ए कॉल टू जिन्ना

आप सोच रहे होंगे जसवंत सिंह के साथ ये कौन है, ये हैं वो आतंकवादी जिसपर न जाने किरने बेग़नाहों का क़त्ल करने का इल्जाम है, जिसे छोड़ने कंधार गए थे, जसवंत सिंह जी।
अब बात जसवंत सिंह को उनके कारनामे के लिए सम्मानित करने का सिलसिला शुरू हो चुका है। शायद एक मुख्य धारा की पार्टी में रहते हुए भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाने की उनकी कवायद रंग लाने लगी है। जी हां, उनको सम्मानित करने का फ़ैसला किया है, ऑल इंडिया मुसलिम मज़लिस ने। इसके उपाध्यक्ष यूसुफ हबीब औऱ प्रवक्ता बदरकाजमी ने कहा कि जसवंत सिंह ने वो काम किया है जिसे कांग्रेस हमेशा से अपमानित करती आई है। उनका कहना था कि जसवंत सिंह ने जिन्ना की एक सही तस्वीर पेश की जिसे कभी कोई हिंदुस्तानी समझ ही नहीं पाए...इस तरह की और तमाम बातें मुस्लिम मजलिस ने कही, जिसे दोहराना शायद मुनासिब नहीं क्योंकि बात फिर अपनी ही थाली में छेद करने वाली हो जाएगी।
लेकिन इन सब के बीच जो एक बात सोचने वाली है कि आखिर बीजेपी के ही नेता जिन्ना को महान और सेक्युलर बनाने पर क्यों तुले हुए हैं। और जब भी ऐसा होता है, पार्टी अपने को उससे अलग कर लेती है और व्यक्तिगत मसला बताकर किनारा कर लेती है। लेकिन सोचने वाली बात है कि बीजेपी में कैसे व्यक्ति हैं कि उन्हें अपनी बात कहने के लिए भी व्यक्तिगत होना पड़ता है, ख़ैर ये बात वो व्यक्ति नहीं कहता है कि ये मेरी व्यक्तिगत सोच है, जो सारा बखेड़ा खड़ा करता है।

अगर जसवंत सिंह जिन्होंने एक अलग ही इतिहास लिखने का काम किया है , यदि उनके इतिहास पर नज़र डालें, तो नेशनल डिफेंस अकादमी का एल्युमिनाई, जिसने देश की सेवा एक विदेश, वित्त और रक्षा मंत्री के तौर पर की। सबसे बड़ी बात ये कि जसवंत सिंह बीजेपी के भीतर सबसे प्रभावशाली शख़्सियत हैं जिनका बैकग्राउंड आरएसएस से नहीं है। हो सकता है शायद इसीलिए ऐसी हिमाकत की हो, जिन्ना को महान बताने की जबकि आडवाणी का हश्र वो देख चुके थे। अब इनका क्या होगा राम जाने। इसके पहले भी सुर्ख़ियों में आने के लिए जसवंत जी किताबें लिखते रहे है- ए कॉल टू ऑनर को कौन भूल सकता है, जब उन्होंने पीएम ऑफिस में जासूस होनी की बात कहकर सनसनीख़ेज ख़ुलासा किया था, जिसे वो कभी भी सच साबित नहीं कर सके। इस बार उन्होंने कोशिश नहीं बकायदा बताया है कि नेहरू और सरदार पटेल विभाजन के लिए कसूरवार थे और सारा दोष जिन्ना के उपर गढ़ दिया गया। साथ ही जिन्ना और गांधी के विचारों की समानता की भी बात की है। शायद उम्र की इस दहलीज पर कुछ करने को था नहीं, पार्टी पहले ही लुटपिट चुकी है, राज्यसभा में विपक्ष के नेता का पद भी हाथ से चला गया सो लगे जिन्ना का जिन्न बोतल से निकालने। अब होगा क्या , शायद रामजी अयोध्या से आकर कुछ करें तो बात बने।

और बात बन ही गई, जसवंत सिंह को आख़िरकार बीजेपी से चलता कर ही दिया गया। बड़े बेआबरू होकर पार्टी से निकलना पड़ रहा है।

4 comments:

  1. फिर आया जिन्ना का भूत।
    ( Treasurer-S. T. )

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  2. bade beaabru hokar tere kuche se hum nikle ab jasvant ki baari hai.......

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  3. Nice Article.

    पाखी की दुनिया में "बाइकिंग विद् पाखी" http://pakhi-akshita.blogspot.com/

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