बदलाव की बयार बिहार में

किन आंखों से देखूं बदलाव ! बस दिलासा और ढाढस की जिन्दगी । क्या सचमुच पलायन रूका है बिहारियों का बिहार से । किसी को ऐसा लग सकता है, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता । रेलवे स्टेशनों पर वही लम्बी-लम्बी कतारें । मुंबई में मार खाने के बावजूद वहीं जाने की मजबूरी । अब तो दूसरे शहरों में भी पीटने लगे हैं । एक बार ऐसे ही मैं बात कर रहा था एक बिहारी स्टुडेंट से, उसका क्या कहना था ऑस्ट्रेलिया में पीटने वाले भारतीयों के बारे में शायद आप अनुमान लगा सकते हैं । फिर भी मैं आपको बता दूँ, जिस तरह हम बिहारवासियों को भारत में बिहारी एक गाली के शब्द के तौर पर इस्तेमाल करके बुलाया जाता है, ठीक उसी तरह यही हाल भारतीयों का विदेशों में है । खैर ये बात तो किसी तरह जायज़ नहीं ठहराई जा सकती , लेकिन इससे मानसिकता पता चल जाता है । हम बात कर रहे थे बिहार में सुशासन की , तो इसका दावा कितना मज़बूत हुआ है, इन वर्षों में इसका अंदाजा इसीसे लगाया जा सकता है कि हररोज़ राजधानी पटना में हत्या और लूटमार की घटनाएँ मानों आम बात हो गयी हो । यहाँ के किसी भी अखबार का पन्ना पलटिये आप इस हकीक़त से रू-बा-रू हो जायेंगे । ये तो मैंने महज़ चंदनमूने ही बताये, यदि सही तरीके से तफ्तीश की जाए तो आपके होश गुम हो जायेंगे । ये मैं कोई ऐसे ही नहीं कह रहा हूँ दरअसल ये हकीक़त है, आज भी यहाँ कई ऐसे गाँव हैं जो सही तौर पर सड़को से नहीं जुड़ पायें हैं । हालाँकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ -न- कुछ काम तरक्की के हो ज़रूर रहे हैं लेकिन मेरी समझ में ये नहीं आता कि इतना हल्ला क्यों हो रहा है जबकि काफी कुछ काम किया जाना बाकी है । सबसे पहले तो जो सुधार कायदे- कानून के क्षेत्र में होना चाहिए वो नहीं हो पाया है, बस टीवी और पेपर में पढ़ कर ये अनुमान लगा लेना गलतफहमी ही होगी कि अब सब कुछ सही ढर्रे पे आ गया है . सबसे बड़ी बात ये कि यहाँ भी लोग अब जागरूक होने लगे है यह जान कर दिल को तसल्ली होती हैऔर मुझे यकीं भी है कि बिहार अपना पुराना गौरव भी एक दिन ज़रूर हासिल करेगा और वो दिन ज़्यादा दूर नहीं है .

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