निरुपमा का ट्रायल ना हो

कहते हैं, बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। पर कुछ बातें जहाँ से शुरू होती हैं, वहीँ ख़त्म हो जाती हैं। आगे बढती है तो गलत दिशा अख्तियार कर लेती है। यही बात निरुपमा की मौत के मामले में कही जा सकती है। कहाँ तो सभी मीडिया ट्रायल की कोशिशों तक पहुँच चुके थे, उसकी मां को गिरफ्तार भी किया गया है। आरोप निरुपमा के परिवार वालों पर इतना संगीन है कि इसे राजस्थान और हरयाणा कि खाप पंचायतों से जोड़ा गया। निरुपमा की मौत का भी मीडिया ने तमाशा बनाना शुरू कर दिया था। आरुषी की तरह इसे भी एक बड़ा मामला बनाने की कवायद नज़र आयी, पर गनीमत है उतना बड़ा बखेड़ा खड़ा नहीं हुआ। यह सही है की निरुपमा को न्याय मिलनी चाहिए। पर क्या इसकी कोई कीमत होनी चाहिए। इसके लिए बिना कोई जाँच पड़ताल किये ही सब कुछ पहले ही तय कर देना जायज है। क्या कोर्ट के पहले ही फैसला सुना दिया जाना चाहिए। यदि नहीं तो इस तरह के मामलों को लेकर हमारी अंधी कोशिश बंद होनी चाहिए।

1 comment:

  1. Chandan Jee,

    Right & timely post . Media should learn to keep safe distance while following the case. They should keep an eye on investigation but should never try to pre judge it , as is happening in this case.

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