महंगाई यानी ग़रीबों पर लगने वाला टैक्स

कांग्रेस ने 1991-९६ में आर्थिक सुधारों को लागू किया और बीजेपी ने एनडीए के अगुवा दल के तौर पर उनको आगे बढ़ाया। शायद यही वजह है कि बीजेपी भी महंगाई के मुद्दे पर कुछ नहीं बोल रही है। पिछले दिनों ही इस मसले पर उसने सरकार को घेरने की कोशिश की, लेकिन लिब्रहान रिपोर्ट लोकसभा में आने के बाद वह ख़ुद घिरी लगती है या कहें कि जिस पार्टी की हालत खस्ता बनी हुई थी, उसमें जान आ गई है। इसीलिए वह भी महंगाई यानी आम आदमी के मसले को छोड़कर, लिब्रहान के पीछे पड़ गई। जबकि महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़कर रख दी है। विपक्षी पार्टी होने के नाते उसे सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करनी चाहिए थी, ताकि सरकार पर आम आदमी के लिए ज़रूरी दैनिक चीज़ों की क़ीमतों पर क़ाबू पाने के लिए दबाव बनाया जा सके। महंगाई की स्थिति यह है कि पिछले दो तीन वर्षों में ही ज़रूरी खाद्य पदार्थों मसलन चावल, दाल, आटा, सब्ज़ी की क़ीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। फिर भी सरकार इन पर क़ाबू पाने के लिए कुछ भी नहीं कर रही है। हां, अगर कुछ किया भी है तो बस इतना कि दिल्ली की सरकार सरकारी स्टॉलों और मदर डेयरी के स्टॉलों पर दाल बेचना शुरू किया। लेकिन जब पानी सर के ऊपर से गुज़र गया तो उसे भी पता चला कि दाल बेचना कितना मुश्किल है। दरअसल, दाल के दामों की स्थिति यह है कि इसकी क़ीमतें दिन दोगुनी और रात चौगुनी बढ़ती जा रही है। ऐसे में महंगाई नियंत्रण से बाहर हो जाए तो आम आदमी की हालत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। यदि अरहर समेत कई दाल सौ से भी अधिक रुपए प्रति किग्रा की दर से मिले तो देश की सतहत्तर फ़ीसदी आबादी जो हर रोज़ महज़ बीस रुपए कमाती है, उसकी दाल कैसे गलेगी?
दरअसल सरकार को चाहिए कि वह दाल बेचने के बजाय दाल की क़ीमतों पर लगाम लगाए। पर सरकार किन किन चीज़ों की क़ीमत क़ाबू में रखने की असफल कोशिश करेगी। यहां बात महज़ दाल की नहीं है। दाल के साथ-साथ आटा भी गीला होने लगा है। पहले जो आटा दस रुपए प्रति किग्रा मिला करता था, उसकी क़ीमत भी दोगुनी हो गई है। यानी पहले जो आम जनता दाल रोटी खाकर प्रभु का गुण गाया करती थी, सरकारी नीतियों एवं उसकी वजह से बढ़ती महंगाई के कारण वह न तो दाल रोटी खा पा रही है और न ही उससे प्रभु का गुणगान करते बन रहा है। क्योंकि भूखे पेट भजन न होत गोपाला...........शेष जारी..........

1 comment:

  1. बढ़िया विश्लेषण..जारी रहिये.

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