यौन दासियों की कहानी

हर समाज नैतिकता की बातें करता है। चाहे वह पश्चिम हो या पूरब। सभी के मुतिबक, उसका समाज बेहतर होता है। लेकिन, जब बात महिलाओं की आती है तो सारी हकीकत सामने आ जाती है। हाल के समय में सेक्स स्कैंडल की चर्चा कुछ ज्यादा रही है। बड़े-बड़े स्कैंडलों के सामने आने के कुछ समय बाद सब कुछ शांत हो जाता है। कभी नेताओं को इनमें फंसा हुआ बताया जाता है तो कभी बड़े अधिकायों के। तो कभी संन्यास लेने वाले बाबा भी महिलाओं की दलाली के व्यापार में शरीक पाए जाते हैं। पर, अंततः पकड़ा कोई नहीं जाता। सजा किसी को नहीं मिलती। हम अभी तक इन समस्याओं पर हंगामा, हिंसा और जनता को हाहाकार मचाते देखते आए हैं। पर, हममें से कोई इस समस्या की जड़ में जाता नहीं दिखता है। आज सेक्स का कारोबार इतना बढ़ गया है कि बाकायदा सेक्स टूरिज्म की शुरुआत भी हो गई है। यदि निचले स्तर पर देखें तो सेक्स और परिवार पुरुष के जीवन के दो अंग हैं। विवाह, बच्चे पैदा करना और परिवार आर्थिक एवं सामाजिक करार की तरह हैं। इस करार में सेक्स एक शर्त है। मगर जरूरी नहीं कि यह अच्छा या मनोरंजक हो। पर इससे फर्क तो पड़ता है। सेक्स एक मनोरंजन, एक खेल है। इसे पुरुष और केवल पुरुष विवाह के बाहर स्वीकार्य रूप से जारी रख सकता है। यानी, पुरुष सेक्स की खरीदारी करके बेदाग बचके बाहर निकल सकते हैं। सबसे अहम बात है कि इन पुरुषों को सेक्स के खेल के लिए स्त्रियों की कमी नहीं है। शरीर का सौदा करने को इच्छुक महिलाओं या लड़कियों की संख्या ज्यादा नहीं है। फिर भी, कुछ तो इसके लिए तैयार होती ही हैं। कुछ को जबरदस्ती इस सेक्स बाजार में शामिल किया ही जाता है। उन्हें यौन दासी बनने पर जबरन मजबूर किया ही जाता है। उन्हें वेश्यालयों में काम करने पर बाध्य होना पड़ता है। अब तो बदलते जमाने के हिसाब से इनका धंधा भी बदला है। कॉल गर्ल आदि इसी नए जमाने की देन है। अब एक नया चलन चल पड़ा है, सेक्स पर्यटन का। यह भ्रष्ट संस्कृति का सूचक है या खुले समाज का मुझे नहीं पता और न ही मैं इस पर कोई टिप्पणी करना चाहता हूं। क्योंकि इस तरह के बाजार में पुरुष और युवतियां दोनों अपनी मर्जी से शामिल होती हैं। उन पर किसी तरह का दबाव नहीं होता। युवतियां अपने आकर्षक हाव-भाव और शरीर की नुमाइश के जरिए पुरुषों (ग्राहकों) को लुभाती हैं। लेकिन, यह फिलहाल विशेष तौर पर पश्चिम में ही प्रचलन का हिस्सा है। हालांकि, कुछ एशियाई मुल्कों में यह बात अब आम हो चली है। बाकायदा सरकार इन पर टैक्स लगाती है। सरकार को उसके राजस्व का एक बड़ा हिस्सा इनसे भी मिलता होता है।

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