आजकल चैनलों पर वही घिसी-पिटी ही ख़बरें देखने को मिलती हैं। अब तो बोरियत भी महसूस होने लगी है, टीवी देखने से। वही उमर अब्दुल्ला और श्रीनगर सेक्स कांड, पाक पीएम गिलानी और मनमोहन सिंह के साझा बयान में बलूचिस्तान का ज़िक्र होने पर हो-हल्ला, पीएम की संसद में सफाई... ये सभी बोरियत का एहसास दिलाते हैं, लेकिन हां कुछ चीज़ें हैं जो दिल खुश कर देती हैं। जब न्यूज़ चैनल पर चटपटी ख़बरों में सलमान, दीपिका और फ़राह की झलक दस का दम में जो दिखाया जाता है, कसम से रोमांच भर देता है। वो दीपिका का सलमान की कलाई मोड़ते हुए, शर्माते हुए डायलॉग बोलना कलमुंही चल बर्तन मांज तो एक गुदगुदी पैदा करती है, जनाब। कसम से मज़ा आ गया। लेकिन फिर वही जब महंगाई का ज़िक्र...परंपरा के नाम पर बच्चों को मंदिर की छत से फेंकना...मेट्रो हादसे को दिखाना यार बोर करने लगती है...भाई साहब मज़ा आ जाता है जब राखी का स्वयंवर की झलकियां देखता हूं, हालांकि राखी मुझे कतई अच्छी नहीं लगती, लेकिन एकबारगी सोचता हूं, काश मैं भी चला गया होता स्वयंवर में तो बहुत ही मज़ा आता। लेकिन कोई नहीं जी, यहां बैठे-बैठे देखना भी कम रोमांच नहीं देता है। और तो और जब प्रोमो देखता हूं तभी लग जाता है, इस खबर में जरूर दम है, मसलन कल रात सलमान की आंखे क्यों लाल थीं...पहले तो सोचता हूं वही पी-पा के किया होगा इधर-उधर कुछ लेकिन फिर भी मज़बूर कर देता दिल कि एक झलक तो देख ही लूं...हालांकि देखने के बाद बहुत पछताया समय बर्बाद कर दिया इसे देखकर... लेकिन क्या करूं प्रोमो ही इतना ज़बरदस्त था कि ख़ुद को रोक ही नहीं पाया...जी ऐसे होने चाहिए सेगमेंट जो आपको मज़बूर कर दे देखने को, नहीं तो वही बोर होते रहिए...गुर्जर आरक्षण, रिभु हत्याकांड में मोबाइल और गाड़ी बरामद, किसानों की आत्महत्या, और उमर अब्दुल्ला और बेग साहब की सफाई देखकर.....
एक न्यूज़-चैनल दर्शक की इच्छा !!!
आजकल चैनलों पर वही घिसी-पिटी ही ख़बरें देखने को मिलती हैं। अब तो बोरियत भी महसूस होने लगी है, टीवी देखने से। वही उमर अब्दुल्ला और श्रीनगर सेक्स कांड, पाक पीएम गिलानी और मनमोहन सिंह के साझा बयान में बलूचिस्तान का ज़िक्र होने पर हो-हल्ला, पीएम की संसद में सफाई... ये सभी बोरियत का एहसास दिलाते हैं, लेकिन हां कुछ चीज़ें हैं जो दिल खुश कर देती हैं। जब न्यूज़ चैनल पर चटपटी ख़बरों में सलमान, दीपिका और फ़राह की झलक दस का दम में जो दिखाया जाता है, कसम से रोमांच भर देता है। वो दीपिका का सलमान की कलाई मोड़ते हुए, शर्माते हुए डायलॉग बोलना कलमुंही चल बर्तन मांज तो एक गुदगुदी पैदा करती है, जनाब। कसम से मज़ा आ गया। लेकिन फिर वही जब महंगाई का ज़िक्र...परंपरा के नाम पर बच्चों को मंदिर की छत से फेंकना...मेट्रो हादसे को दिखाना यार बोर करने लगती है...भाई साहब मज़ा आ जाता है जब राखी का स्वयंवर की झलकियां देखता हूं, हालांकि राखी मुझे कतई अच्छी नहीं लगती, लेकिन एकबारगी सोचता हूं, काश मैं भी चला गया होता स्वयंवर में तो बहुत ही मज़ा आता। लेकिन कोई नहीं जी, यहां बैठे-बैठे देखना भी कम रोमांच नहीं देता है। और तो और जब प्रोमो देखता हूं तभी लग जाता है, इस खबर में जरूर दम है, मसलन कल रात सलमान की आंखे क्यों लाल थीं...पहले तो सोचता हूं वही पी-पा के किया होगा इधर-उधर कुछ लेकिन फिर भी मज़बूर कर देता दिल कि एक झलक तो देख ही लूं...हालांकि देखने के बाद बहुत पछताया समय बर्बाद कर दिया इसे देखकर... लेकिन क्या करूं प्रोमो ही इतना ज़बरदस्त था कि ख़ुद को रोक ही नहीं पाया...जी ऐसे होने चाहिए सेगमेंट जो आपको मज़बूर कर दे देखने को, नहीं तो वही बोर होते रहिए...गुर्जर आरक्षण, रिभु हत्याकांड में मोबाइल और गाड़ी बरामद, किसानों की आत्महत्या, और उमर अब्दुल्ला और बेग साहब की सफाई देखकर.....
बचपन का प्यार

वो बचपन, पुराने संगी-साथी
याद आती है उन पलों की,
जो कभी बिताए थे उनके साथ...
अनजान थी वो या था एक बचपना
कोई कुछ भी नाम दे उसे,
पर थी वो सबसे अलग सबसे ज़ुदा।
हमने गुजारे साथ-साथ कुछ पल
उन यादों के बहाने
वो रही मेरी धड़कनों में
सासों के बहाने।
जब भी ख़ुद को तन्हा और अकेला पाया,
चुपचाप-सी आई तुम मेरे पास,
एक विश्वास और प्रेरणा बन
इस जहां में जीने की एक आस के सहारे...
अनजानी राहें
लेकिन कुछ भी करता नहीं,
ललक सबसे आगे बढ़ने की,
पर मैं दौड़ता नहीं,
ये कौन बताए ज़माने को,
कि जीना ही सिर्फ़ मेरा मक़सद नहीं।
कभी- कभी तो ज़िंदगी भी नीरस लगती है,
पर सोचता हूं, उन ख़्वाबों का क्या?
जिन्हें यकीं है पूरा करने की...
सभी को मलूम हैं अपनी मंजिलें
और डगर है अनजान
फिर भी डर नहीं अनजानी राहों पर चलने की।
छोटी की पहली कविता
सवालों के घेरे में मीडिया
आज मीडिया की नैतिक दुनिया काफी बदल गई है। एक अख़बार में दस से पंद्रह लोग मार्केट कवर कर रहे हैं, फैशन-डिज़ाइन और ग्लैमर संवाददाता हैं, लेकिन ग्रामीण और शहरी ग़रीबों को कवर करने वाला कोई पूर्णकालिक संवाददाता नहीं है। सामाजिक क्षेत्र की समस्याएं जिस हिसाब से बढ़ रही हैं, इस क्षेत्र को कवर करने वाले संवाददाताओं की बीट उसी अनुपात में घट रही हैं।वैलेन्टान डे १४ फरवरी, करगिल मालूम नहीं..
आज विजय दिवस है। करगिल फतह का दिन। हमारे सैकड़ों जवानों ने अपनी कुर्बानी से हमें महफूज किया। लेकिन हम शायद उनके बलिदान की अहमियत को समझने की कोशिश भी नहीं करते। कहते हैं, आज ग्लोब्लाइजेशन का जमाना है। कोई भी चीज हमारी पहुंच से दूर नहीं है। पूरी दुनिया ने एक गांव की शक्ल अख़्तियार कर ली है। इस मायने में कि कोई भी सूचना, जानकारी हमारी अंगुलियों पर घूमती है। लेकिन, आज हम यूथ अपनी आज़ादी के नाम पर कुछ भी करने की छूट तो मांगते हैं, एक गांव, ग़रीब का नौजवान सेना में भर्ती होकर अपनी जान गंवा कर हमारी रक्षा तो करता है, लेकिन बदले में हम उसे याद भी नहीं रखना चाहते।सोच रहा हूं मैं....

मन बोले राधा-राधा ना......
पैरों में पायल, हाथों में चूड़ियां, गले में मंगलसूत्र और मांग में सिंदूर और तिस पर लाल रंग की साड़ी। एक पुरूष ऐसे रूप को अख़्तियार कर सरे बाज़ार निकलने की सोच भी सकता है, यकीन नहीं होता। लेकिन जब कोई कृष्ण की दीवानी बनने की ठान ही ले तो सबकुछ मुमकिन है।कृष्ण के प्रेम ने इन्हें इस कदर व्याकुल कर दिया कि ये कहते हैं, "मैं पुरूष तो तन से हूं, मन तो पूरी तरह कृष्ण में रम चुका है। अब तो बस उनकी गोपी बनकर जीने की तमन्ना है।"ये हैं सरकारी नौकरी (अध्यापक) से सेवानिवृत, अब राधा सखी, कैलाशनाथ त्रिपाठी। इन्हें देखकर आपको एक और राधा आईजी पांडा की याद आ सकती है। जो पब्लिक की सेवा छोड़ कृष्ण की सेवा में रम गए। इस हिसाब से ये दूसरी राधा का ख़िताब पाने के वाजिब हक़दार हैं, लेकिन ये अपनी तुलना किसी से नहीं करना चाहते, कहते हैं... मैं तो बस कृष्ण की दीवानी हूं और उन्हीं की आराधना सेवा में अपनी जिंदगी बिताना चाहती हूं, तो इसमें बुराई क्या है ? अपने इस रूप को पब्लिसिटी-स्टंट कहे जाने पर बिफर पड़ते हैं...मैं कभी मीडिया के पास नहीं जाती, लोग मेरे पास आते हैं।
जी जनाब, तो ये हैं हमारे पांडा साहब के बाद की दूसरी राधा। कृष्ण की दीवानी राधा। कृष्ण के प्रेम में पागल राधा। कृष्ण के लिए सबकुछ कुर्बान करने वाली राधा। ये है राधा का देसी अंदाज़।
सहयोग....शुक्रवार
हरकत पुरानी, पैंतरा नया....

तस्वीर बिहार की

तमाशा दुनिया का

एक खाब अधूरा-सा
हर चीज़ तो है पास पर किसी की तलाश क्यों है ?
न जाने किसकी तलाश में निकला था
वो दूर है हमसे, पर उसका एहसास हरपाल साथ क्यों है ?
फासला ज़मीन और आसमां के बीच है,
फ़िर भी आसमां ज़मीं की प्यास बुझाता क्यों है ?
शिद्दत से इंतजार करता हूँ ऐसा कह नहीं सकता
पर ये भी सच है बिना तेरी यादों की एक पल भी नहीं गुजरता ।
लेकिन अब लगता है वो रिश्ता भी कमजोर हो रहा है,
बिना तेरे ये दिल जीने को मजबूर हो रहा है ।
कब तक करे कोई इंतजार उस पल का
जब न हो बाकी कोई अरमां उसके हबीब का ।