साइबर युद्ध : सबसे बड़ा खतरा और हमारी असफलता

ऐसा बहुत ही कम होता है कि कोई अपनी असफलता को स्वीकार लेता है. और ऐसा तो शायद ही कभी हुआ होगा कि किसी क्षेत्र या उद्योग विशेष से जुड़ी सभी कंपनियां एक साथ अपनी असफलता स्वीकार कर ले. लेकिन, ऐसी असफलता आज की कड़वी हकीकत है और साइबर क्षेत्र पर पूरी तरह लागू होती है. आज भारतीय जांच एजेंसी सीबीआइ से लेकर अमेरिकी रक्षा विभाग का मुख्यालय पेंटागन तक साइबर हमलों के शिकार रहे हैं. नये तरह के खतरनाक वायरस से ईरान के न्यूक्लिर प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया जा रहा है और ऐसे वायरस की काट ढूंढ़ने में एंटी वायरस कंपनियां पूरी तरह असफल साबित हो रही हैं.  
फ्लेम यानी साइबर जासूस : यह एक स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर है, जिसे कुछ इस तरह डिजाइन किया गया है कि यदि आप अपने कंप्यूटर के की-बोर्ड पर अंगुलियां रखते हैं तो उसकी आवाज से ही यह चोरी-छिपे आपके कंप्यूटर की सारी जानकारियां रिकॉर्ड कर लेगा और उसे ट्रांसमिट भी कर देगा. फ्लेम नाम का यह वायरस जानकारी चुराता है, इसलिए इसे साइबर जासूस का नाम दिया गया है. यह ऑडियो बातचीत पर भी नजर रख सकता है. यह कंप्यूटर के स्क्रीनशॉट लेकर हमलावर को भेज देता है. इतना ही नहीं, यह डिवाइस का ब्लूटूथ ऑन करके आसपास रखे अन्य ब्लूटूथ डिवाइस से भी जानकारी चुराता है.
स्टक्सनट के आगे भी घुटने टेके : स्टक्सनट भी फ्लेम की ही तरह एक और वायरस है. इस वायरस के हमले की गंभीरता उस वक्त पता चली, जब 2010 में इसने ईरानी इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाया और उसके यूरेनियम संवर्धन प्रोग्राम को बाधित किया, साथ ही कई जानकारियां इसके हमलावर तक पहुंचा दी. लेकिन, इस वायरस की खोज के दो साल बाद भी इसका कोई एंटी-वायरस विकसित नहीं किया जा सका है. फ्लेम के बाद यह दूसरा ऐसा वायरस है, जिसके लिए हम एंटी वायरस विकसित करने में अब तक असफल रहे हैं. यह खतरे की घंटी की तरह है. यदि आपके न्यूक्लियर प्रोग्राम पर किसी अप्रत्यक्ष डिजिटल हमले का खतरा मंडरा रहा है और पुलिस भी कोई कार्रवाई करने में लाचार और बेबस है, तो ऐसी में स्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है. हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि मौजूदा वैश्‍विक परिप्रेक्ष्य में साइबर हमलों की क्षमता को भी सामरिक क्षमता का एक अंग माना जाने लगा है. एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ ईरान ने ही हाल के महीनों में अपनी साइबर क्षमताओं की सुरक्षा और अन्य देशों पर साइबर हमलों की क्षमता विकसित करने के लिए करोड़ों डॉलर खर्च किये.
पांच सबसे बड़े साइबर खतरे : वायरस किसी भी कंप्यूटर के लिए सबसे बड़ी समस्या के तौर पर जाना जाता है. पिछले कुछ वर्षों में यह समस्या काफी जटिल हो गयी है. रूसी कंप्यूटर सुरक्षा फर्म कास्पर्सकी के मुताबिक, आने वाले समय में इनसे ये पांच सबसे बड़े ख़तरे हो सकते हैं.
कंप्लीट डार्कनेस : पिछले दिनों ईरानी कंप्यूटर सिस्टम में वायरस के हमले के कारण उसके प्रमुख तेल संस्थानों के कंप्यूटर अचानक ही ऑफलाइन हो गये. आने वाले समय में ऐसा हमला और भी व्यापक स्तर पर हो सकता है. इससे पूरा बिजली संयंत्र ही प्रभावित हो सकता है और हमारे पास इस समस्या का कोई तात्कालिक समाधान नहीं होगा. यदि ऐसा होता है तो हम कंप्लीट डार्कनेस के साथ दो सौ साल पहले की स्थिति यानी पूर्व विद्युत युग में पहुंच जाएंगे.
बदल देगा हमारी सोच : सोशल नेटवर्किंग सिस्टम के माध्यम से लोगों के सोच को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया जा सकता है. कंप्यूटर सुरक्षा फर्म कास्पर्सकी के प्रमुख इजीन कास्पर्सकी का कहना है कि द्वितीय विश्‍व युद्धके दौरान हवाई जहाजों से शत्रु देशों में अपने प्रोपेगेंडा के प्रचार-प्रसार के लिए पर्चे गिराये जाते थे. आज यही काम सोशल नेटवर्किंग साइटों के जरिए हो रहा है. पिछले महीने चीन में ब्लॉग पर यह खबर तेजी से फैली कि देशमें विद्रोह हो गया है और सेना की टैंक सड़कों पर तैनात हैं. बाद में यह खबर झूठी निकली. अरब क्रांति के दौरान सोशल साइटों ने प्रदर्शन को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई.
वेब किड्स : तीसरा सबसे बड़ा खतरा यह हो सकता है कि इंटरनेट पीढ़ी इसी के साथ व्यस्त हो जायेगी. आज के बच्चे डिजिटल वर्ल्ड में बड़े हो रहे हैं. कुछ समय बाद वे बड़े हो जाएंगे और उन्हें वोट भी देना होगा. अगर ऑनलाइन वोटिंग सिस्टम की सुविधा नहीं होगी, तो वे वोट देने ही नहीं जाएंगे. इस तरह तो पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया ही बिगड़ जायेगी. इसके अलावा बो और अभिभावक के बीच की खाई भी बढ.ती जायेगी.
अकाउंट हैकिंग : किसी भी कंप्यूटर यूजर के लिए साइबर अपराध वर्षों से चिंता की बात रही है. कोई भी कंप्यूटर वायरस से सुरक्षित नहीं है. साइबर अपराधी प्रतिदिन पूरी दुनिया में हैकिंग के वायरस फैला रहे हैं. हाल में यह खतरा स्मार्टफोन तक फैल गया है.
निजता (प्राइवेसी) का खतरा : आजकल प्राइवेसी खत्म-सी हो रही है. गूगल स्ट्रीट व्यू, सीसीटीवी कैमरा और कृत्रिम उपग्रह के जरिए सभी की नजर हम पर होती है. इमेल, सोशल वेबसाइट आदि के इस्तेमाल में भी निजी सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है, जिसके सार्वजनिक होने का खतरा रहता है. वायरस के जरिए इन सूचनाओं के साथ छेड़छाड़ भी की जा सकती है.
तो इसलिए है खतरा : फ्लेम नामक वायरस का सबसे पहले पता लगाने वाली कंपनी रूस की कास्पर्सकी का कहना है कि सभी देशों को इस तरह के हमलों की विभीषिका को समझते हुए उन पर रोक के लिए प्रयास करना चाहिए. जिस तरह से फ्लेम जैसे वायरस का हमला बढ़ा है और एंटी वायरस कंपनियां उसका काट ढूंढने में अब तक नाकाम रही हैं, उससे खतरा और बढ़ता जा रहा है. सबसे बड़ी चिंता तो इस बात की है कि हैकर समूह के अलावा कई देश भी इस तरह के साइबर हमले करने लगे हैं, लेकिन कोई भी देश या समूह ऐसे हमलों की जिम्मेदारी नहीं लेता. साइबर जासूसी का यह हथियार पारंपरिक हथियारों की तरह नहीं है. यदि एक बार ने इन्हें छोड़ दिया गया तो यह नियंत्रण से बाहर हो जाता है और अपने लक्षित उद्देश्यों के साथ-साथ अन्य चीजों को भी निशाना बना सकते हैं. उसमें बदलाव करके उसे दोबारा भी छोड़ा जा सकता है. ये वायरस भस्मासुर की तरह हैं, जो बाद में इन्हें छोड़ने वाले को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं.

2 comments: