कांग्रेस और आज़ादी के फ़साने

भारतीय इतिहास में मुस्लिम लीग और कांग्रेस दोनों का नाम सिक्के के दो पहलू की तरह है। आजादी की लड़ाई में दोनों कई मोर्चों पर साथ रहे। कई मोर्चों पर बिल्कुल विपरीत। लीग को कांग्रेस से शिकायत थी कि वह उसे अहम ओहदे और सत्ता में भागीदारी देने के लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस का आरोप से मुकरना और कहना, वह गलत मांग उठा रहा है। यह कहना कि कांग्रेस में जो भी लोग पदों पर काबिज हैं, वह जनतांत्रिक तरीके से आए हैं। यह बात लीग हजम नहीं कर पाया। बात सही भी थी। आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली कांग्रेस में उस वक्त भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था, जैसा कि आज भी नहीं चल रहा है। बंकिम चंद्र चटर्जी की रचना ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रगीत का दर्जा हासिल है। उन्होंने उस वक्त कहा था, कांग्रेस के लोग पदों के भूखे हैं। क्या यह बात आज भी सही नहीं है? खैर, भारतीय इतिहास में 1857 की क्रांति को इतिहासकार कई नजरिए से देखते हैं। कुछ के मुतिबक, यह सैनिक विद्रोह है तो टी आर होम्स जैसे विद्वानों ने इसे सभ्यता और बर्बरता का संघर्ष बताया है। इस क्रांति को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम वीर सावरकर ने दिया। वही वीर सावरकर जिन्होंने अभिनव भारत की बुनियाद रखी थी। अभिनव भारत, जिसका नाम आजकल हिंदू आतंकवाद को पनाह देने वाले संगठन के तौर पर लिया जाने लगा है। सावरकर की मूर्ति की स्थापना के नाम पर ही कांग्रेसी मंत्री मणिशंकर अय्यर भिड़ पड़े थे। शायद उनके हिसाब से भारत गांधी खानदान की विरासत है। हर जगह उनका ही नाम होना चाहिए। गांधी से मतलब महात्मा गांधी से नहीं, नेहरू परिवार से है। इसे भी छोड़िए। हां तो, अभिनव भारत उसी साल बना जिस वर्ष मुस्लिम लीग अस्तित्व में आया यानी 1906 में। यहां सबसे अहम सवाल यह उठता है कि जब पूरा देश कांग्रेस के पीछे आंख मूंदे भाग रहा था, तो भला मुस्लिम लीग जैसे संगठनों को बनाने की लोगों ने क्यों ठानी? क्योंकि इन संगठनों के संस्थापकों का ताल्लुक किसी न किसी स्तर पर शुरुआती समय में कांग्रेस से संबंध रहा है। फिर कांग्रेस से अलग होने का फैसला क्यों? कुछ जानकारों की मानें तो आज़ादी की लडाई गांधीजी के नेतृत्व में लड़ी जा रही थी, पर नाम कांग्रेस के शीर्ष पदों पर काबिज लोगों का भी हो रहा था। इससे आपत्ति किसी को नहीं हो सकती। पर कुछ ऐसे लोग भी थे जों बगैर कुछ किए सबकुछ हासिल कर रहे थे। वहीं कुछ ऐसे भी लोग थे, जो सबकुछ कुर्बान करने के बावजूद आजादी की लड़ाई के परिदृश्य में कहीं नजर नहीं आ रहे थे। यदि मुस्लिम लीग जैसे संगठनों के इतिहास पर नजर डालें तो अपनी उपेक्षा से आजिज आकर इनके लोगों ने अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ी। जैसा कि ये लोग कहते आ रहे थे, हमें हमारी उपयोगिता साबित करनी पड़ेगी। नतीजतन इन्होंने कांग्रेस के जवाब में मुस्लिम लीग बनाई। ऐसे में बंकिम चंद्र की बात सौ फीसदी सही साबित होती है।

6 comments:

  1. thik kaha chandan bhai apne, congress wale pad ke bhukhe hain. waise blog padhkar prasanta nahi hui. phir bhi lage rahiye"nai mama s kanhe mama nik".

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  2. ठीक कहा चन्दन भाई आपने, कांग्रेस वाले पद के भूखे हैं. ब्लॉग पढ़कर प्रसंता नहीं हुई. फिर भी लगे रहिये" नै मामा स कन्हे मामा नीक".

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  3. तथ्यपरक जानकारी। बहुत सारी बातें मालूम थी और बहुत सारी नहीं। याद दिलाने के लिए शुक्रिया और नई जानकारी के लिए धन्यवाद।
    http://udbhavna.blogspot.com/

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  4. बहुत अच्छा लिका आपने अब इस खानदान को गांधी नहीं नौहरू का खान दान कहना चाहिए,इसी खानदान ने आज देश को फिर एक अंग्रेज का गुलाम बना दिया

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