न्यूज़-चैनलों ने बर्बाद कर दिया मीडिया

प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों ही मीडिया के रूप हैं। दोनों में फ़र्क़ भी बिल्कुल साफ है। इस क्षेत्र की जहां अपनी सीमाएं हैं, तो वहीं इलेक्ट्रॉनिक के लिए यह बात नहीं कही जा सकती। लेकिन एक हक़ीक़त यह भी है कि दोनों का एक दूसरे पर विश्वास भी नहीं के बराबर ही है। आख़िर इसकी वदह क्या हो सकती है, इस पर लंबी बस चली है और आगे भी चलती रहेगी। इसमें कोई अचरज की बात नहीं है। इनमें एक दो बातें बिल्कुल सामान्य सी है, जो सभी को सीधे तौर पर समझ में आती भी हैं। यह कि जिस तरह से पल-पल की ख़बरसे हम इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से लोगों तक पहुंचाते हैं, ऐसा कर पाना प्रिंट के लिए नामुमकिन है। और कितनी भी बड़ी ख़बर क्यों न हो, वह कल सुबह तक ही आप तक पहुंचेगी। तबतक टीवी वेले उसकी इतनी कचूमर निकाल चुके होते हैं, कि शायद पाठक उस चीज़ के प्रति उतनी उत्सुकता नहीं लेते जितनी उन्हें किसी घटना के बारे में टीवी से तत्काल मिलती है। इस तरह कई और बातें हैं, जिसका प्रत्यक्ष फ़ायदा टीवी के लोगों को मिलता है। लेकिन आज जिस तरह से न्यूज़-चैनलों की विश्वसनीयता गिरी है, इस मामले में अख़बार वाले (प्रिंट) चैनलों से बाजी मारते नज़र ही नहीं आते, बल्कि उनसे कोसों आगे हैं। और आज के समय में इसके मामने में कोई बदलाव भी नज़र आता नहीं दिखता। इसकी भी साफ वजह है। बाज़ार आज इस क़दर हावी हो चुका है कि चैनलों पर कि उन्हें टीआरपी के अलावा कुछ भी नहीं दिखता। उनकी विश्वसनीयता का आलम यह है कि हाल ही में आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री का हवाईजहाज गुम हो गया, इस दौरान पता नहीं इंडिया टीवी के मैनेजिंग एडीटर विनोद कापड़ी को कहां से ख़बर मिल गई, जहाज का पता चल गया है और मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी सही सलामत हैं। इस ख़बर को सहारा समय ने भी चलाया। जो कि बाद में कोड़ी कल्पना साबित हुई। ख़ैर इंडिया टीवी तो ऐसी कल्पना लोक में विचरता रहता है। लेकिन बात अहम यह है कि टीवी चैनलों ने ख़बर के नाम पर जो खिलवाड़ दिखाना शुरू किय़ा है, उसने तो मीडियी की विश्वसनीयता की ऐसा-तैसी कर दी है। इस मामले में अख़बारों की हालत थोड़ी ठीक ठाक ही है, हालांकि यहां भी ख़बरें पैसे देकर छापने जैसी बातें होती रहती हैं। यक़ीन का लेवल इस क़दर गिरा है कि पत्रकारों के सम्मेलन में एक केंद्रीय मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि मीडिया वाले चाहे जो कुछ भी दिखाते या छापते रहें, हमें कुछ नहीं फ़र्क़ पड़ता। तो ये हालत है मीडिया के विश्वनीयता की। लोग कह रहे हैं, आजकल मीडिया में बहुत बुरा दौर चल रहा है, मैं समझता हूं, वाक़ई। लेकिन यह आर्थिक मंदी का नहीं, बुरा दौर है इसकी पहचान और विश्वसनीयता की मंदी का.

6 comments:

  1. क्या क्या गिनाये?सबसे ज़ल्दी खबर दिखाने के चक्कर मे इन्होने एक पूर्व राष्ट्रपति की मृत्यु से पहले ही खबर दिखा दी थी।

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  2. sahee kahaa bahaai aapne ..
    lakin sawak is baat kaa nhee hai ki news chaanles barbad ho rahe hai ... sawal ye hai aakhir ye kaise ruke gi.

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  3. बिचारो को मथती हुई पोस्ट .....सुन्दर

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  4. maine to news chennels dekhane hi chod diye hain. bakvas ke alava kuch nahi...

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  5. आपने बिल्कुल सही फ़रमाया है! मीडिया वालों को सिर्फ़ मसाला जोड़ने के अलावा और कोई काम नहीं है इसलिए आजकल टीवी पर ख़बर देखने को मन नहीं करता!

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