अपनी आदत अभी भी नहीं बदली है मैंने,
लोगों के सामने सर झुकाना नहीं छोड़ा है मैंने।
दिल की तमन्ना दिल में ही दफ़न हो गए,
सारे आरजू बारिश की बूंदों की तरह बिखर गए,
फिर भी किसी को सताना नहीं छोड़ा है मैंने
आज आज़ाद हुए हैं तो लोगों को गुलाम बनाना,
शुरू कर दिया है मैंने।
कहां थे मेरे रहगुजर, जब ख़ून के आंसू रो रहा था मैं,
कोशिश हर मर्तबा करता हूं,
इन बुराइयों से दूर रहने की,
लेकिन मेरे अंदर जो शैतान है, उसे अभी तक
नहीं भूला सका हूं मैं।
काश कोई आए, मुझे समझाए,
मेरी उम्मीद और सपने सभी टूट चुके हैं,
इन्हें संजोने की तरकीब बताए कोई।
क्योंकि अपनी आदत अभी भी नहीं बदली है मैंने,
ख़ुद को सताना नहीं छोड़ा हैं मैंने।
बढ़िया है
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