कुछ यूं तय की अपनी ज़िंदगी, मैंने.........

ज़िंदगी का कुसूर था कुछ ऐसा,
कि बस न मिलेगा सुकुन मेरे रूह को
ऐसा एहसास था, पता नहीं क्यूं
शायद मैं क़ाबिल नहीं तुम्हारे....
फिर भी, सासों की खुशबू ही काफी है,
तुम्हारे एहसास के लिए।


दिल की हर धड़कन के साथ तड़पता हूं,
अब तो बस तेरी यादों के साये में,
जीता हूं न मरता हूं...
हरपल एक कशिश को सीने से लगाए रहता हूं।



इबारत क्यों भला उस ख़ुदा की,
माना पनाह दी है, ज़िदगी तो नहीं,
गर ज़िंदगी दी तो मक़सद तो नहीं,
आज रूकसत कर रहा हूं,
अपने हबीब को, ये सोचकर...
शायद जिंदगी ने यही फ़ैसला किया है,
मेरी तन्हाइयों के लिए........

11 comments:

  1. वाह भाई वाह बहुत अच्छे भाव हैं। लाजवाब रचना। बधाई

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  2. धन्यवाद मिथिलेश भाई............

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  3. आज रूकसत कर रहा हूं,
    अपने हबीब को, ये सोचकर...
    शायद जिंदगी ने यही फ़ैसला किया है,
    मेरी तन्हाइयों के लिए........
    sach behtarin,bahut hi gehre bhav hai,kuch zindagi ke faisle shayad achhe ke liye hote hai.sunder rachana badhai

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  4. अपनी तन्हाई से बाहर निकल कर देखिये ...खुदा की इबादत करने को सैकडों वजहें निकल आयेंगी ..!!

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  5. ना खुदाने सताया...
    ना खुदाने सताया
    ना मौतने रुलाया
    रुलाया तो ज़िन्दगीने
    माराभी उसीने
    ना शिकवा खुदासे
    ना गिला मौतसे
    थोडासा रेहेम माँगा
    तो वो जिन्दगीसे
    वही ज़िद करती है,
    जीनेपे अमादाभी
    वही करती है...
    मौत तो राहत है,
    वो पलके चूमके
    गेहेरी नींद सुलाती है
    ये तो ज़िंदगी है,
    जो नींदे चुराती है
    पर शिकायतसे भी
    डरती हूँ उसकी,
    गर कहीँ सुनले,
    पलटके एक ऐसा
    तमाचा जड़ दे
    ना जीनेके काबिल रखे
    ना मरनेकी इजाज़त दे....
    शमा
    Behad sundar rachna hai aapki..,aapke liye meree ye,tuchh-see rachna pesh kar rahee hun..

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  6. बहुत-2 शुक्रिया शमाजी

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  7. धन्यवाद संगीता जी...................बहुत-2 धन्यवाद

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  8. bahut hi badiya likha hai chandan.......mann khus kar diya tumne to..

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