इमरान हाशमी को मुंबई में मुसलमान होने की वज़ह से पसंदीदा जगह पर मकान नहीं मिल पाया। इससे पहले सैफ़ अली ख़ान, शबाना आज़मी-जावेद अख़्तर और मशहूर वीजे सोफी चौधरी के साथ भी इसी तरह का वाक्या पेश आया। सैफ़ को तो किसी मुसलमान बिल्डर से अपनी मकान लेनी पड़ी। वहीं इमरान का दर्द और ग़ुस्सा टीवी पर साफ़ झलकता नज़र आया कि आई एम नॉट अ टेररिस्ट । वहीं कल रात एनडीटीवी पर रवीश कुमार न्यूज़-प्वाइंट में भी यही चर्चा कर रहे थे। कुल मिलाकर वहां यही नतीज़ा आया कि हिंदुस्तान में मज़हब के नाम पर ऐसा होता आया है और हो रहा है। यहां तक कि कई जगह ऐसे हैं जहां केवल मुसलमानों की सोसायटी है तो कई जगह सिर्फ़ हिंदुओं की। और वहां के नियम आप बदल भी नहीं सकते । आख़िर ऐसा क्यों है? जबकि सलमान ख़ान और शाहरूख़ ने इस मामले अपनी राय देते हुए कहा कि मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ और आज जो कुछ भी हम हैं वो इसी मुल्क़ की बदौलत। साथ ही उनका ये भी कहना था कि लेकिन ये कहना कि ऐसा होता ही नहीं ये भी ग़लत होगा। यदि ऐसा है तो इसकी वजह क्या है? न्यूज़-प्वाइंट में ही एक बिल्डर ये बता रहा था कि मुसलमानों से परहेज की हिदायत मकान मालिकों या सोसायटी की तरफ़ से उन्हें पहले ही दी हुई होती है। अगर ये सच्चाई है तो इसकी असलियत क्या है? दरअसल इसके पीछे की वज़हों को समझने की कोशिश करें तो आज भी इन दो समुदायों के बीच विश्वास की कमी बरकरार है, नफरत की वो बीज अभी भी क़ायम है जो सदियों से हमें जाने-अनजाने में अपनी गिरफ्त में लिए हुए है।
साथ ही हम इसे समझने की कोशिश करें तो इस समस्या की जड़ में जाने की जरूरत है। एम एन राय ने अपनी किताब "द हिस्टोरिकल रोल ऑव इस्लाम" में लिखा है, जिसका ज़िक्र रामधारी सिंह दिनकर अपनी किताब "संस्कृति के चार अध्याय" में करते हैं, कि संसार की कोई भी सभ्य जाति इस्लाम के इतिहास से उतनी अपरिचित नहीं है जितने हिंदू हैं और संसार की कोई भी जाति इस्लाम को उतनी घृणा से भी नहीं देखती, जितनी घृणा से हिंदू देखते हैं। साथ ही वो कहते हैं, यह बात एक तरह से भारत के मुसलमानों पर भी लागू है, क्योंकि इस देश के मुसलमानों में भी इस्लाम के मौलिक स्वभाव, गुण और उसके ऐतिहासिक महत्व की जानकारी बहुत ही छिछली रही है। भारत में मुसलमानों का अत्याचार इतना भयानक रहा कि सारे संसार के इतिहास में उसका जोड़ नहीं मिलता ।
हिंदू, इस्लाम के उसी रूप को जानते हैं जिससे उन्हें पाला पड़ा है। वे इस्लाम के उन गुणों से बहुत ही कम परिचित हैं, जिनके कारण यह धर्म क्रांतिकारी समझा जाता था।
आगे जारी........
सच्चा इस्लाम कहाँ शेष रह गया है?
ReplyDeleteदिलचस्प लेख है.......... पर आज के सन्दर्भ में क्या होना चाहिए इस विचार का इंतज़ार रहेगा अगली पोस्ट मैं......
ReplyDeleteअगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDeleteद्विवेदी सर इस्लाम तो अभी भी सच्चा है और रहेगा, दरअसल पथभ्रष्ट तो हम हो रहे हैं...कोई मज़हब झूठा कभी नहीं होता हमेशा ही सच्चा होता है , समस्या हमारे अंदर होती है....
ReplyDeleteदिगम्बर नासवा और परमजीतजी धन्यवाद
ReplyDeleteधर्म कभी गलत नहीं होता...गलत होते हैं तो सिर्फ उसकी व्याख्या करने वाले।
ReplyDeleteबढिया लेख। धन्यवाद्!!
शुक्रया वत्सजी
ReplyDeleteमैं आपकी बातों से सहमत नहीं हूं...हमारे यहां होता ये है कि राम का नाम लीजिए तो आप सांप्रदायिक हो जाते हैं, वहीं इस्लाम की बात जोरशोर से करने वाले धर्मनिरपेक्ष कहलाते हैं, इसके लिए आपको बधाई...
ReplyDeleteसहमति या असहमति, व्यक्ति की अपनी सोच होती है, वैसे हुत शुक्रिया आपको बिचार अभिव्यक्ति के लिए
ReplyDeleteचन्दन भाई, एक साथ दो जगह लेख देने से गफ़लत होती है… कृपया अगली बार इसे देखें… या तो मोहल्ला पर ही दें या अपने ब्लॉग पर। यदि दोनों जगह देना ही चाहते हैं तो एक-दो दिन के अन्तराल से दीजिये…।
ReplyDeleteआइंदा आपके इन सुझावों का ख़्याल जरूर रखूंगा...सुझाव के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteएम.एन राए ने जो भी लिखा वह तथ्य है यानि सच है लेकिन
ReplyDeleteसाहिर ने जो लिखा वह भी सच है
देंगे वही जो पाएंगे जिन्दगी से हम.....तो हिदुओं की जो राय मुस्लिमों के बारे मे बनी वह लगभग ४ सदी के अत्याचारों पर आधारित है उसे बदलना भी मुस्लमानो को ही पड़ेगा क्या कुछ वक्त पहले तक क्रिकेट मैच भारत/पाक के दृष्य आप भूल गए अब आहिस्ता आहिस्ता बदलाव आ रहा है आम पढा लिखा मुस्लमान युवा जान गया है असलियत और वह अब हिन्दू जैसा ही देशप्रेमी है,लेकिन तथाकथित सेलिब्रेटि चाहे वह इमरान हाशमी हो या नासिरा शर्मा या और कोई और वे स्वंम केवल मीडिया में आने को यह सब लिखते हैं/ आतंकवाद के चलते आम हिन्दु आज कैसे यह जोखम उठाए कि जिसे आज मकान दे रहा है वह कल आतंकी या उनका कोई सहायक न होगा अत: आम मुस्लमान जब तक तथाकथित स्वार्थी नेताओं को न समझेगा तब तक यही चलेगा हां यह नेता हिन्दुओं को भी जाति धर्मके नाम पर गुमराह कर रहे है,श्याम सखा श्याम
जी बिल्कुल श्यामजी, वही बात मैं उठाना चाहता हूं, कि आख़िर क्या वजह है कि रहरह कर इस तरह की बातें उठती हैं...ये बाते भी सही हैं कि कुछ लोग इसका फायदा अपनी पब्लिसिटी के लिए करते हैं...फिर भी इस तरह के सवाल अगर सुर्ख़िया बन रही हैं तो क्यों , वो उपने मकत़सद में कामयाब कैसे हो रहे हैं
ReplyDeletemain aapki baat se puri tarah sahmat hun, kisi bhi dharm ko acchi tarah se jaane bina uske baare me nafrat ki soch rakhna galat hai or ye hum sabhi par laagu hota hai chaahe hindu ho ya muslim....
ReplyDeleteor ye sab baaten ek garib majdur nahi sochta ye sab sochte hain Rajniti or dharm ke kuch Thekedaar or wahi log is sabka faayda uthane ke liye hazaro-laakho masum logo ki zindagi ko daav pe laga dete hian
धन्यवाद राधाजी
ReplyDeleteभाई चन्दन, मैं दिनेश राय द्विवेदी जी की राय से पूर्णत: सहमत हूँ. आपने जिस विषय पर लिखा है उसे पर मैंने भी लिखा है, ज़रा मेरे ब्लॉग पर गौर फरमाएं. दूसरी बात अपने सेकुलर अंकल महेश भट्ट की छात्र-छाया में इमरान हाशमी ने घर न मिलने का रोना रोया था लेकिन आज ही पता चला की उन्होंने अपनी बात वापस लेते हुए बचाव की मुद्रा में आ गए हैं. और ठीकरा एस्टेट एजेंट के सर फोड़ दिया. ...कि सब उसकी गलतफहमी की वजह से हुआ. दरअसल इस देश में वोट बैंक की राजनीति और शबाना-जावेद सहित महेश भट्ट जैसे लोगों की सेकुलर- दुकानदारी बंद हो जाए तो हिन्दू-मुस्लिम के बीच तनाव काफी कम हो सकता है.
ReplyDeletewww.secular-drama.blogspot.com