बंदूक से विकास को चुनौती

प्रधानमंत्री ने आखिरकार मान ही लिया कि नक्सलवाद की वजह क्या है। उन्हें इस बात का एहसास हो ही गया कि 90 के दशक में जो उन्होंने आर्थिक उदारीकरण की नींव रखी थी, उससे अमीर पहले की अपेक्षा और अमीर और गरीब पहले से बहुत गरीब होते गए। इससे समाज का बहुसंख्यक वर्ग उनके द्वारा शुरू विकास की आंधी में कहीं खो गए। अब जबकि उन्हें इस बात का इहलाम हो गया है तो क्या वह कुछ करने की जहमत उठाएंगे या फिर उन्होंने बस कहने भर के लिए कहा है कि विकास से वंचित होने के चलते उग्रवाद या नक्सलवाद फैल रहा है। अब तो उन्हें भी पता चल गया होगा कि जब देश का बहुसंख्यक तबका विकास की देहरी तक अपना कदम नहीं रख पाता है तो उनमें से ही कुछ सिरफिरे बंदूक उठाकर विकास को चुनौती देने लगते हैं। इन दोनों के पाटों में जो मारा जाता है वह बेकसूर जवान या सेना जो सिर्फ सरकार का आदेश बस इसलिए मानती है कि सरकार उसके रोजी रोटी के लिए महीने के हर तीसवें दिन पैसा देती है। यह पैसा भी हालांकि उसके लिए कम पड़ता है। फिर भी वह शांति और सुरून से जिंदगी गुजारने के लिए सरकार का हुक्म मानकर नक्सलियों के खिलाफ जंग करती है। यदि प्रधानमंत्री विकास की अधूरी परिभाषा को समझ चुके हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि आईपीएल में हस्तक्षेप से थोड़ा सा वक्त निकालकर इन वंचित और बेसहारा तबका की ओर ध्यान देंगे। हालांकि उनके लिए चुनौती बढ़ गई है। उनकी सरकार द्वारा ही बिठाई गई एक कमेटि ने कहा है कि पहले की अपेक्षा देश में 10 फीसदी गरीबों की तादाद बढ़ी है। अब यदि वाकई पीए को अपनी गलती का एहसास हुआ है तो उन्हें इसे सुधारने के लिए कोशिश करनी चाहिए, न कि कोशिश करते हुए दिखनी चाहिए। यदि अब वह इसमें असफल होते हैं तो अंसतोष का ज्वार तेजी से फैल ही रहा है, और भी तेज रफ्तार पकड़ लेगी। नतीजतन दिन ब दिन भारत में हिंसक गतिविधियों की घटनाएं ही सुर्खियों में रहेंगी। मुमकिन है जो जवान आज सरकार का आदेश मानकर उसकी हुक्मबरदारी करती है, आगे वह साफ इनकार भी कर दे। हाल में जो खबरें आई हैं वह कम हैरान करने वाली नहीं हैं। बिना प्रशिक्षण के लड़ने के लिए भेजना और भूख और पानी से बेहाल जवानों को मार्चाबंदी के लिए तैयार करना। मतलब तो साफ है कि सरकार नक्सलियों का सफाया करने के लिए सेना का इस्तेमाल नहीं कर रही, बल्कि एक गरीब को दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल कर रही है।

2 comments:

  1. यह मुद्दे जब तक रहेगे तब तक नेताओ की मौज है सो कुछ भी नहीं होने वाला !

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  2. अच्छी विवेचना के लिए धन्यवाद / वैकल्पिक मिडिया के रूप में ब्लॉग और ब्लोगर के बारे में आपका क्या ख्याल है ? मैं आपको अपने ब्लॉग पर संसद में दो महीने सिर्फ जनता को प्रश्न पूछने के लिए ,आरक्षित होना चाहिए ,विषय पर अपने बहुमूल्य विचार कम से कम १०० शब्दों में रखने के लिए आमंत्रित करता हूँ / उम्दा देश हित के विचारों को सम्मानित करने की भी वयवस्था है / आशा है आप अपने विचार जरूर व्यक्त करेंगें /

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