नक्सलियों का तांडव और सरकारी मुआवजा















छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों की कारस्तानी सभी ने देखी। देश के 76 सपूत शहीद हो गए। ऐसी वारदात के बाद इनके परिजनों के लिए सरकार मुआवजे की घोषणा जरूर करती है। एक तरह से मरे हुए लोगों की कीमत तय करती है। यानी मुर्दे की कीमत भी हमारे यहां ही तय होती है। जिनका सम्मान और ख्याल सरकार उनके जीते जी नहीं कर पाती मरने के बाद सहानुभूति के तौर पर मुआवजा देकर उनके मौत की कीमत लगाती है। मरने के बाद इन लोगों का हिसाब किताब लगाया जाता है। बिल्कुल बनिए की तरह। खून की कमत तय करके दे दी जाती है। कुछ इस तरह... नक्सली हमले में मारे गए सीआरपीएफ के सभी 75 जवानों के परिजनों को केंद्र सरकार ने 15-15 लाख रुपये की मुआवजा राशि देने की घोषणा की। गृह मंत्रालय ने कहा कि हर मृतक जवान के परिवार को 38 लाख रुपये से अधिक की सहायता प्रदान की जाएगी, जिसमें केंद्र सरकार की तरफ से 15 लाख रुपये की अनुग्रह राशि, सीआरपीएफ जोखिम कोष से 10 लाख रुपये, राज्य सरकार की तरफ से तीन लाख रुपये की अनुग्रह राशि, राज्य सरकार की तरफ से नक्सल निरोधी अभियान के लिए योजना के तहत 10 लाख रुपये और सीआरपीएफ केंद्रीय कोष से 60 हजार रुपये की राशि शामिल है। जो घायल होकर अस्पताल में हैं उसे भी सरकार कुछ न कुछ जरूर देगी। इस तरह हो गया हिसाब साफ!

इसके बाद सरकार मुमकिन है नक्सलियों के बारे में मिली खुफिया जानकारी को नजरअंदाज किए जाने के चलते हुई इस बर्बर कांड के बारे में जांच कमीशन भी बिठा दे कि आखिर चूक (चिदंबरम ने कहा ह कि कहीं न कहीं चूक हुई है) कहां और किन अधिकारियों से हुई। जांच कमीशनों का क्या इतिहास रहा है हमारे यहां सभी को मालूम है। पर जब सरकार कोई जांच कमीशन बिठाती है तो लगता है वह किसी अद्भुत चीज को खोजना चाहती है। जैसे कि यह समस्या या नक्सली कहीं कंदराओं में रहते हैं या उनसे जुड़े लोग इस तरह की कुख्यात वारदात क अंजाम देकर बरमूडा ट्रैंगल में छिप जाते हैं और फिर बाहर निकल आते हैं। हालांकि वहां से कोई कभी वापस नहीं आता। सरकार ने भी ऑपरेशन ग्रीन हंट शुरू किया ही, अब और तेज करेगी वह अभियान। हवाई हमले हो या न हो पर अभी भूमिका कुछ उसी तरह की बांधी जा रही है। पर असली समस्या और उसके समाधान की ओर किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा है। जबकि न जाने सरकार और नक्सली दोनों से ही ओर से खेले जाने वाले खूनी खेल में कितने ही मांओं ने अपने बेटे गंवा दिए, पत्नियों ने मांग की सिंदूर पोछ डाली, बहनों ने राखी खरीदना छोड़ दिया और बेटा अनाथ कहलाने लगा। सारी समस्या पर मुझे नागार्जुन की चंद पंक्तियां याद आती हैं......

देश हमारा भूखा-नंगा घायल है बेकारी से,

मिले न रोजी -टी भटके बने दर-दर भिखारी से,

स्वाभिमान सम्मान कहां है, होली है इंसान की,

बदला सत्य, अहिंसा बदली, लाठी-गोली डंडे हैं,

कानूनों की सड़ी लाश पर प्रजातंत्र के झंडे हैं।

4 comments:

  1. चंदन भई को नमस्‍कार. बहुत बढिया है आपकी त्‍वरित टिप्‍पणी. ये उम्‍मीद तो थी ही. ये नक्‍सलबाद सरकार की ही देन है. ऑपरेशन ग्रीन हंट का नतीजा है. अपने पांव पर कुलहाडी मार रही थी सरकार. जड को तो समझने की कोश‍िश की नहीं. खैर आपकी छोटी गली, छोटी गली नहीं रही, बडी हाइवे पकडने लगी. जनसत्‍ता, हरभूमि, डेली न्‍यूज आदि में अपनी छाप छोडने लगी. ये उत्‍साह बरकरार रखिएगा.

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  2. आपकी दी हुई पंक्तियां देख कर गोपाल सिंह नेपाली की एक कविता की कुछ पंक्तियां याद आ रही है- ओ राही अगर दिल्‍ली जाना तो कहना अपनी सरकार से, चर्खा चलाता है हाथों से, शासन चलाता है तलवार से.

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