सरकार समझिए तो हररोज महंगाई बढ़ाती जा रही है। फिर कहती है, भगवान ने चाहा तो कम भी हो जाएगी। आम आदमी के साथ वाली सरकार महंगाई से उसका गर्दन हलाल कर रही है। प्रधानमंत्रीजी देश में नहीं होते हैं और कई जरूरी चीजों के दाम अचानक से बढ़ा दिए जाते हैं। यह है इस देश की हालत। मनमोहन सिंह पंगु प्रधानमंत्री हो गए हैं। वह निकम्मों की तरह आम आदमी के मसलों पर बोलते हैं। तभी तो जी-20 शिखर सम्मेलन में विशेष विमान से भारत लौटते वक्त घिसीपिटा बयान दे डाला। बढ़ाई गई कीमतों के दाम वापस नहीं लिए जाएंगे। जैसे यह मुल्क उन्हें जागीर में मिली है। उन्होंने कहा भारत की जनता यह समझ जाएगी कि देश के विकास को पटरी पर बनाए रखने के लिए महंगाई बढ़ाना जरूरी है। फिर, वह ऐसा क्यों नहीं करते कि लोगों की आमदनी भी बढ़ा दे। फिर कहें कि लोगों के जिंदा रहने के लिए यह जरूरी है। सच कहूं, सरकार के हररोज आम आदमी के खिलाफ लिए जाने वाले फैसलों से खून खौलता है। इन देशद्रोही नेताओं के खिलाफ कुछ न कर पाने की मजबूरी पर खीझता हूं। यह देशद्रोही नहीं तो और क्या हैं? जो सरकार, मंत्री, नेता अपनी तनख्वाह और सुविधा में इजाफा के लिए संसद में विशेष प्रस्ताव लाता है, वहीं आम आदमी के जिम्मे देश का विकास छोड़ता है। देश कैसे चलता है और उसका विकास किस तरह होता है, यह कभी समझ में ही नहीं आया। जब कीमतें बढ़ती हैं तो आम आदमी को अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है। देश तरक्की करता है तो अमीरों की जेब भरती है। एकबार महंगाई में चीजों के दाम ऊपर चढ़े सो नीचे आने का नाम ही नहीं लेते। आम आदमी की आमदनी जो नीचे जाती है वह कभी बढ़ने का नाम नहीं लेती। यह सब उस नेता के प्रधानमंत्री रहते हो रहा, जो देश की आर्थिक क्रांति का जनक माना जाता है। शायद वह लाचार, बेबस और मजबूर हैं। या फिर आम आदमी के लिए जीवन दुभर करना सरकार की फितरत बन चुकी है। यह सच है कि सरकार की जानबूझकर इस तरह के आम आदमी के लिए अहितकारी फैसले नहीं लेती। पर, ऐसा तभी होता है जब सरकार को आम आदमी की फिक्र होती है। यह तो अमीरों की तरक्कीपसंद, जनता के लिए विकास का झुनझुना और लोकलुभावन लॉलीपॉप थमाने वाली सरकार है। पचास पैसा अपने पर खर्च करती है, 48 पैसा अमीरों के लिए और जनता बगावती तेवर न अपनी ले, उसकी सत्ता बची रही हो जनता के लिए उम्मीदों का 2 पैसा थमाती है। ताकि, जनता समझती रही कि सरकार उसके लिए भी फिक्रमंद है। पब्लिक भी उतनी ही बेवकूफ है, वह मान बैठती है कि सरकार उसके लिए सोचती तो है। पर, वह यह साजिश नहीं समझती है कि गरीबी खत्म करने की जगह उसकी नीतियां गरीबों को ही खत्म करने वाली है।
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