हरकत पुरानी, पैंतरा नया....


एकबार फिर सुर्ख़ियों मे शीला दीक्षित हैं...उनका कहना है कि दिल्ली में आए दिन बिपासा, जी बिजली, पानी और सड़क की समस्याओं के लिए जिम्मेदार हैं, ट्रेन से भर-भर कर आनेवाले बिहारी और यूपी के लोग। शायद उनका कहना ये है कि इनका बोझ दिल्ली नहीं उठा सकती, जिसका खामियाजा यहां के मूल बाशिंदे को उठाना पड़ता है। उन्हे हररोज़ समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है, इन ट्रेन में भर-भर कर आने वालों की वजह से। लब्बोलुआब ये कि बाहरी लोग ही समस्या की जड़ हैं। तो क्या वाकई ऐसा ही है? वैसे देखा जाए तो वो ख़ुद बाहरी हैं, यूपी की। और अपनी नाकामयाबी का घड़ा किसी और के मत्थे फोड़ना चाहती हैं। लगातार दस से पंद्रह सालों तक शासन करने के बाद भी जब लोगों की मूलभूत समस्याओं को दूर नहीं कर पा रहीं हैं तो उसका ठीकरा किसी और पर फोड़ना चाहती हैं। सबसे बड़ी बात कि हर नेता जब नाकाबिल हो जाता है तो लोगों के सेंटीमेंट्स से खिलवाड़ करना शुरू कर देते हैं। तरह-तरह के पैंतरों से आम लोगों का ध्यान मूल मुद्दों से हटा कर अपना उल्लू सीधा करने लगते हैं।
और लगता है कांग्रेस कभी दूसरों के कंधों पर तो कभी ख़ुद के कंधों पर से गोली चलाने के इस खेल में माहिर हो गई है। तभी तो महाराष्ट्र में जब आम लोगों की जरूरतों को पूरा करने में वहां की कांग्रेसी सरकार विफल रही तो अपना पुराना दाव जो कभी भिंडरावाले के साथ पंजाब में खेला था, महाराष्ट्र में भी खेलने लगी। इस बार प्यादे के तौर पर इस्तेमाल किया राज ठाकरे को। जिसमें वह लगभग सफल भी रही। वहां के लोग अपनी समस्याओं को भूलकर पीटने लगे बिहारियों और नॉर्थ इंडियन्स को। लेकिन क्या इससे उनकी जो पहले की प्रॉब्लम्स थी, वो दूर हो गईं। नहीं, बिल्कुल नहीं। पॉलिटिसियन्स ने अपना पासा फेंका और पब्लिक पागलों की तरह हरकत करती रही बिना सोचे -समझे की आख़िर मूल समस्या है क्या?

वही खेल अब दिल्ली में भी शीला सरकार खेलना चाहती है। वजह बहुत सारे हैं। न तो लोगों को बिजली और न ही पानी मिल पा रहा है, नतीजतन लोगों में गुस्सा फैल रहा है और सरकार कोई ठोस उपाय करने बजाय पब्लिक सेंटीमेंट्स से खेल कर इसे कुछ और रूप देना चाहती है कि समस्याओं के लिए बाहरी लोग ही ज़िम्मेदार है। दरअसल शीला दीक्षित हतासा और निराशा में ऐसी बातें कोई पहली बार नहीं कह रही हैं। दिल्ली में दो हज़ार दस में कॉमनवेल्थ गेम्स होने हैं, लेकिन उसकी तैयारियां अभी काफी बाक़ी हैं और लगता नहीं कि वो समय पर पूरी हो भी पाएंगीं, जल-प्रबंधन, बिजली समस्या इन सब पर काबू पाने में नाकामी ही उनके इस तरह के बयानों का नतीजा है, लेकिन लोग अब इस तरह के झासें में नहीं आने वाले । पब्लिक अब असलियत समझने लगी है, तो जरूरत है सरकार और नेताओं को भी सही रास्ते पर आने की नहीं तो पब्लिक सही रास्ते पर लाना भी जानती है, जैसा कि मुंबई धमाकों के बाद जो गुस्सा और रोष नेताओं के प्रति पब्लिक में था वो सबकुछ जाहिर कर ही चुका है....

4 comments:

  1. यह दिल्ली तो पूरे देश मे व्याप्त है

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  2. ऐसा है तो सही लेकिन तस्वीर बदलते देर नहीं लगती, लोग अब समझने लगे हैं, हालांकि कुछ लोग अब भी अपनी राजनीति की रोटियां सेंकना बंद नहीं करेंगे फिर भी ये खेल ज़्यादा दिनों तक नहीं चल पाएगा

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  3. लेकिन अब हालात कुछ बदलने लगें है,ओर जनता इनकी कुटिलता को कुछ कुछ समझने भी लगी है।

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  4. जी बिल्कुल सही कहा आपने, और अब ज़रूरत है कि ये नेता भी ये हक़क़ीत समझने की कोशिश करें.....

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