''अंतरिक्ष युद्ध'' में चीन से हारता भारत

महाशक्ति बनने की चीन की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है. चीन धरती से आसमान तक अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहता है. चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम को इस महत्वाकांक्षा की मिसाल कहा जा सकता है. चीन ने शनिवार को शेंझोउ-9 नामक मानवयुक्त यान अंतरिक्ष में भेजकर दुनिया को यह संदेश देने की भले उसने अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम अमेरिका और रूस के काफी बाद शुरू किया हो, लेकिन वह अब उनके बराबर पहुंच चुका है. शेंझोउ-9 मिशन एक महिला सहित तीन यात्रियों को लेकर 16 जून 2012 को अंतरिक्ष की ओर रवाना हुआ. शेंझोउ-9 चीन का चौथा मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन है. चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम भारत और दुनिया के लिए बड़ी चुनौती है. अभी तक सिर्फ अमेरिका और रूस ने अंतरिक्ष में मानवयुक्त मिशन भेजा था. अब चीन ऐसा करने वाला दुनिया का तीसरा देश बन गया है. अंतरिक्ष में अपनी शक्ति प्रदर्शित करने की इस दौड़ में भारत चीन से काफी पीछे नजर आ रहा है. अंतरिक्ष में बादशाहत की जंग को देखें तो भारत ने भी पिछले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं. 22 अक्तूबर 2008 को चंद्रयान-1 के सफल प्रक्षेपण के बाद अब चंद्रयान-2 को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी है. यह अंतरिक्ष में भारत के बढ.ते कदम को बतलाता है. लेकिन, इसके बावजूद इस क्षेत्र में भारत चीन से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है. हां अगर इस आपसी रेस से अलग अंतरिक्ष में विकासशील देशों के बढ.ते दखल के हिसाब से देखें तो चीन और भारत की उपलब्धियां इस बात का सबूत हैं कि अंतरिक्ष विज्ञान में अमेरिका-रूस के प्रभुत्व वाले दिन खत्म हो गये हैं.
स्पेस रेस का वह दौर : स्पेस में में वर्चस्व कायम करने होड़ 1950 के दशक में दो महाशक्तियों अमेरिका और सोवियत संघ के बीच देखने को मिली थी. इसे स्पेस रेस के नाम से जाना गया. सोवियत संघ ने 4 अक्तूबर 1957 को पहला कृत्रिम उपग्रह स्पुतिनक-1 पृथ्वी की कक्षा में प्रक्षेपित किया था. इसके बाद अमेरिकी अपोलो-11 अंतरिक्ष यान को चंद्रमा पर 20 जुलाई 1969 को उतारा गया था. हालांकि, दोनों देशों को इस होड़ की कीमत भी चुकानी पड़ी. 1960 में सोवियत संघ की नेडेलीन नामक त्रासदी स्पेस रेस की सबसे भयावह दुर्घटना थी. दरअसल, 24 अक्तूबर 1960 को मार्शल मित्रोफन नेडेलीन ने प्रायोगिक आर-16 रॉकेट को बंद और नियंत्रित करने की गलत प्रक्रिया निर्देशित की. नतीजतन, रॉकेट में विस्फोट हो गया, जिससे लगभग 150 सोवियत सैनिकों और तकनीकी कर्मचारियों की मौत हो गयी. उधर, 27 जनवरी 1967 को अमेरिकी यान अपोलो-1 ते ग्राउंड टेस्ट के दौरान केबिन में आग लग गयी और घुटन के कारण तीन क्रू सदस्यों की मौत हो गयी. इसके अलावा दोनों देशों को अंतरिक्ष रेस की बड़ी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ी है.
भारत और चीन में प्रतिद्वंद्विता : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की योजना वर्ष 2025 तक मानवयुक्त अंतरिक्ष यान भेजने की है. इसकी योजना सुरक्षा के लिए उपग्रह आधारित कम्युनिकेशन और नेविगेशन सिस्टम इस्तेमाल करने की भी है. लेकिन, भारत का प्रतिद्वंद्वी पड़ोसी चीन का अंतरिक्ष के उपयोग को लेकर भारत से थोड़ा अलग एजेंडा है. इसरो के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, भारत के पास 21 उपग्रह हैं. इनमें से 10 संचार और 4 तसवीर लेने की क्षमता से लैस निगरानी करने वाले उपग्रह हैं. बाकी सात भू-पर्यवेक्षण उपग्रह हैं. इनका इस्तेमाल दोहरे उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है. ये रक्षा उद्देश्यों के लिए भी प्रयोग में आ सकते हैं. चीन से यदि प्रत्यक्ष तुलना करें तो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम अपनी सफलताओं के बावूद चीन से पीछे नजर आता है, जबकि हकीकत यह है कि दोनों देशों ने एक साथ 1970 के दशक में अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम गंभीरता से शुरू किया था. खासकर मानवयुक्त मिशन को लेकर दोनों देशों के बीच फासला काफी बड़ा नजर आता है. भारत के लिए ऐसे किसी मिशन की संभावना अगले दशक में ही है, जबकि चीन ने 2003 में ही मानव को अंतरिक्ष में भेज दिया था.
हम कहां रह गये पीछे : वर्ष 1992 में भारत जब आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा था, उस वक्त चीन में प्रोजेक्ट-921 की शुरुआत हुई. यह मिशन इंसान को अंतरिक्ष में ले जाने से संबंधित था. 2003 तक इसके तहत पांच मिशन अंतरिक्ष में भेज चुके थे. अभी तक नौ चीनी नागरिक अंतरिक्ष की सैर कर चुके हैं. इसकी तुलना में भारत अभी दोबारा इस्तेमाल में आने वाले स्पेस व्हीकल तकनीक के विकास में ही लगा है. इसरो जीएसएलवी-मार्क-3 विकसित कर रहा है. जबकि भारत में इस तरह के प्रोग्राम का कहीं कोई जिक्र नहीं है. आज अंतरिक्ष में चीन के 57 से अधिक उपग्रह हैं, जबकि भारत के मात्र 21 उपग्रह ही हैं. चांद के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए भारत चंद्रयान-1 भेज चुका है. साल 2008 में देश का पहला मानवरहित यान भेजा गया था और 2016 तक चंद्रयान-2 को भेजने की योजना है. चीन ने 2020 तक अंतरिक्ष में स्पेस स्टेशन स्थापित करने की घोषणा की है. शेंझोउ-9 नामक अंतरिक्ष यान उसकी इसी योजना की कड़ी का हिस्सा है.
बढ.ती महत्वाकांक्षा : चीन का हालिया अंतरिक्ष मिशन अभी तक की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में एक है. यह बतलाता है कि बीजिंग किस तरह अपनी तकनीकी क्षमताओं को बढ.ा रहा है और इस मामले में संयुक्त राज्य अमेरिका एवं रूस के साथ इस खाई को पाट रहा है. शेंझोउ-9 को तीन अंतरिक्ष यात्रियों के साथ गोबी मरुस्थल से रवाना किया गया. सबसे बड़ी बात की इस मिशन पर पहली चीनी महिला अंतरिक्ष यात्री को भी भेजा गया है. यह मिशन चीन के लिए एक लंबी छलांग है, जिसकी शुरुआत 1999 में शेंझोउ-1 से हुई. इस पहले मिशन पर किसी भी क्रू मेंबर को नहीं भेजा गया. इसके दो साल बाद शेंझोउ-2 को अंतरिक्ष में रवाना किया गया. इसके साथ प्रयोग के तौर पर छोटे जानवरों को अंतरिक्षयान के साथ भेजा गया. और, साल 2003 में चीन ने शेंझोउ-5 अभियान में चीन अंतरिक्ष में अपना पहला अंतरिक्षयात्री भेजा. 2008 में शेंझोउ-7 स्पेस मिशन में चीनी यात्रियों ने स्पेस वाक को भी अंजाम दिया. पिछले साल मानवरहित अंतरिक्ष यान शेंझोउ तियांगोंग-01 से अंतरिक्ष में जोड़ा (डॉक) किया गया. लेकिन, अभी जिस मिशन पर चीनी अंतरिक्षयात्री गये हैं, यह तकनीकी तौर पर और अधिक चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि अंतरिक्षयात्रियों को इसे मैन्युअली डॉक करना होगा.
ऑस्ट्रेलियाई अंतरिक्ष विशेषज्ञ मॉरिस जोन्स के मुताबिक, यह अभी तक का चीन का सबसे महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशन है. यह बतलाता है कि चीन अंतरिक्ष में अपने दूरगामी उद्देश्यों के प्रति कितना गंभीर है. अगर इस मिशन पर अंतरिक्ष यात्री यान को सफलतापूर्वक डॉक करने में कामयाब हो जाते हैं तो चीन 2020 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की दिशा में एक कदम और आगे बढ. जायेगा.
वैश्‍विक अंतरिक्ष महाशक्ति : चीन अपना अंतरिक्ष स्टेशन बना लेने के बाद यही नहीं रुकने वाला है. इस मिशन के बाद वह चंद्रमा पर पहुंचने के अलावा सैटेलाइट ऑब्र्जवेशन और ग्लोबल पोजिशिनिंग सिस्टम (जीपीएस) जैसे अभियानों की तैयारी में है. उसका सीधा लक्ष्य भारत नहीं, बल्कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमेरिका को टक्कर देना है. क्योंकि भारत अभी उससे काफी पीछे है. इसी क्रम में साल 2016 तक चीन विकास और अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिए उपग्रहों के उपयोग को भी बढ़ाने वाला है. उसने 2011 मेंउसने यूएस-जीपीएस का चीनी प्रारूप लॉन्च भी किया. इस सिस्टम से उसे नेविगेशन में मदद मिलेगी. इस साल तक यह सैटेलाइट पूरे एशिया को कवर कर लेगा और 2020 तक पूरी दुनिया इसके जद में आ जायेगी.
अमेरिका से आगे निकलने की तैयारी : 1980 के दशक तक चीन सिर्फ उपग्रहों को ही विकसित करने पर ध्यान देता था और इसके लिए वह रूस और अमेरिकी मदद लेता था. लेकिन, अब जिस रफ्तार से वह अंतरिक्ष में अपनी पैठ बढ़ाता जा रहा है, उससे वह बहुत जल्द ही अमेरिका और रूस के बराबर खड़ा हो जायेगा. हालांकि, इसमें उसे कम से कम दस साल का वक्त लग जायेगा. गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की परियोजना से दूर रहा है और अब साबित करना चाहता है कि वह अपने बूते इसी तरह का स्टेशन स्थापित करने में सक्षम है.
अमेरिकी-रूसी वर्चस्व को चुनौती : अंतरिक्ष के क्षेत्र में साल 2011 चीन के लिए सबसे अधिक सफल रहा. इस दौरान उसने अंतरिक्ष में रूस और अमेरिका के एकछत्र राज्य को चुनौती देते हुए पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर निर्भर अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की दिशा में पहला कदम बढ़ाया. पिछले साल ही चीन ने तियांगोंग परियोजना के तहत सितंबर के आखिरी में तियांगोंग श्रेणी के पहले मॉड्यूल को अंतरिक्ष में रवाना किया. इसके रवाना होने के कुछ ही दिन बाद मानवरहित अंतरिक्ष यान शेंझोउ-8 को भी प्रक्षेपित किया गया. इस अंतरिक्ष यान को तियांगोंग-01 से अंतरिक्ष में जोड़ा (डॉक) किया गया. चीन के मुताबिक, वह इन परीक्षणों के आधार पर 2016 तक अंतरिक्ष में अपनी खुद की एक प्रयोगशाला स्थापित करेगा, जहां भारहीनता की स्थिति में बहुत से प्रयोग किये जा सकेंगे. फिलहाल चीन का स्वदेशी तकनीक से बना यह अंतरिक्ष स्टेशन मौजूदा समय में रूस, अमेरिका और दूसरे देशों के सहयोग से बने अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आइएसएस) के बाद दूसरे स्थान पर होगा.2003 में पहली बार चीन ने मानवयुक्त अंतरिक्षयान भेजा था. अभी तक नौ अंतरिक्ष मिशन.2016 में भारत चंद्रयान-2 को प्रक्षेपित करेगा, पहले इसे 2014 में ही प्रक्षेपित करना था.2020 तक चीन की योजना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की है.2025 में भारत के इसरो की योजना मानवयुक्त अंतरिक्षयान भेजने की है.

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