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इस देश की जो सुविधाएं
अमीरों को प्राप्त हैं,वह मेरे देश के गरीबों को भी मिलनी चाहिए।
अगर इन हताश प्रवासी मजदूरों की पीड़ा प्रधानमंत्री की आत्मा को नहीं झकझोर पा
रही है, तो आख़िर क्या बचता है? सऊदी अरब से लोगों को लाने के लिए
पांच उड़ानें...इन मजदूरों के नसीब में हाईवे पर पैदल चलने की मजबूरी है, क्योंकि
प्रधानमंत्री चाहते हैं कि इस देश की जो सुविधाएं
अमीरों को प्राप्त वह मेरे देश के गरीबों को भी मिलनी चाहिए। क्या यही वे सुविधाएं
हैं, जो अमीरों को मिल रही है?
- जो सामान्य व्यक्ति हवाई
चप्पल पहनकर घूमता है, वह मुझे हवाई जहाज में दिखाना है।
यह दोनों ही बयान इसी देश के प्रधानमंत्री के हैं। या तो ये दोनों ही बयान
झूठे हैं या प्रधानमंत्री झूठे हैं। अगर ऐसा भी नहीं है, तो उनके सारे दावे कागज़ी
हैं और बातें बेमानी हैं। इस देश में लॉकडाउन है। बसें बंद हैं। ट्रेन बंद है और बंद
है सारा मुल्क। अगर नहीं बंद है, तो देश के हुक्मरानों के झूठे दावे, झूठा वादा और
दिलासा।
आज सुबह जब आंख खुली, तो खबर 17 मजदूरों के ट्रेन से कटकर होने वाली मौत की थी।
प्रधानमंत्री का ट्वीट था, जिसमें उनका दुख था, लेकिन नहीं था तो मजदूरों का दर्द
समझने वाला दिल। जिन मजदूरों की जांन गई, वे कौन थे? अपने घर ही तो जा रहे थे... ट्रेन की पटरियों पर लेटे थे कि ट्रेन आई और
रौंदती हुई चली गई। पटरियों पर बिखरी सूखी रोटियां बता रही हैं कि आख़िर भूख ने
किस कदर परेशान किया होगा? किन हालातों में अपने घरों के लिए निकले होंगे...
लॉकडाउन से प्रवासी मज़दूरों से सबसे ख़राब स्थिति मजदूरों
की है। न काम है और न ही रहने को छत। फिर किस मुंह से किस सरकार के भरोसे शहरों
में रुके रहें। 45 दिनों से देश बंद है और बंद हैं हुक्मरानों के दिल और
दिमाग। वे नहीं समझना चाहते इनका दुख और दर्द। कोई 100 किलोमीटर पैदल चला जा रहा है, तो कोई साइकल से भागा जा रहा है। पुलिस
लाठियां भांज रही हैं। प्रेग्नेंट महिलाएं हाईवे से सफर ऐसे तय कर रही हों, जैसे
चंद मिनट में रफ्तार उन्हें हजारों मील दूर घर पहुंचा देगी। लेकिन, यह कोई बस नहीं
है और न ही सेना के जहाज, जो विदेशों से अमीरों को लाने के लिए उड़ानें भर चुकी
हैं। यहां पैदल जाना है, रास्ते में भूख को पेट दबाकर मार देना है।
चलते-चलते थक गए...टांगों में दर्द हो रहा है... जब 5-7 की बच्ची... 7-8 साल
का बच्चा... अपने मां-बाप के साथ सड़कों पर यूं ही पैदल निकल पड़े हैं कि आख़िर
कभी तो उस घर को पहुंचेंगे, जहां कोई अपना होगा...इस शहर की अमीरी और सरकारों की
बेरहम नीतियों, झूठ से दूर कोई अपना तो होगा।
आख़िर कौन हैं ये लोग...क्या ये सभी वही हैं, जिसके लिए देश के प्रधानमंत्री
कहते हैं, ‘’इस देश की जो सुविधाएं अमीरों को प्राप्त वह मेरे देश के गरीबों को भी मिलनी
चाहिए’’... क्या ऐसा हो रहा है... उन्हीं की पार्टी का एक मुख्यमंत्री प्रवासी
मजदूरों को अपने घर जाने से सिर्फ इसलिए रोकता है कि उस राज्य के बिल्डर (अमीरों)
कहते हैं कि मजदूर चले गए तो हमारा काम कौन करेगा...फिर इतनी ही चिंता है, तो
मजदूरों का 45 दिनों से ख्याल क्यों नहीं रखा... बेंगलुरु में मजदूर जब कहता है,
हम इन हालातों में रहने की जगह अपने घर पर मरना पसंद करेंगे...कर्नाटक के
मुख्यमंत्री मजदूरों और फंसे लोगों को ले जाने वाली ट्रेन कैंसिल करने का फैसला
करते हैं, तो देश के प्रधानमंत्री का ट्विटर जवाब दे जाता है...प्रवासी मजदूर अपने
राज्यों/घरों को जाने के लिए गुजरात के सूरत में प्रदर्शन करते हैं, तो प्रधानमंत्री
के ट्वीट से देश के इन गरीबों के लिए एक ट्वीट नहीं निकलता...एक शब्द खर्च नहीं
होता।
आख़िर जवाब भी चाहिए, तो बस ट्विटर पर ही क्यों? क्या सरकार ट्विटर के भरोसे चल रही है? अगर चल ही रही है, तो फिर ऐसी तमाम
ख़बरों से हुजूर नावाकिफ तो नहीं ही होंगे कि सात महीने के गर्भवती महिला लगातार 12
घंटे चले जा रही है...न पैसा है और न ही खाना...न सरकार-प्रशासन से कोई मदद। घर कब
पहुंचेंगे, इसका भी कोई अंदाज़ा
नहीं। लेकिन, प्रधानमंत्री का पुराना भाषण याद कीजिए...’मैं चाहता हूं कि इस देश की जो सुविधाएं अमीरों को प्राप्त वह मेरे देश के गरीबों को भी मिलनी
चाहिए।‘ क्या यही सुविधाएं देश के गरीबों को मिल रही हैं?
प्रधानमंत्री की पार्टी के सहयोग से बिहार में सत्ता पर काबिज मुख्यमंत्री और
प्रधानमंत्री की पार्टी का उप-मुख्यमंत्री जबरन 222 मजदूरों को वापस भेज देता है,
ताकि दूसरे राज्यों में श्रमिकों की कमी न हो...जब दूसरें राज्यों से मजदूरों को
अपने गृह राज्य (बिहार) लाने की बात होती है, तो कभी ट्रेन की कमी, कभी बस की कमी,
तो कभी पैसे की कमी का रोना रोती है सरकार...लेकिन लौट चुके लोगों को वापस भेजने
वाली सरकार का मुखिया कैसा है? इस पर उप-मुख्यमंत्री अखबारों में इश्तिहार देकर ढिंढोरा पीटता है कि दूसरे
राज्यों को बिहार की श्रम शक्ति का एहसास हुआ... कैसी सोच है यह? कतई ही गिरी हुई मानसिकता और उससे भी
बदतर कही जाएगी। लेकिन इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
जब प्रधानमंत्री लॉकडाउन का सख्ती से पालन करने की बात कहते हैं, तो उन्हीं की
पार्टी का मुख्यमंत्री (उत्तर प्रदेश) सरेआम उनकी बातों और नियमों की धज्जियां
उड़ाते हुए बसों को दूसरे राज्य में भेजते हैं, ताकि फंसे हुए लोगों को अपने राज्य
ला सकें...दूसरे राज्य का मुख्यमंत्री बंगले झांकता रहता है कि मुझे तो
प्रधानमंत्री की बातों का पालन करना है....केंद्र सरकार के नियमों का हवाला देकर
वह दूसरे राज्यों से अपने लोगों को न बुलाने को लेकर अपनी मजबूरी जाहिर कर देता
है...
बाक़ी जगहों को छोड़ दीजिए देश के दिल दिल्ली में जहां, प्रधानमंत्री निवास के
10 किलोमीटर के दायरे यानी आईटीओ से मजदूरों का एक जत्था पैदल ही बिहार के भागलपुर
जाने के लिए 1000 किलोमीटर से अधिक दूर के सफर पर निकल पड़ता है। लेकिन
प्रधानमंत्री का ट्विटर शांत रहता है... एक शब्द या एक बार भी मुंह से नहीं निकलता
कि मेरे देश के गरीबों मत जाओ...मैं तुम्हारे लिए हर वह इंतजाम करूंगा, जो इस देश
के अमीरों को मिल रहा है...
कहां तो वंदे भारत मिशन के तहत एयर इंडिया की फ्लाइट से सिर्फ एक व्यक्ति को
लेकर सिंगापुर के लिए उड़ान भरता है, लेकिन लाखों बेबस प्रवासी मजदूरों के लिए
चलती भी है, तो क्या...वह ट्रेन जो 40 दिनों बाद चलाने का फैसला लिया गया। वह
ट्रेन जिससे जाने पर किराया खुद उन मजबूरों को देना है, जिनकी नौकरी छीन गई है।
ग़रीब तो ग़रीब है, उसे अमीरों की ऐशो-आराम नहीं बस सम्मान की जिंदगी ही दे
दीजिए प्रधानमंत्री जी। बस इतनी ही गुजारिश है आप से...देश में हर जगह त्राहिमाम
है, कोरोना का संकट बड़ा है, लेकिन इस संकट की आड़ में अव्यवस्था, अराजकता और
अनैतिकता बढ़ रही है।
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