कोरोना संकट में भी गेस्ट टीचरों का हक छिनती सरकार, केजरीवाल-भाजपा सब मिले हुए हैं


टीचर यानी शिक्षक। दिल्ली सरकार के स्कूलों में सबसे ज्यादा ढिंढोरा स्कूलों की सफलता का ही पीटा गया है। लेकिन आप जानते हैं कि किस कीमत पर यह किया गया? शिक्षकों के शोषण और अब उनकी जान की कीमत पर...
10 मई को एक ख़बर आई। ख़बर यह थी कि रोहिणी में पति-पत्नी की कोरोना वायरस से मौत हो गई। पहले पति की जान गई, उसके बाद पत्नी की। महिला दिल्ली सरकार के स्कूल में कॉन्ट्रैक्ट टीचर थी। इस लॉकडाउन में भी स्कूलों में जरूरतमंदों को राशन बांटने की ड्यूटी सरकार की तरफ से लगाई गई थी। आख़िर सरकार की लापरवाही की क़ीमत उस महिला को चुकानी पड़ी। क्या सरकार को यह अंदाज़ा नहीं था कि ऐसे में ड्यूटी लगाना खतरनाक हो सकता है। एक तरफ नौकरी पक्की नहीं और कॉन्ट्रैक्ट/गेस्ट टीचर से काम भरपूर लेने के मामले में दिल्ली की सरकार सबसे अव्वल है और उस पर वाहवाही बंटोरने में भी आगे। लेकिन ये कॉन्ट्रैक्ट/गेस्ट टीचर अपनी जान दांव पर लगाकर काम कर रहे या करते हैं, फिर भी उनकी जिंदगी को स्थायित्व देने की एक छोटी-सी पहल भी नहीं की जाती है।
अब पूरा मामला यह भी देख लीजिए। देश भर में लॉकडाउन है, तो दिल्ली में भी है। दिल्ली तो सबसे ख़तरनाक रेड जोन में है। कंपनियां बंद हैं। दुकानें बंद हैं। जिन लोगों के पास स्थायी रोजगार नहीं हैं, उनके आय का साधन भी बंद है। ऐसे में उनके घरों का राशन और तमाम खर्चों का इंतजाम भी बंद हैं। इसी में दिल्ली सरकार ने एक नोटिस जारी कर स्कूलों में कॉन्ट्रैक्ट/गेस्ट टीचरों का कॉन्ट्रैक्ट भी खत्म कर दिया।
PM Modi, DElhi CM Kejriwal and Sisodia. Pic: Internet
दरअसल, दिल्ली के सरकारी स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियां शुरू होने के साथ ही इन स्कूलों में पढ़ाने वाले गेस्ट टीचर का लॉकडाउन जैसे महासंकट में आय का जरिया भी बंद हो गया है। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग ने 5 मई को एक आदेश जारी किया। आदेश में कहा गया, सभी गेस्ट टीचर का भुगतान सिर्फ 8 मई 2020 तक और गर्मियों की छुट्टियों में अगर उन्हें ड्यूटी के लिए बुलाया जाता है, तो उसके पैसे दिए जाएंगे। पिछले सप्ताह शिक्षा विभाग ने स्कूलों में 11 मई से 30 जून तक के लिए गर्मियों की छुट्टियों की घोषणा की थी। यानी इस अवधि में गेस्ट टीचरों को एक भी पैसा/सैलरी नहीं मिलने वाली है, क्योंकि उन्हें एक तरह से दिहाड़ी मजदूरों की ही तरह सरकार भुगतान करती है। इसे कुछ इस तरह समझिए कि जिस तरह दिहाड़ी मजदूर काम पर जिस दिन जाता है, उसे सिर्फ उसी दिन के पैसे मिलते हैं। अगर वह किसी दिन छुट्टी करता है, तो उस दिन के पैसे कट जाते हैं। जबकि कोई परमानेंट नौकरी वाले व्यक्ति के साथ ऐसा नहीं होता। उसे ली गई छुट्टियों के बदले भी पैसे मिलते हैं। गेस्ट टीचर के साथ तो दिहाड़ी मजदूरों से भी बुरा हाल है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों में दिन-रात खुद को खपा देने वाले गेस्ट टीचर को नैशनल होलीडे यानी गांधी जयंती, बुद्ध पूर्णिमा जैसे सरकारी छुट्टियों के पैसे भी कटते हैं।
ख़ैर लौटतें हैं असल मुद्दे पर। एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली के सरकारी स्कूलों में लगभग 20 हजार गेस्ट टीचर हैं। कोरोना वायरस महामारी यानी कोविड-19 की वजह से एहतियातन मार्च में दिल्ली के स्कूलों को बंद कर दिया गया था। इस दौरान गेस्ट टीचर परमानेंट शिक्षकों की ही तरह घर से काम करते रहे। गेस्ट टीचर स्कूल के एडमिनिस्ट्रेटिव काम के अलावा ऑनलाइन क्लास भी लेते रहे। यहां तक कि कुछ गेस्ट टीचरों को कोविड-19 से प्रभावितों को राहत का सामान बांटने के लिए कई राहत केंद्रों और स्कूलों में ड्यूटी सौंपी गई। हर साल की तरह इस साल भी गर्मियों की छुट्टियां घोषित की गईं। लेकिन एक अंतर है। कोविड-19 से पहले हर साल गर्मियों की छुट्टियों में भी स्कूल पूरी तरह बंद नहीं होते थे। मिशन बुनियाद और एक्स्ट्रा क्लासेज के लिए समर कैंप होते थे। इनमें लगभग 70 प्रतिशत गेस्ट टीचरों को ड्यूटी के लिए बुलाया जाता था। इस साल हालात बिलकुल अलग हैं। सभी गेस्ट टीचरों को घरों पर रहने की मजबूरी है और इस दौरान उनकी आय का जरिया भी बंद होगा। कई गेस्ट टीचर यूपी, हरियाणा, राजस्थान, एमपी और उत्तराखंड से हैं और दिल्ली में किराए पर रहते हैं। अब वे लॉकडाउन के दौरान खुद बेबस और लाचार महसूस कर रहे हैं, क्योंकि जब न आय होगी तो भला कैसे कमरे का किराया चुकाएंगे। कैसे उनका जीवन चलेगा।
दिल्ली सरकार इनके लिए कुछ कर सकती थी। एक तरफ सरकार कह रही है कि इस लॉकडाउन और कोविड-19 संकट में कोई किसी को नौकरी से न निकालें। कोई किसी की सैलरी न काटे, लेकिन सरकार खुद गेस्ट टीचर के साथ एक क्रूर तानाशाह की तरह पेश आ रही है। दिल्ली के गेस्ट टीचरों के साथ सरकार का रवैया कुछ ऐसा है कि लॉकडाउन और कोविड-19 में गेस्ट टीचरों के सामने आर्थिक तंगी जैसे हालात हैं और उधर सरकारनुमा तानाशाह बीन बजा रहा है।
Delhi BJP Chief Manoj Tiwari. Pic: Internet
दरअसल, यह चुनाव का वक्त नहीं है। अगर होता तो हर पार्टी का नेता इनकी बातें कर रहा होता। दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का ड्रामा याद ही होगा आप लोगों को... किस तरह एलजी को ड्राफ्ट भेजा, फिर एलजी ने बोला हमें मिला नहीं...वहीं, दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी तो चुनावों के दौरान गेस्ट टीचरों के हक़ में हाईकोर्ट में पार्टी फंड से केस लड़ने की बात तक कही थी। हालांकि, बकौल इंडियन एक्सप्रेस- मनोज तिवारी ने दिल्ली के एलजी को पिछले सप्ताह एक चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने चिट्ठी में कहा कि केंद्र सरकार और श्रम मंत्रालय पहले ही आदेश जारी कर चुका है कि इस महामारी के दौरान किसी की सैलरी कटौती नहीं की जानी चाहिए। 
तिवारी ने लिखा, “केंद्र सरकार के इन निर्देशों को ध्यान में रखते हुए इस मुश्किल घड़ी में जब तक स्कूल खुल नहीं जाते, तब तक गेस्ट टीचरों को सैलरी दी जानी चाहिए, ताकि वे अपने परिवार का ध्यान रख सकें। लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है। जहां तक मुझे पता चला है कि 11 मई से गेस्ट टीचरों की सेवा खत्म करने के बाद भी कई स्कूलों के प्रिंसिपल गेस्ट टीचरों से बेगारी का काम लेना चाहते/चाहती हैं। उन्हें कई प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन जब उनका कॉन्ट्रैक्ट ही नहीं है, तो फिर स्कूलों के प्रिंसिपल इस तरह का काम कैसे ले सकते हैं? यह है तनाशाही रवैया। लेकिन दिल्ली सरकार को तो बस मतलब है तो खुद की पीठ खुजाने और थपथपाने से।

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