मारो मारो मारो शोर था मारो
एक ओर साहब था
सेठ था सिपाही था एक ओर मैं था
मेरे पास आकर खड़ा एक राही था
बीस वर्ष
खो गए भरमे उपदेश में
एक पूरी पीढ़ी जनमी पली पुसी क्लेश में
बेगानी हो गई अपने ही देश में .....
2. कुछ होगा कुछ होगा अगर मैं बोलूंगा
न टूटे न टूटे तिलिस्म सत्ता का,
मेरे अंदर का कायर टूटेगा,
मेरे मन टूट एकबार सही तरह,
अच्छी तरह टूट झूठमूठ ऊब मत रूठ,
मत डूब सिर्फ जैसे कि परसों के बाद,
वह आया बैठ गया आदतन एक बहस छेड़कर,
दर्द दर्द मैंने कहा क्या अब नहीं होगा,
हर दिन मनुष्य से एक दर्जा नीचे रहने का दर्द।
3. कितना आसान है पागल हो जाना,
और भी जब उस पर इनाम मिलता है,
नक़ली दरवाज़े पीटते हैं जवान हाथों को,
काम सर को आराम मिलता है....
कितना आसान है नाम लिखा लेना,
मरते मनुष्य के बारे में क्या करूं क्या करूं मरते मनुष्य का...
कितना आसान है रख लेना अपने पास अपना वोट,
क्योंकि प्रतिद्वंद्वी अयोग्य है
रघुवीर सहाय की इन पंक्तियों की अहमियत और प्रासंगिकता, पिछले दिनों जो हुआ उस मायने में सबसे सटीक है...
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