूर हूं...ख़ैर, आपने ये पंक्तियां तो सुनी ही होंगी॥
कौन कहता है, आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो, यारो ! एनडीटीवी वालों ने सही में पत्थर उछाला भी था, उनका मिजाज भी शायद दुरूस्त ही था, लेकिन एक ग़लती कर बैठे पत्थर किचड़ में दे मारा। फिर होना क्या था, इस हमाम में वह भी नंगे हो गए। कल तक पब्लिक और दूसरे चैनल वालों को सबक सिखा रहे थे, आज ख़ुद ककहरा भी भूल बैठे। क्या ज़रूरत थी लोगों को सीख देने की जब एक दिन वही सब करना था।हाल में, एनडीटीवी के कई पत्रकारों को अवार्ड मिला लेकिन शायद वे सारे अपनी झोली में बटोरना चाहते थे, रजत शर्मा से बेस्ट एंटरप्रेन्योर का अवार्ड भी छीनना चाहते थे। कोई बात नहीं यह मंशा भी अगले साल पूरी हो ही जाएगी। अब बात कीजिए उनके नए फॉरमेट की जिससे एनडीटीवी का कायाकल्प हुआ है...कभी ६-७ के बीच रहने वाली उनकी टीआरपी दो अंकों में पहुंच गई। कोई बुरी बात नहीं। बधाई हो। लेकिन कैसे ? कभी इंडिया टीवी को यू-ट्यूब चैनल कहते थे, शायद अभी भी। लेकिन यह चैनल भी अब अजब-ग़जब में फंस गया है। ख़बर बिना ब्रेक के रात नौ बजे ज़्यादातर पेज-थ्री की ख़बरें, फिलहाल तीन-चार दिनों से नहीं देख रहा एनडीटीवी तो बदलाव और भी मुमकिन है-पोजिटीव और निगेटिव भी। कभी स्पेशल रिपोर्ट जो कि जान थी वाकई स्पेशल हो चुकी है। मेरे एक मित्र ने बताया अब तो ब्रेकिंग न्यूज़ भी इस पर माशा-अल्ला आने लगे हैं- अगर ज़्यादा ज़रूरी न हो तो घर से न निकलें। ठीक है साहब नहीं निकलेंगे। अपने फेसबुक पर एकबार फिर रवीश कुमार ने आप सभी से राय मांगी है कि आप रात १० बजे किस तरह की ख़बरें देखना पसंद करते हैं, तो बता दीजिएगा मेरी तरफ से भी शायद उनकी अदालत में हमारी फरियादों की सुनवाई हो जाए।
एक बार फिर कहूंगा, कुछ ज़्यादा ही परेशान हो रहा हूं मैं एनडीटीवी इंडिया के लिए। क्या करूं आख़िर जिन्ना साहब मेरा पीछा भी तो नहीं छोड़ रहे। क़ायदे साहब रवीश के सपने में आए, मेरे सपने में भी आए और कहा उस रवीश को समझाते क्यों नहीं, कि जो शीशे के घरों में रहते हैं, वो दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं मारते।

2 comments:

  1. मैं तो कहूंगा की NDTV (Nehru Dynasty TV) के मोह को छोडो और इन्टरनेट की राह देखो |

    वैसे भी आज - कल बिलकुल सही समाचार तो किसी न्यूज़ चॅनल से मिलते तो हैं नहीं | NDTV पर हर खबर मैं खबर कम और उनके विचार ज्यादा होते हैं | और कई ख़बरों को ऐसा गोल कर जाते हैं की क्या बताएं !

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  2. पत्रकारिता की बातें आप तो रहने ही दो... ndtv का आज भी कोई मुकाबला नहीं...

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