मन बोले राधा-राधा ना......

पैरों में पायल, हाथों में चूड़ियां, गले में मंगलसूत्र और मांग में सिंदूर और तिस पर लाल रंग की साड़ी। एक पुरूष ऐसे रूप को अख़्तियार कर सरे बाज़ार निकलने की सोच भी सकता है, यकीन नहीं होता। लेकिन जब कोई कृष्ण की दीवानी बनने की ठान ही ले तो सबकुछ मुमकिन है।कृष्ण के प्रेम ने इन्हें इस कदर व्याकुल कर दिया कि ये कहते हैं, "मैं पुरूष तो तन से हूं, मन तो पूरी तरह कृष्ण में रम चुका है। अब तो बस उनकी गोपी बनकर जीने की तमन्ना है।"

ये हैं सरकारी नौकरी (अध्यापक) से सेवानिवृत, अब राधा सखी, कैलाशनाथ त्रिपाठी। इन्हें देखकर आपको एक और राधा आईजी पांडा की याद आ सकती है। जो पब्लिक की सेवा छोड़ कृष्ण की सेवा में रम गए। इस हिसाब से ये दूसरी राधा का ख़िताब पाने के वाजिब हक़दार हैं, लेकिन ये अपनी तुलना किसी से नहीं करना चाहते, कहते हैं... मैं तो बस कृष्ण की दीवानी हूं और उन्हीं की आराधना सेवा में अपनी जिंदगी बिताना चाहती हूं, तो इसमें बुराई क्या है ? अपने इस रूप को पब्लिसिटी-स्टंट कहे जाने पर बिफर पड़ते हैं...मैं कभी मीडिया के पास नहीं जाती, लोग मेरे पास आते हैं।

जी जनाब, तो ये हैं हमारे पांडा साहब के बाद की दूसरी राधा। कृष्ण की दीवानी राधा। कृष्ण के प्रेम में पागल राधा। कृष्ण के लिए सबकुछ कुर्बान करने वाली राधा। ये है राधा का देसी अंदाज़।



सहयोग....शुक्रवार

2 comments:

  1. यह भी एक प्यार है ......राधेश्याम .....राधेश्याम

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