वो बचपन, पुराने संगी-साथी
याद आती है उन पलों की,
जो कभी बिताए थे उनके साथ...
अनजान थी वो या था एक बचपना
कोई कुछ भी नाम दे उसे,
पर थी वो सबसे अलग सबसे ज़ुदा।
हमने गुजारे साथ-साथ कुछ पल
उन यादों के बहाने
वो रही मेरी धड़कनों में
सासों के बहाने।
जब भी ख़ुद को तन्हा और अकेला पाया,
चुपचाप-सी आई तुम मेरे पास,
एक विश्वास और प्रेरणा बन
इस जहां में जीने की एक आस के सहारे...
सचमुच में बहुत प्रभावशाली लेखन है... बहुत सुन्दरता पूर्ण ढंग से भावनाओं का सजीव चित्रण... आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी… बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteFrom- Meri Patrika
www.meripatrika.co.cc/
बहुत ही बढ़िया!
ReplyDeleteजब भी ख़ुद को तन्हा और अकेला पाया,
ReplyDeleteचुपचाप-सी आई तुम मेरे पास,
एक विश्वास और प्रेरणा बन
इस जहां में जीने की एक आस के सहारे...
bahut khush nasib hai koi aapake pas chupchap aaya ........swapanlok se utarati huee kisi pari katha jaisi lagati hai yah kwita
रवि श्रीवास्तवजी, बहुत-बहुत धन्यवाद, आपकी शुभकामनाओं के लिए बहुत-2 सुक्रिया........
ReplyDeleteओम आर्य जी आपको ख़ाश तौर पर विशेख बधाई, मेरे हौसला अफजाई के लिए.....उम्मीद है आप सभी की म्मीदों पर आगे भी खड़ा उतरूंगा...........
ReplyDeleteBahut shaandaar.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
धन्यवाद ज़ाकिर भाई
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