वामपंथी विचारधारा से शुरू हुआ नक्सलवाद अब लगता है, तृणमूल कांग्रेसी विचारों का समर्थक हो गया है। वामपंथी तीस से अधिक वर्षों से बंगाल में काबिज हैं। ममता को राज करने का कोई भी मौका नहीं मिला। अब वह किसी भी कीमत पर यह सत्ता हासिल करना चाहती है। साम-दाम-दंड-भेद हर कारगर तरीके को आजमाना चाहती हैं। पिछले दिनों पश्चिमी मिदनापुर जिले में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस में जो हादसा हुआ, कोई पहला नक्सली हादसा नहीं था। हालांकि किसने ट्रेन को निशाना बनाया यह विवाद चल ही रहा है। पर हकीकत सबको मालूम है। खैर, हमले के एक दिन बाद कहीं पर इससे संबंधितएक रिपोर्ट पर नजर पड़ी। देख-पढ़कर सन्न रह गया। स्तब्ध रह गया मैं।
हादसे वाली ट्रेन ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस से दो नन्हीं जुड़वां बच्चियां भी अपने अम्मी-अब्बू के साथ मुंबई जा रही थीं। शिरिन और शरमिन। उन्हें शायद यह भी पता नहीं था, माओवादी कौन होते हैं और न ही यह कि नक्सलियों न उनके ट्रेन को क्यों निशाना बनाया? शिरिन और शरिमन की यह पहली छुट्टियां थी। उस रात आंखों में मुंबई देखने का सुनहरा सपना लिए दोनों बहनें एक-दूसरे को गले लगाकर सोई थीं। और, इसी तरह उन्होंने दुनिया को भी अलविदा बोला। शुक्रवार सुबह जब सीआरपीएफ के कठोर दिल जवानों ने जब शिरिन-शरमिन को एस-4 डिब्बे से बाहर निकाला तो उनकी आंखों से भी आंसू छलक पड़े। उनके माता-पिता सैय्यद जावेद आलम-साबिया स्कूल टीचर थे। अपनी जुड़वा बेटियों को सात दिनों की खुशी देने के लिए इन्होंने वर्षों तक इंतजार किया था। वह भी इस हादसे में मौत के शिकार हो गए। बचाव दल ने पहले जावेद और साबिया शव ही बाहर निकाला था। फिर अचानक उनकी नजर छोटी-छोटी अंगुलियों, गाल और गहरे भूरे रंग से गूंथी बालों पर पड़ी। सीआरपीएफ के बचाव अभियान ने तेजी पकड़ ली, लेकिन उनका यह पहला बचाव कार्य जल्द ही मातम में बदल गया। शिरिन और शरमिन को एस-4 से बाहर निकाला तो दोनों बहनें उस कुचले हुए बर्थ पर पड़ी हुई थीं। एक-दूसरे को जोर से पकड़े हुए थीं, एक का सिर दूसरे के सीने में धंसा था। शिरिन और शरमिन एक जैसी ही फ्रॉक पहने हुए थीं। एक के फ्रॉक का रंग हरा तो दूसरे का पीला था। ऐसा लगता था, मानों दोनों अभी भी सोई हैं। पर...उनके चेहरे पर खून का थक्का जमा था। दोनों बहनों को एक-दूसरे से अलग करने में जवानों को काफी मेहनत-मशक्कत करनी पड़ी। मानों वे किसी दो गुथ्थम-गुत्थे शव को अलग नहीं, बल्कि दो बहनों को हमेशा के लिए एक-दूसरे जुदा कर रहे हों। ट्रेन पर चढ़ने से पहले, शिरिन-शरमिन की अम्मी साबिया बेहद खुश और उत्साहित नजर आ रही थी। वह खुश थी कि उनकी बेटियां मुबंई देखेगी। वह ट्रेन के सफर के दौरान कई चीजों को देख सकेगी, लेकिन उनका सफर चंद घंटों में ही हमेशा के लिए खत्म हो गया। भला किस्मत किसी के साथ इतना क्रूर कैसे हो सकता है? शिरिन और शरमिन का क्या कसूर था? वे तो दो नन्नी परियां थीं। जिन चीजों से दूर-दूर तक वास्ता नहीं था, उसने शिरिन-शरमिन और उनकी अम्मी-अब्बू से छीन लिया।
हादसे वाली ट्रेन ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस से दो नन्हीं जुड़वां बच्चियां भी अपने अम्मी-अब्बू के साथ मुंबई जा रही थीं। शिरिन और शरमिन। उन्हें शायद यह भी पता नहीं था, माओवादी कौन होते हैं और न ही यह कि नक्सलियों न उनके ट्रेन को क्यों निशाना बनाया? शिरिन और शरिमन की यह पहली छुट्टियां थी। उस रात आंखों में मुंबई देखने का सुनहरा सपना लिए दोनों बहनें एक-दूसरे को गले लगाकर सोई थीं। और, इसी तरह उन्होंने दुनिया को भी अलविदा बोला। शुक्रवार सुबह जब सीआरपीएफ के कठोर दिल जवानों ने जब शिरिन-शरमिन को एस-4 डिब्बे से बाहर निकाला तो उनकी आंखों से भी आंसू छलक पड़े। उनके माता-पिता सैय्यद जावेद आलम-साबिया स्कूल टीचर थे। अपनी जुड़वा बेटियों को सात दिनों की खुशी देने के लिए इन्होंने वर्षों तक इंतजार किया था। वह भी इस हादसे में मौत के शिकार हो गए। बचाव दल ने पहले जावेद और साबिया शव ही बाहर निकाला था। फिर अचानक उनकी नजर छोटी-छोटी अंगुलियों, गाल और गहरे भूरे रंग से गूंथी बालों पर पड़ी। सीआरपीएफ के बचाव अभियान ने तेजी पकड़ ली, लेकिन उनका यह पहला बचाव कार्य जल्द ही मातम में बदल गया। शिरिन और शरमिन को एस-4 से बाहर निकाला तो दोनों बहनें उस कुचले हुए बर्थ पर पड़ी हुई थीं। एक-दूसरे को जोर से पकड़े हुए थीं, एक का सिर दूसरे के सीने में धंसा था। शिरिन और शरमिन एक जैसी ही फ्रॉक पहने हुए थीं। एक के फ्रॉक का रंग हरा तो दूसरे का पीला था। ऐसा लगता था, मानों दोनों अभी भी सोई हैं। पर...उनके चेहरे पर खून का थक्का जमा था। दोनों बहनों को एक-दूसरे से अलग करने में जवानों को काफी मेहनत-मशक्कत करनी पड़ी। मानों वे किसी दो गुथ्थम-गुत्थे शव को अलग नहीं, बल्कि दो बहनों को हमेशा के लिए एक-दूसरे जुदा कर रहे हों। ट्रेन पर चढ़ने से पहले, शिरिन-शरमिन की अम्मी साबिया बेहद खुश और उत्साहित नजर आ रही थी। वह खुश थी कि उनकी बेटियां मुबंई देखेगी। वह ट्रेन के सफर के दौरान कई चीजों को देख सकेगी, लेकिन उनका सफर चंद घंटों में ही हमेशा के लिए खत्म हो गया। भला किस्मत किसी के साथ इतना क्रूर कैसे हो सकता है? शिरिन और शरमिन का क्या कसूर था? वे तो दो नन्नी परियां थीं। जिन चीजों से दूर-दूर तक वास्ता नहीं था, उसने शिरिन-शरमिन और उनकी अम्मी-अब्बू से छीन लिया।
nice
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