झूठ का तर्क-कुतर्क

हम झूठ क्यों बोलते हैं? सभी जानते हैं कि यह हमारी फितरत कभी नहीं रही है. इसके बावजूद झूठ बोलने का हमारा सिलसिला बदस्तूर जारी है. मुझे लगता है झूठ इंसान दो वजहों से बोलता है. एक, खुद का बचाव करने के लिए और दूसरी वजह है यह कि  दूसरों पर इलज़ाम या आरोप लगाने के लिए. इसके अलावा भी और कई वजहें हैं, जो लोगों को झूठ बोलने के लिए उकसाते हैं. पहले वाले दो वजह में मकसद किसी गलती से अपना पल्ला छुड़ाना होता है या नुकसान पहुंचाना, वहीं बाकी मामलों में झूठ हम आदतन बोलते हैं. अपनी तारीफ सुनने-सुनाने के लिए और दूसरों की चापलूसी करने के लिए. ये चार तरह के जो झूठ हैं, भारतीय समाज या मोटामोटी कह सकते हैं किसी भी समाज में आपको देखने को मिल जायेंगे. झूठ  के और भी कर प्रकार हो सकते हैं. ज़रुरत है शोध की. फ़िलहाल दो और पराकारों की बात मैं कर सकता हूँ. एक- जो किसी को नुकसान पहुँचाने के लिए बोले जाते हैं और दूसरा, जिसके बोलने से किसी का कोई अहित नहीं होता है. कुछ लोग इसलिए भी झूठ बोलते हैं कि वह कुछ कहना चाहते हैं. बस कहना चाहते है और चुप रहना उनकी आदत नहीं. उदहारण के तौर पर, इसे कुछ इस तरह से समझा जा सकता है. मै आजकल इम्तिहान दे रहा हूँ. तो इम्तिहान शुरू होने से पहले हम कुछ दोस्त इकट्ठा होते हैं और चंद सवालों पर चर्चा करते हैं. मेरे पास कहने को कुछ खास नहीं होता है फिर मैं चाहता हूँ कि बेवक़ूफ़ न समझा जा सकूं तो उनके बीच मैं भी कुछ कहना शुरू कर देता हूँ. हालाँकि, अगर मैं कुछ न भी कहूं तो भी काम चल जाता, लेकिन मैं बोलता हूँ.
झूठ का विभाजन यदि हम आधिकारिक तौर पर करें तो, इसमें पहला झूठ होगा, कार्यालयी या दफ्तरी झूठ. यह दफ्तर में बॉस को या अपने से वरिष्ठ अधिकारी को तेल लगाने के लिए बोला जाता है. अपना नंबर बढ़ाने के लिए. तेल संप्रदाय का चलन जेएनयू से चला है, जहाँ लोगों को एक दूसरे से चिपकने की आदत होती है, उन्हें इस सम्प्रदाय में रखा जाता है. हालाँकि, यह एक अलग ही प्रजाति या सम्प्रदाय है, जिसके बारें में फिर कभी बात विस्तार से की जा सकती है. झूठ के बारें में इतना कुछ लिखने के बाद कह सकता हूँ कि अभी भी मेरा ज्ञान इस विषय में बहुत काम है. शोध और खोज की बेहद ज़रुरत है. इसके लिए वक़्त की ज़रुरत है. कह सकता हूँ कि वक़्त का रोना रो कर जो मैं बहाना बना रहा हूँ, यह भी एक तरह का झूठ है. मेरा यह झूठ इसलिए है कि मुझे लगता है मैंने इस लेख को तरह से धारदार नहीं बनाया जिसकी कामना मैंने की थी.  पर, इतनी बात ईमानदारी से कह सकता हूँ कि अगली बार पूरी तैयारी से अपने काम को अंजाम दूंगा. बगैर हथियार (शोध) के मैदान में कभी नहीं कदम रखूंगा.

5 comments:

  1. yar tumne likha to achcha hai lekin mujhe lagta hai is main aap udharan de ke bhi likh sakte the... lekin koi bat nahi aap ne ye bhi likha hai ki aage main ise our badiya tarike se likhunga to hame uska besabri se intjar rahega..... hame mins mujhe to khas..... our kamna karta hoon ki aap ispe jaldi hi likhenge........

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  2. jhooth hamesha jhooth chhipane ko hi bola jata hai satya ko aise kisi parde ki zaroorat hi nahi. aapka chintan achchha hai.mere blog[http://shalinikaushik2.blogspot.com]par bhi aakar mera utsahverdhankaren.

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  3. कुछ तो मजबूरी हो जाती है कि झूठ निकल जाता है।

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  4. @ravi, koshish karunga udaharan ke sath batane ki, par mushkil hai nam ka khulasa dushmani ki vajah ban jati hai...@shivam ji bahut bahut shukriya...@ shalini ji aapke blog ko dekha aur comment bhi kiya...aur aapke tippanee ke liye bahut bahut dhnyawad...

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