पाकिस्तान में लड़कियों की हालत
यह ख़बर पाकिस्तान की है. वहां से जुड़े हालात पर है. गनीमत है कि मैं अभी बम्बई, माफ़ी चाहूंगा मुंबई में नहीं हूं. मुम्बई नहीं लिखा तो मराठियों के ठेकेदार आकर मुझे मारने लगेंगे। मीडिया में मैं भी ख़बर बन जाऊंगा। ख़ैर, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकियों की बहुत मौत हो रही है। यह ख़बर दुनिया की मीडिया में है. लेकिन इन अमेरिकियों से ज़्यादा मौते हुई हैं, वहां कि लड़कियों की और न जाने कितनी गंभीर तौर पर घायल हैं. लेकिन यह ख़बर कहीं नहीं है. यह एक दूसरा चेहरा है मीडिया का. पूरी दुनिया भर की मीडिया का. हम सभी आज पाकिस्तान या अफ़ग़ानिस्तान को ख़बरों में पाते हैं तो बस आतंकवादी हमलों और धमाकों से. इसके अलावा कोई भी सकारात्मक ख़बर मीडिया में जगह नहीं बना पाती है। संवेदनाशील ख़बरों के लिए जगह की बात करना बेमानी ही है। ज़रा याद कीजिए स्वात की उस ख़बर को जब वहां एक पत्रकार को बड़ी बेरहमी मारा गया था। बेहद ही बुरे हालात थे। लड़कियों के स्कूल को निशाना बनाया जा रहा था. उन्हें तहस नहस किया गया. उस घटना के बाद जीयो न्यूज़ के पत्रकार ने वहां एक शो आयोजित किया. एक छोटी से बच्ची से चंद बातें की. उसकी तमन्ना पूछी कि वह अपना क्या मुस्तकबिल देखती है. तब उस लड़की ने जवाब दिया कि मैं पढ़ना चाहती हूं. चाहती हूं कि पाकिस्तान की सभी लड़कियां तालीम हासिल करे. उसके बाद उस लड़की युसरा, शायद यही नाम था कहीं भी ख़बरों में नहीं है. मुझे नहीं पता वह है भी या नहीं. या उस घटना के बाद कहां गई. लेकिन उस लड़की ने जो बात कही थी वह हमने भूला दिया. पूरी दुनिया की मीडिया ने याद रखा तो अमेरिकी फौज की ख़बरें. शायद यही उसके हित की बात थी. आज इस पूरे इलाक़े में सबसे ज़्यादा कोई दहशत में है तो ये बच्चियां. इन्हें घर से निकलने नहीं दिया जाता। आतंक की इस जंग में लड़कियों की जो हालत रही, कितनों की मौत हुई, कितनी तालीबानी हमले में मारी गईं। कितनी सेना की जवाबी कार्रवाई में और कितनी अमेरिका के आतंक के ख़िलाफ़ जंग की मुहिम में किसी को सही आंकड़ा और हालत का अंदाज़ा तक नहीं है। ऐसे में बाक़ियों की हालत क्या होगी....यह बताकर हम ख़ौफ़ पैदा करने में ज़रा भी नहीं हिचकेगें। शायद यही हमारी फितरत हो गई है.
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स्थितियाँ चिन्तनीय हैं और मीडिया की हालत अफसोसजनक!
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