तुमसे वादा था मेरा

काफी लंबा अरसा बीत गया। इस दौरान कई ख्याल मेरे जेहन में आए। तुम्हारी याद भी आई। मैंने कुछ वायदे किये थे तुमसे। वह वायदा क्या था। तुम्हें नहीं पता। मुमकिन है तुम्हें उसकी मालूमात हो भी न पाए। इस दौरान मैं अपनी ज़िंदगी जीता रहा। वह भी तुम्हारी दी हुई। तुम्हारी ही अमानत है। ज़िंदगी की लहरों के थपेरों को सहते, आख़िर खुद को तुम्हारे बग़ैर संभाल ही लिया। सबकी नज़रों में लायक़ भी बना। पर अपनी नज़रों में मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। एक ऐसा सितारा बना रहा जो हर पल अपनी ज़िंदगी की चमक खोता जा रहा है। अभी भी थोड़ी रोशनी है मेरे अंदर। जलूंगा एकबार अचानक तेज़ लौ के साथ। पर तुम्हारा इंतज़ार है। कई दफ़ा बहुत दुख होता है। परेशानी भी। हताशा भी। निराशा भी। सबकुछ सहने को मैं तैयार हूं। पर कहीं न कहीं एक बात है जो अक्सर चुभती रहती है। उसका दंश तड़पने को मजबूर करता है। कुछ लोग कहते हैं फालतू की हैं ये बातें। वह बेजा ऐसा नहीं कहते। उसकी भी वजह होती है। उनका अपना आकलन होता है। नज़रिया होता है। पर मैं क्या सोचता हूं यह मै किसी को नहीं बता पाया। शायद बता भी न पाऊं। अपने क़रीबियों को भी। मैं किसी के जितना क़रीब होता हूं ख़ुद को उससे उतना ही दूर पाता हूं। शायद यही मेरी नियति है।

2 comments:

  1. ऐसा भी क्या है..अभी तो बहुत रोशनी बाकी है भाई..

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  2. इन्सान जो चाहता है वो उसे कभी नहीं मिलता,पर इसके कारन कोई जीना नहीं छोड़ता....!सकारात्मक सोच लेकर अकेलेपन के साथ भी जिया जा सकता है..

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