मुल्क का बंटवारा ही है समाधान ।

कल सुबह से ही एक सवाल मेरे जेहन में है, जो काफी परेशान किए हुए है? अगर करता हूं, तो सांप्रदायिक होने का एहसास होने लगता है और नहीं करता हूं तो फ्रसट्रेशन फील होने लगता है। आज रहा नहीं गया। बाक़ी आप सभी जैसा सोचें। बात है तो काफी, नहीं तो थोड़ी पुरानी। इमरान हाशमी को लेकर। महेश भट्ट साहब को लेकर। एक सवाल उन्हे मुंबई में मनपसंद जगह घर नहीं मिल रहा है इसलिए कि वो मुसलमान हैं। हरकोई मुसलमान को शक के नज़रिए से देख रहा है। कहीं वो आतंकवादी तो नहीं। ऐसा इमरान हाशमी ने भी कहा- आई एम नॉट टेररिस्ट। उन्हें लगता है कि लोग सारे मुसलमान को आतंकवादी समझते हैं। इसलिए अपने मोहल्ले में घर नहीं देना चाहते। कई टीवी चैनलों पर इलको लेकर बहस भी हुई नतीजा निकला, हां भेदभाव तो होता है। बिल्कुल होता है मैं भी सहमत हूं, मेरी आंखों के सामने ही मेरे एक मुस्लिम दोस्त को इस तरह की प्रॉब्लम झेलनी पड़ी है। कल आईबीएन-७ पर आशुतोष भी अपने एजेंडा में यही बाक कर रहे थे। लेकिन हुआ यूं कि उनने जितने गेस्ट बुलाए सारे के सारे राष्ट्रवादी निकले। ख़ैर ये एक अलग ही बहस है। एक घर न मिलने की वजह से इतना हो- हल्ला होगा, अचरज की बात है। दरअसल एक मुसलमान को घर नहीं मिला, क्योंकि वह एक मुसलमान है, इसलिए इमरान हाशमी को घर नहीं मिला। इस बात से हंगामा है। शबाना आज़मी और जावेद साहब को घर नहीं मिला क्योंकि वो मुसलमान हैं। तो क्या वो अभी मुंबई से बाहर रह रहे हैं या किसी मुस्लिम सोसायटी में रह रहे हैं। मुंबई में कितनी प्रॉपर्टी है इन लोगों की जो ऐसी बातें कर रहे हैं। ये किसी हिंदू डायरेक्टर या सहयोगी के साथ काम क्यों कर रहे हैं, मुझे तो लगता है कि वहां भी इनको भेदभाव का सामना करना पड़ता होगा। अल्पसंख्यक होने की वजह से फिल्म इंडस्ट्री में भी इनके आरक्षण मिलना चाहिए। हर चौथी फिल्म में एक एक्टर और एक्ट्रेस मुस्लिम होंगे। मान लीजिए यदि ऐसा होने लगे तो देश का क्या होगा? इससे किसी को क्या मतलब। भांड़ में जाए देश।

आज देश की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है। ऐसे में हर किसी को मनमाफिक जगह पर घर मिलना मुमकिन तो नहीं। फिर मजहब के नाम पर इस तरह का खेल खेलना कितना जायज है? छोटी-मोटी पब्लिसिटी के लिए इस तरह के कारनामें कितना ख़तरनाक है, शायद उनको इस बात का एहसास तक नहीं है। इसी तरह आगर देखा जाए तो कोई ये भी कह सकता है कि बिहारी होने के नाते मेरे साथ दिल्ली, मुंबई, गुजरात गोवा आदे में भेदभाव होता है, नौकरी नहीं मिलती, घर नहीं मिलता, लोग बिहारी कहकर ग़ाली देते हैं। ये हक़क़ीत भी है। इस तरह से देखा जाए तो देश किस हिसाब से एकजुट है। कर दीजिए देश के टुकड़े-टुकड़े। मौक़ा भी सुनहरा आ रहा है- पंद्रह अगस्त। गांधी, नेहरू और सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद के अरमानों को उनके साथ ही दफ़न हो जाने दीजिए। सबसे कम उम्र में फांसी के फंदे पर झूलने वाले ख़ुदीराम बोस, भगत सिंह, सुभाषचंद्र, अशफ़ाक़उल्ला की कुर्बानियों से हमें क्या लेना ? जीने दीजिए सभी को अपने-अपने ढंग से, आख़िर हरएक को जीने का हक़ जो है। क्योंकि हरकोई उत्तरदायित्व के कंधे पर बस हक़ की गोली चलाना ही तो चाह रहा है।

14 comments:

  1. एक विचारणिय लेख है ......पढकर बहुत अच्छ लगा....एक सार्थक पोस्ट....बधाई

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  2. चन्दन जी मै आपके बात से बिल्कुल सहमत हुं, मेरा भी मानना है कि इस धर्म के खेल को खत्म करना होगा।

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  3. मैं न हिंदू न मुसलमान मुझे जीने दो ,
    दोस्ती है मेरा ईमान मुझे जीने दो ,
    कोई आहेसान न करो मुझ पे तो आहेसान होगा ,
    बस इतना करो आहेसान मुझे जीने दो ||

    बढ़िया लिखा दोस्त , पर यकीन जानो एक और बटवारा ?????????????????
    मेरे होते कभी नहीं , मेरे बाद पता नहीं ???

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  4. bhai mere blog par ek aavshayak suchana hi padh kar samarthan dene ki kripa karen.

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  5. पलटू दास का एक दोहा आपको समर्पित कर रहा हूँ.

    डाल डाल अल्लाह लिखा...
    पाट पाट पर राम...
    कौन चिरैया असगुन बोली...
    जंगल जला तमाम ...

    वल्लभ
    http://puranidayari.blogspot.com/

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  6. पात पात होना चाहिए था ....सौरी...
    वल्लभ
    http://puranidayari.blogspot.com/

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  7. मिथिलेश जी आपने बिल्कुल सही बात कही है, आख़िर धर्म के नाम इस तरह का खेल कब तक चलता रहेगा....कोई-न-कोई तो रास्ता होगा...........और हम सभी को उसी के बारे में सोचने चाहिए बजाए, इन बांटने वाली बोतों को करने के....

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  8. बेहद अच्छे ख़यालात लगे आपके ...हम 'धरम ' शब्द का अर्थ ही भूल ..साम्प्रदायिक ता पे आ गए ...

    "अच्छा है अभीतक तेरा कोई नाम नही है ,
    इंसान को जो तक़सीम करे , वो इल्ज़ाम नही है .."
    (शायद कुछ अल्फाज़ आगे पीछे हुए हैं..लेकिन मतलब सरल है..)

    'धूल का फूल ' में ये गीत था ..मुखडा है ,
    "तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा ,
    इंसान की औलाद है इंसान बनेगा "

    "धर्म ' शब्द का मूल अर्थ है ,कुदरत के नियम ( स्वभाव धर्म..जैसे अग्नी का धर्म है,जलना और जलाना),जो हरेक के लिए यकसाँ होते हैं ..ये विभाजन जो 'लाशों 'के कफ़न बेचने वालों ने किया है ..

    एक नम्र निवेदन है ..क्या आप मेरा एक आलेख,'प्यारकी राह दिखा दुनियाको' इसे निम्न ब्लॉग पे पढेंगे? मुझे बेहद खुशी होगी...'मेरी आवाज़ सुनो' ये लेखभी है...जो मुंबई बम धमाकों के बाद लिखा था..

    http://lalitlekh.blogspot.com

    या फिर :

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    'एक हिन्दुस्तानी की ललकार फिर एकबार"( काव्य रचनाएँ..एक साथ ३..एक on line बहस में जवाब के तौरपे लिखी गयीं थीं..)

    http://kavitasbyshama.blogspot.com

    शुक्रिया,इतनी संजीदगी से लिखने के लिए...

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  9. बहुत-बहुत धन्यवाद शमां जी...........

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  10. सर नमस्ते,
    आप मेरे ब्लॉग पर आये और टिप्पणी दी इस के लिए मैँ कृतज्ञ हूँ. सर आप के साथ जो ब्लागर भाई जुडे हैं उनको ये बात फारवर्ड कर के एक माहोल बनाया जाये और एक उचित व्यक्ति को या तो वोट द्वारा या निर्विरोध चुन लिया जाये.

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  11. मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा

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  12. HO SAKTA HAI KISI NA KISI KO KABHI KOI DIKKAT AAYE HO...PAR IS BAAT KO SAAMPRADAIK RANG DENA GALAT HAI.....KISI KE SAATH BHI AISAA HO SAKTA HAI.....

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  13. जी दिगम्बर जी, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं,,,,,,,,इस तरह की बेतों जो चंद लोगों के साथ हो जाती हैं, उसे ऐसा बता देना कि सारा माहौल ही ख़राब हो जाए, ऐसी कोशिश नहीं होनी चाहिए

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