काग़जों में उनकी यादों को समेटे जा रहा हूं,
कभी इज़हार तो न कर पाए उनसे,
कहीं-न-कहीं मेरे लिए भी होगी उनके दिल में जगह,
यही सोचकर अब तक जीये जा रहा हूं।।
कौन करता है याद उस दौर को,
जब कुछ नहीं था पास,
फिर भी बहुत कुछ था,
आज सबकुछ है, फिर भी कुछ नहीं है।
उनकी गलियों से गुजरे एक ज़माना हो गया,
फिर भी यादों में वो आज भी बसे हैं,
एक अधूरी मुलाक़ात तो हुई थी,
चंद पलों की वो कहानी,
अब फसाना है......................।
बहुत बढि़या भाव.
ReplyDeleteसुंदर!
ReplyDeleteरक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
विश्व-भ्रातृत्व विजयी हो!
धन्यवाद दिनेशजी............
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