आज भारत बंद रहा। सभी विपक्षी दल अलग-अलग, लेकिन मुद्दों पर साथ दिखे। लगता है भगवान का समर्थन भी विपक्ष के साथ था। मौसम खुशगवार। प्रदर्शन के माकूल। नहीं तो, दो दिन पहले जो गर्मी थी, वह बंद को विफल करने के लिए काफी थी। लेकिन, जनता के मुद्दे पर ऐन वक्त में इंद्र ने मानसून को दिल्ली भेज दिया। झूमो इस मानसून में और खूब करो प्रदर्शन। जैसे दिल्ली की अपनी अर्थ नीति नहीं है, वैसे ही अपना मौसम भी नहीं है। अर्थ नीति, जैसे डॉलर, पौंड, रुपया, यूरो, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से तय होती है, वैसे ही दिल्ली का मौसम कश्मीर, सिक्किम, राजस्थान आदि तय करते हैं। हालांकि, मेरी चिंता यह है कि इस बंद का कितना असर होगा? या फिर क्या असर पड़ा? देश की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी के अलावा सभी ने बंद को सफल बताया। भारतीय जनता को जबरन घरों में रहने के लिए मजबूर किया गया। यह बंद महंगाई के मुद्दे पर था। तो क्या इस बंद के बाद महंगाई कम हो जाएगी? वह भी तब, जबकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक दिन पहले ही कह दिया था, कोई कुछ भी कर ले बढ़ी कीमतों को वापस नहीं लिया जाएगा। मेरी समझ से आज सरकार की अर्थ नीति बड़े-बड़े उद्योग घराने तय कर रहे हैं। जिस तरह इन उद्योग घरानों का दबाव सरकार पर है। उसी तरह विपक्ष पर भी। सरकार चूंकि सत्ता में होती है, इसलिए वह अपने हर फैसले को सही ठहराने का तरकीब निकाल लेती है या फिर उसे जनता को जवाब तो पांच साल बाद देना होता है। चूंकि जनता की यादाश्त कमजोर होती है। तो पांच साल पूरे होने के चंद दिनों पहले यही सरकार लोकलुभावन योजनाओं का ऐलान करके जनता को खुश कर देती है। जनता भी इस झांसे में आ जाती है। सरकार को और क्या चाहिए। लेकिन, विपक्ष की हालत छछुंदर जैसी होती है। उसे तो मात मिली होती है। ऐसा नहीं कि उद्योग घरानों से उसके संपर्क नहीं होते हैं। चुनाव के वक्त पक्ष-विपक्ष दोनों को उद्योगपतियों से मोटी रकम मिलती है, चंदा के तौर पर। ऐसे में, वह भी अर्थ नीतियों के मसले पर सरकार का विरोध करती है तो नुकसान उद्योग जगत को ही है। वह इसे कैसे बर्दाश्त कर सकती है। विपक्ष जनता को भरमाने के लिए उतना ही करती है कि वह उनका ध्यान अपनी ओर कर सके। यह सब उसे खुद के अस्तित्व के लिए करना पड़ता है। महज एक दिन बंद का नाटक, इसी तरह की नौटंकियों का हिस्सा है। हमारे प्रधानमंत्री जब कह चुके, वह महंगाई के मुद्दे पर पीछे नहीं हटेंगे, तो ऐसे में विपक्ष सरकार के झुकने तक आंदोलन करे, तब तो लगे की जनहित में यह आंदोलन है। नहीं तो क्या एक दिन के बंद यज्ञ से जनता की सरकारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। यदि हां तो बंद को मेरा भी समर्थन। नहीं तो, जरा देश के इन दलालों से कौन पूछे एक देश को हाईजैक करने का अधिकार इन्हें किसने दिया। बंद क्या राजनीतिक दल ऐसे ही करते हैं। जो बंद में शामिल नहीं होना चाहते, उन्हें भी जबरन घसीटो। उसकी सरकार का समर्थक बताकर उसकी दुकान में तोड़फोड़ करो। रेल रोको। यात्रियों सवाल पूछे तो उसे मारो। मैं यह नहीं कह रहा कि बंद के दौरान यही सबकुछ हुआ। पर, हां यह हुआ जरूर।
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