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भारत में
कोरोना वायरस के अभी तक (4 मई दोपहर 1 बजे तक) 42 हजार 533 मामले आ चुके हैं। 1373
लोगों की मौत हुई है। यही आधिकारिक आंकड़ा है। 30 अप्रैल को कोरोना से संक्रमितों
की यह संख्या 32 हजार थी। उससे पहले 20 अप्रैल को 16 हजार यानी 30 अप्रैल को देश
में कोरोना मरीजों की संख्या दो गुनी हो गई। अब चार दिन भी ठीक से नहीं हुए कि 10
हजार से अधिक केस और हो गए।
रविवार को सेना ने कोरोना वॉरियर्स के सम्मान में पुष्पवर्षा और फ्लाई पास्ट
किया। कश्मीर से कन्याकुमारी और गुवाहाटी से अहमदाबाद तक। देश के प्रमुख शहरों के
जिन अस्पतालों में कोविड-19 पीड़ितों का इलाज हो रहा है, वहां भी हेलिकॉप्टर से
पुष्पवर्षा की गई। यह फैसला किसका था। स्वाभाविक रूप से सरकार का ही होगा। इस
सरकार को कोरोना वॉरियर्स के सम्मान का बहुत ख्याल है, लेकिन इस कोरोना की वजह से
सुरक्षा किट और बुनियादी जरूरतों की कमी से जूझ रहे डॉक्टरों और लोगों का ज़रा भी
ध्यान नहीं। एक प्रेग्नेंट महिला लेबर पेन में बच्चे की डिलिवरी के लिए कश्मीर में 100
किलोमीटर तक पैदल चलती है। इसका ख्याल नहीं है। मणिपुर में अधिकांश डॉक्टर कोरोना
मरीजों का इलाज काली पट्टी बांधकर कर रहे हैं, क्योंकि सरकार ने उनकी सैलरी में
भत्ते को काटने का फैसला किया है। उन्हें मरीजों के इलाज के लिए बुनियादी सुरक्षा
किट और मास्क नहीं मिल रहे हैं। डॉक्टर इस वैश्विक महामारी के समय सबसे अधिक काम
कर रहे हैं, लेकिन क्या सरकार के इस कदम से उनका मनोबल बढ़ा होगा।
50 साल का एक शख्स महाराष्ट्र से अपने घर उत्तर प्रदेश जाने के लिए साइकल से
निकलता है। तकरीबन 390 किलोमीटर तक साइकल चलाने के बाद वह मध्यप्रदेश पहुंचता है
और वहीं दम तोड़ देता है। अभी उसे घर पहुंचने के 1600 किलोमीटर और साइकल चलानी थी।
सरकार ने मजदूरों के लिए अब जाकर कुछ ट्रेनें चलाने का फैसला किया है, लेकिन मूल
किराया पर 50 रुपये और जोड़कर ले रही है। तो क्या 50 साल के उस व्यक्ति की मौत के
बाद उसके परिवार वाले खुद को सम्मानित महसूस कर रहे होंगे? मध्य प्रदेश में फंसे महाराष्ट्र के सैकड़ों मजदूरों के पास खाने के लिए कुछ
नहीं बचा और अब वे घर जाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं, तो इन प्रदर्शनों से उनका
सम्मान बढ़ा होगा? चंडीगढ़ की खबर है कि
जीएमसीएच-32 में ड्यूटी दे रहे जूनियर रेजिडेंट को न तो पीपीई किट दिया जा रहा है और
न ही एन-95 मास्क। अधिकारियों का कहना है कि पीपीई और एन-95 की पूरे देश में कमी
चल रही है। थोड़ी परेशानी में काम करना होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को जब देश में पहली बार लॉकडाउन की
घोषणा की थी, तो कुल कोरोना मरीजों की संख्या सिर्फ 496 थी। तब देश को बंद करने का
फैसला किया गया। अब यह संख्या 42 हजार से भी ज्यादा हो चुकी है, तो ठीक उल्टा
फैसला लिया जा रहा है। साफ संकेत हैं कि शुरू से ही सरकार के पास इस महामारी से
लड़ने की न तो कोई योजना थी और न ही उसे कुछ सूझ रहा था। बस बीच-बीच में हेडिंग और
मीडिया मैनेजमेंट की बदौलत वाहवाही लूटने के लिए बयानबाजी और भाषणबाजी की जाती
रही। कभी ताली-थाली, तो कभी दीये जलाना तो कभी सेना के विमानों से पुष्पवर्षा। पुष्पवर्षा
कर डॉक्टरों का सम्मान किया गया, लेकिन उन्हें पीपीई किट नहीं दिया जा रहा है।
आख़िर यह कैसा और किसका सम्मान है। कोरोना वॉरियर्स का तो बिलकुल नहीं।
मध्य प्रदेश के इंदौर-उज्जैन सीमा पर 18 के आसपास मजदूर मिक्सर मशीन से घर
जाते पुलिस की चपेट में आ जाते हैं। यह तो वाकई देश के लिए सम्मान की बात है।
गुजरात के सूरत से इलाहाबाद तकरीबन 1300 किलोमीटर का सफर। गोद में सालभर या उससे
भी छोटा बच्चा। एक हाथ में सूटकेस। तेज धूप और लू-हवा के बीच चलती एक महिला की
तस्वीर तो वाकई सम्मान करने वाली ही तस्वीर होगी। दरअसल, हम सवाल नहीं करना चाहते। सवाल करना गुनाह हो गया है। जब जिम्मेदार
लोगों से सवाल नहीं किए जाएंगे, तो किससे पूछा जाएगा कि इस अव्यवस्था के लिए
जिम्मेदार कौन है? क्या विपक्ष
जिम्मेदार है? क्या मुसलमान
जिम्मेदार है? (जारी...)
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