मामला आतंकवाद से जुड़ा है. आतंकवाद का नाम आते ही पता नहीं क्यों सभी की जुबां पर पाकिस्तान का नाम चढ़ जाता है. नया नाम पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिक फैसल शहजाद का है. कहा जाता है कि उसके माता-पिता पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्नाह के आधुनिक ख्यालातों से बेहद प्रभावित थे. जिन्नाह कि नज़रों में पाकिस्तान मुसलामानों का मुल्क होता, लेकिन वह मुस्लिम मुल्क नहीं होता. जिस मुल्क पर नौकरशाहों और सेना ने लम्बे अरसे तक शासन किया और इन्होंने ही यहाँ की तहजीब और संस्कृति की दशा और दिशा तय की. पाक में एक ऐसा वर्ग है जो हर तरह से हर जगह हावी है। पर इनकी तादाद बहुत कम है। यहाँ हमेशा से बहुसंख्यक अपनी जिन्दगी का फैसला दूसरों पर छोड़ते रहे हैं या कहें तो उन्हें ऐसा करने पर मजबूर होना पड़ता है। अब यही देख लीजिये कि फैसल की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान की आवाम को न चाहते हुए भी बदनामी झेलना पड़ेगा। पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक का भी कहना है इससे उनके मुल्क की इज्ज़त को बट्टा लगा है और बदनामी हुयी सो अलग। रहमान का कहना है कि आतंकवादी पाकिस्तान को नाकाम रियासत साबित करना चाहते हैं। इस तरह देखें तो हर तरफ यही लगता है किसभी पाकिस्तान को बदनाम करने कि फिराक में लगे हैं। पर ज़रा सोचिये अपनी इस कोशिश में हम न जाने कितने बेगुनाह पाकिस्तानियों के ऊपर भी बदनामी का ठप्पा लगा देते हैं। इसे हम भारत के ही एक उदहारण से समझ सकते हैं। यहाँ बिहार के लोगों को दुसरे राज्य वाले बिहारी के नाम से पुकारते हैं। यानी बिहार राज्य का रहने वाला बिहारी हुआ, ठीक उसी तरह जैसे, बंगाल का रहने वाला बंगाली, पंजाब का पंजाबी पर बिहार वालों के साथ ऐसा नहीं है। अतीत में कुछ लीगों कि गलत कारगुजारियों की वजह से आज बिहारी एक गाली के सामान इश्तेमाल होता है। पर अधिकांश बिहारवासियों कि शिकायत होती है कि दूसरों या कुछ लोगों की सजा भला उन्हें क्यों मिलना चाहिए। इसी जुमले को हम पकिस्तान के सन्दर्भ में भी प्रयोग कर सकते हैं। यह सच है वहां कुछ लोग गलत या नापाक रास्तों कि और बढ़ चुके हैं। लेकिन कुछ लोगों कि वजह से हम सभी को तो आतंकवादी करार नहीं दे सकते न। यदि ऐसा करते हैं तो हर मुल्मे इस तरह के चरमपंथी मौजूद हैं और हर मुल्क आतंकी मुल्क है।
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