तस्वीर बिहार की


लोग कहते नहीं थक रहे कि अब बिहार में बदलाव आने लगा है। तरक्की यहां भी होने लगी है। अपराध कम हुआ है। जगह-जगह सड़कें बन रही हैं। मतलब हर जगह कुछ न कुछ हो रहा है, जिसे तरक्की का संकेत माना जा रहा है। तो आइए देखते हैं आख़िर कितना कुछ बदला है बिहार में इन दिनों में....

बदलाव का बयार ऐसा बहा है कि यहां अभी भी तकरीबन सवा करोड़ लोग ग़रीबी रेखा के नीचे जीने को मज़बूर हैं...लगभग दो दशमलव सात फीसदी लोग ग़रीबी और भूखमरी के शिकार हैं...सिर्फ पच्चीस फीसदी आबादी को ही सार्वजनिक स्वास्थ्य और शौचालय की सुविधा मिल पाती है...राष्ट्रीय औसत केवल एक दशमलव नौ फीसदी ही है...प्रति व्यक्ति सलाना आय की बात करें तो बिहार में महज दस हज़ार पांच सौ सत्तर रू ही है जबकि यही हरियाणा में अड़तालीस हज़ार तो गोवा में पच्चासी हज़ार रू प्रति व्यक्ति है । और बिहार में राष्ट्रीय औसत चौतीस हज़ार की अपेक्षा भी काफी कम है।

और बदलाव अगर कुछ हिस्से में आया है तो बस नीतिश सरकार के दौरान दो हज़ार करोड़ के निवेश का भरोसा, आख़िर भरोसे पर ही तो दुनिया कायम है...सरकार के कामकाज में सुधार, मज़दूरों के पलायन में कमी, कृषि और रियल स्टेट क्षेत्रों में बढ़ोतरी ये कुछ उम्मीदें। इसके सिवाय ठनठन गोपाल। कहते हैं अपराध पर काफी कुछ लगाम लग चुका है, लेकिन हाल की तस्वीर तो कुछ और ही बयां करती है...मसलन सत्येंद्र सिंह हत्याकांड जिसमें ख़ुद नेताजी विजय कृष्णन बेटे के साथ फरार हैं, इंजीनियर योगेंद्र पांडे आत्महत्या गुत्थी जिसमें ज़िला प्रशासन पर (एसपी)अंगुलियां साफ उठ रही हैं, तो देश के टॉप टेन ट्रांसपोर्टरों में चौथे स्थान पर शुमार संतोष टेकरीवाल की हत्या...ये तो बस महज कुछ ट्रेलर हैं। इससे तो यही लगता है एकबार फिर जंगलराज दस्तक देने लगा है और सुशासन बाबू के राज में दु:शासन सिर उठाने लगे हैं।

6 comments:

  1. इस पोस्ट में लिखी प्रति व्यक्ति आय के साथ अगर आप सालाना लिख दे तो बेहतर होगा।

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  2. ऐसी बात नहीं है, अगर आप सही नज़रिए से देखें तो बिहार विकास के रास्ते पर कदम दर कदम बढ़ा रहा है। पिछले 15 सालों के लालू शासन के दौरान जो दुर्गति बिहार की हुई उसकी भरपाई करने मं थोड़ा वक़्त तो लगेगा ही...साथ ही ये कि बिहार के साथ जो भेदभाव होता आया है उसका भी खामियाजा यहां की जनता को कम नहीं भुगतना पड़ रहा है...

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  3. पढ़ते हुए इधर आ गया लेकिन मुझे लगता है,सिर्फ यही हक़क़ीत नहीं है बिहार की. काफी कुछ जिसे सामने नहीं लाया जाता और बदनाम किया जाता है............

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  4. the people who criticise bihar, don´t live there. It is a worst situation with my state.

    Anyway, it will take some time from going negative to positive.

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  5. आपकी बातों से मैं बिल्कुल इत्तेफाक रखता हूं, बिहार को समझने की जरूरत है,और बदलाव की जो बयार बह रही है उम्मीद है वो और तेज़ हागी..लेकिन जरूरूत ईमानदार प्रयास की भी है, जो फिलहाल कहीं नहीं दिखती सिवास सरकारी फाइलों के

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  6. उम्मीद कैसे बंधेगी, जब तीन महीने का आश्वासन देने के बाद तीन साल में भी कानून व्यवस्था में कोई ख़ास सुधार न हो

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