आजादी के पहले तक या उससे 4-5 साल बाद तक भ्रष्टाचार की बात पिछड़ी नहीं लगती थी। वह चौंकाती थी। उस पर गुस्सा आता था। पर आज तो इसकी बात करने पर लोग कहेंगे यह तो अभी भी एक मुद्दे पर अटका हुआ है। पिछड़ा हुआ है। कभी तरक्की नहीं करेगा। हमारे देश में एक नई बात है। अफसर को भ्रष्टाचारी कौन बनाता है? व्यापारी! और व्यापारी को भ्रष्टाचार करने की छूट कौन देता है? अफसर! एक पवित्र कार्य में दोनों लगे हैं। इनमें लड़ाई होना वैसे ही है, जैसे पहले अमेरिका-रूस और अब अमेरिका-चीन के बीच हथियारों का जखीरा जमा करने का झगड़ा। इससे भी एक कदम बढ़कर बात करे तो इन दोनों की लड़ाई, जैसे प्रभु के दो भक्तों की लड़ाई। प्रभु के चरणामृत को लेकर झगड़ा है यह। तूने ज्यादा चरणामृत ले लिया, तूने भोग में से ज्यादा मिठाई ले ली। उसके बाद आजकल बड़े-बड़े अफसरों और नेताओं की संपत्ति की सीबीआई जांच का चलन बन पड़ा है। सीबीआई जांच किस तरह होती है, यह सभी जानते हं। उत्तरप्रदेश में मायावती से छत्तीस का आंकड़ा होने के बावजूद मायावती ने संसद में कांग्रेस सरकार बचाने के लिए उसके पक्ष में वोट डाला। फिर लालू जी विरोध कांग्रेस का करते रहे, पर उसके खिलाफ वोट डालने के बजाय संसद से बाहर चले गए। यही हाल मुलायम सिंह यादव का रहा। इन तीनों में एक समानता है कि तीनों पर आय से अधिक संपत्ति का मामला चल रहा है। इनमें से किसी ने कांग्रेस के विरोध में वोट डालने की जुर्रत की होती तो अब तक इन पर सीबीआई स्वरूपी सांढ़ छोड़ दिया गया होता। फिर सवाल यह भी है कि जांच कौन करे? अफसर अकेला तो खाता नहीं है। वह नीचे भी खिलाता है और ऊपर भई खिलाता है। ऊपर जो जांच करने वाला है, वह भी तो खाता होगा।
Chandan - ati utam
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