ख़ैर ये ख़बर दिलासा देने वाली है कि मंदी के बादल अब छंटने लगे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए, आइंदा सतर्क रहें, चंद लालची लोगों की वजह से करोड़ों ज़िंदगी को बचेने की कोशिश होनी चाहिए, बजाय उनकी महत्वाकांक्षा को संतुष्ट करने के। जिसने न जाने कितनों के विश्वास के साथ धोख़ा किया।
मंदी को भी मिलने लगी मात !
ऐसा लग रहा है, मंदी भी अब मात खाने लगी है। हालांकि जैसे जख़्म इसने दिए हैं उससे पूरी तरह उबरनें अभी कुछ वक़्त तो लगेगा ही, क्योंकि मंदी के दौर से पहले जिस रफ़्तार से उभरते विकासशील देशों में पूंजी आ रही थी, उस रफ़्तार में कमी आई है और उसे वापस पुराने स्तर पर आने में समय लगेगा. पिछले दो सालों से जिस तरह से इसने लाखों या कहें तो पूरी दुनिया करोड़ों लोगों को अपना शिकार बनाया। कइयों ने तो अपनी जान भी दे दी। इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इसने किस तरह से हमें चपेट में लिया। लेकिन इसकी वदह क्या रही, इसे जानने की सही कोशिश किसी ने ईमानदारी से नहीं की। यदि किया भी तो इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित अमेरिका रहा। जिससे उबरने में उसे अभी काफी वक़्त लगेगा, चाहे ओबामा यस, वी कैन, चेंज़ जैसी पंच लाइनों के सहारे अमेरिका के सुप्रीमों का पद जीत गए हों, उन्हें भी मालूम है कि ही कैन नॉट चेंज़। क्योंकि अमरीका जैसे देश जहाँ की अर्थव्यवस्था खपत पर आधारित है, उन्हें अपना निर्यात बढ़ाने पर ध्यान देना होगा और वो भी ऐसे वक्त में जब एशियाई देशों से आयात बढ़ रहा है। कम से कम फिलहाल तो नहीं ही। लेकिन हां, अर्थव्यवस्था में सुधार के लक्षण दिखने लगे हैं। फ्रांस और जर्मनी के बाद अब जापान भी इस घातक मंदी से उबरने लगा है। जिससे उम्मीद की एक नई किरण जगती है। लेकिन भारत जैसे कुछ ऐसे मुल्क़ हैं, जो इससे प्रभावित कम रहा, लेकिन इसका ख़ूब हो-हल्ला मचाया। ख़ासकर पब्लिक सेक्टर ने तो कुछ ज़्यादा ही कॉस्ट कटिंग के नाम पर लाखों लोगों को नौकरी से निकाल कर, उनकी ज़िंदगी से खिलवाड़ किया। और आलम ये कि उन्हें सरकार की तरफ़ से राहत पैकेज़ दिए जाएं, सत्यम को डूबाया किसी और ने लेकिन उबारने का काम सरकार उस आम लोगों के पैसे से कर रही, जिसे वही निजी क्षेत्र धक्के देकर बाहर निकाल रहे थे। इस तरह के खेल ख़ूब चले और चल रहे हैं, चलते भी रहेंगे। ख़बर तो ये भी है कि कुछ देशों में हालत में जिस तरह का सुधार दिख रहा है वो वहाँ की सरकारों के सहायता पैकेज का नतीजा है और ये ख़तरा ज़रूर है कि पैकेज के असर के खत्म होने के बाद वहाँ मंदी का दौर फिर से शुरू हो जाएगा.
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वाह !
ReplyDeleteअच्छी बात !
आपकी चिन्ता लाजिमी है, हम भी यही उम्मीद करते है कि फिर अच्छे दिन आये और मंदी का दौर खत्म हो। अच्छी रचना चन्दन जी।
ReplyDeleteये गोयबल्स के चेले हैं उसने भी झूठ को सौ बार बोलकर सच साबित कर दिया था
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