पहले आडवाणी , अब जसवंत। उसके बाद पता नहीं कौन। आख़िर ऐसा क्यों है कि हिंदुत्व का पुरजोर वकालत करने वाली पार्टी आजकल हिंदुओं के बजाय मुसलमानों पर ज़्यादा ध्यान दे रही है। आडवाणीजी को पीएम बनना था, सो उसकी तैयारी वो पहले से ही करने लगे लेकिन दांव उल्टा पड़ गया, कहने वाले कहते हैं कि अपनी छवि सुधारने के चक्कर मे कन्फ्यूजिया गए कि करना क्या है और बोलना क्या, इसलिए जनता उनको समझ नहीं सकी। लेकिन जसवंत सिंह को क्या हो गया, न तो अभी कोई चुनाव होने वाले हैं और न ही कुछ ऐसा कि इस तरह की बातें वो कर सकें, क्योंकि जब बीजेपी के लोग इस तरह की बातें जब करते हैं तो ख़ुद को उदारवादी बनाने के बहाने सुर्ख़ियों में आने का बहाना ढ़ंढ़ते हैं। वही काम जसवंतजी कर रहे हैं। एक अलग ही इतिहास लिखने का काम किया है, जसवंत सिंह ने। वैसे भी बीजेपी वालों को इतिहास लिखने में खासी दिलचस्पी रहती है, आपको याद ही होगा, जब सत्ता में थी ये पार्टी तो कैसे-कैसे इतिहास लिखने का काम कर रही थी।
दरअसल जसवंतजी जिन्ना को महान और नेहरू और सरदार पटेल को भी विभाजन के लिए कसूरवार बता कर ये जताने की कोशिश कर रहे है,
" कैसे हम इल्जाम लगाएं, बारिश की बौछारों पर।
हमने ख़ुद तस्वीर बनाई, मिट्टी की दीवारों पर।। "
सिवाय बखेड़ा खड़ा करने के और कुछ भी मक़सद नहीं होता है इनका। ये वही जसवंतजी हैं, जो आतंकवादियों को अपने साथ छोड़ने प्लेन में कंधार तक जाते हैं। उनके गृह-मंत्री अपनी किताब में कहते हैं, मुझे इस बात की कोई जानकारी ही नहीं थी।
दरअसल बीजेपी आजकल संक्रमण के दौर से गुजर रही है, किसी भी नेता का कुछ अता-पता नहीं कब क्या बोलना है। वैसे भी हमारे नेताओं में भी अब किताबें लिखने का भूत सवार होने लगा है, चलिए वैसे भी कहा गया है, खाली दिमाग़ शैतान का घर।
बढिया चित्र उकेरा है ............ऐसा होता है तो है पर क्यो .......समय कभी कभी जवाब दे देता है .............
ReplyDeleteहाशिये पर जाते हुए राजनेताओं को किताब लिखने के अतिरिक्त कोई काम नहीं बचा है... इसी से वे चर्चा में बने रहना चाहते हैं... और कुछ विवादित लिखना तो आज कल का फैशन है...
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