यही प्रवक्ता रहरह कर बीजेपी में टूट के बीज बोता रहता है।
जिन्ना का जिन्न है ये जनाब !
एक हिंदुस्तान का राष्ट्रपिता तो दूसरा पाकिस्तान का (क़ायदे-आज़म)। दोनों साथ-साथ हैं लेकिन अपने विचारों से कोसों दूर। गांधी कभी अपने कब्र से इस तरह कभी बाहर नहीं आए, जिस तरह जिन्ना बारबार। और हर बार विभाजन की लकीर खींचीं, ज़िदा थे तब भी यही काम किया, लेकिन शायद गांधी की कब्र नहीं है तो वो बाहर नहीं निकलते। वैसे भी ये जिन्ना का जिन्न है जनाब, पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं लेता। न जाने बार जिन्ना कब्र से बाहर निकले, अपनी फितरत की तरह कुछ न कुछ अपने पीछे छोड़ ही जाते हैं। ये वही जिन्ना हैं जो कभी राजनीति से अज़ीज आकर दुबारा वापस न आने की कसम खाकर ब्रिटेन चले गए थे, लेकिन मुस्लिम लीग की बेपनाह गुजारिश के बाद अपने कदम दुबारा हिंदुस्तान में रखे, लेकिन इस बार मिजाज-ए-जिन्ना बिल्कुल जुदा था। ये पहले वाले राष्ट्रवादी जिन्ना नहीं थे, अंग्रेज़ो ने इनके मन में विभाजन के बीज बो दिए थे। इस मसले को पाकिस्तान के नज़रिए से देखें तो हाल के दिनों में वह इतने आरोपों को झेल चुका है कि ख़ुशी का कोई भी मौक़ा हाथ से नहीं गंवाना चाहता। चाहे ट्वेंटी 20 का वर्ल्ड कप का फ़ायनल हो या जश्ने आज़ादी, बंदूक़ें निकाल कर हवाई फ़ायरिंग शुरू कर देते हैं। आख़िर कर भी क्या सकते हैं, मौक़ा भी तो कभी-कभी मिलता है। एक मौक़ा जसवंत सिंह ने भी दे दिया है, ख़बर है कि शुक्रवार को वो पाकिस्तान भी जा रहे हैं अपनी किताब के प्रमोशन के लिए। लेकिन सोचने वाली बात है कि हर बार बीजेपी को जिन्ना का जिन्न ही क्यों जकड़ लेता है। क्यों एक राष्ट्रवादी पार्टी अपनी दुर्गति पर उतर आती है। दरअसल इन सबके बीच बीजेपी के पतन की कहानी के शुरूआत की वजह ढूंढने की कोशिश करें तो वाजपेयी जी की बीमारी के बाद उनका सक्रिय राजनीति से सन्यास और प्रमोद महाजन की असामयिक मौत ने पार्टी को ऐसा झटका दिया कि वह उससे उबरने की कोशिश में ही ख़त्म हो गई, रही सही कसर पूरी कर दी राजनाथ सिंह ने जो दरअसल राष्ट्रीय स्तर के नेता बनने लायक़ कभी थे ही नहीं, लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के समर्थन से वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन बैठे। और अब आलम ये है कि हाल के लोकसभा चुनाव में मिली मात के बाद तमाम जिम्मेदार नेता सत्ता के बचे-खुछे पदों को हथियाने की कवायद में जुट गए, न तो चिन्तन बैठक में इस पर चिंता जाहिर की गई न ही अपने हार से कुछ सीख ही ले पाई। कभी कुछ पत्रकारों के हाथों में तो कभी आरएसएस के हाथों की कठपुतली बनी रही। लेकिन जिन्ना के जिन्न ने तो इसे टूट के कगार पर ला खड़ा किया है। जिन्ना के बारे में सबसे दिलचस्प बात ये है कि मुस्लिम मुल्क़ पाकिस्तान के जनक के पूर्वज हिंदू थे, जिन्होंने बाद में इस्लाम क़बूल कर लिया. और शुरू में मुस्लिम लीग ज्वाइन करने से इसलिए इन्कार कर दिया था कि यह केवल मुसलमानों की ही बात करता है जबकि अल्पसंख्यक मुसलमानों के रहनुमाई करने से उन्हें कोई एतराज़ नहीं था. लेकिन बाद में यही जिन्ना मुसलमानों के एकमात्र प्रवक्ता बनना चाहते थे।
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वाह बहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपके पोस्ट के दौरान अच्छी जानकारी मिली! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!
ReplyDeleteविचारणीय लेख
ReplyDeletewah! wah! chandan miya bada achcha likha hai mene to aj kal blogginfg kar na chhod diya hai . starting to lajawab hai miya
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