इस मातम का कोई नाम नहीं

एक गरीब ने दूसरे गरीब की हत्या कर डाली। पहला हिंसक होकर अपने शोषण का बदला लेना चाहता है। पर अब वह अपने पाक मकसद से भटक चुका है। दूसरा उसे मारना नहीं चाहता। पर हुक्म की तामील करना उसका काम है। उसी से उसकी रोजी-रोटी चलती है। नक्सलियों ने जो दंतेवाड़ा में किया उसे किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता है। 76 आरपीएफ के जवानों की निर्मम मौत का कोई जस्टीफिकेशन नहीं हो सकता है। फिर भी कुछ तबका और बुद्धिजीवी वर्ग उसे सही ठहरा रहे हैं। पिछले दिनों नक्सली हमले में देश के अलग-अलग इलाकों के 76 बेकसूर और गरीब परिवारों ने अपने बेटे-पति-पिता-भाई को गंवाया है। इसके बावजूद यदि इस घटना को जस्टीफाई करने की कोशिश की जाती है तो यह निहायत ही मानसिक दिवालियापन के अलावा कुछ भी नहीं हैं। वह भी मानसिक तौर पर बीमार हो चुके हैं। दिल्ली के बौद्धिक और सबसे बेहतर सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एक में कुछ छात्रों ने इसी तरह का कुछ कारनामा किया। टीवी चैनलों पर भी इस तरह की बहस में कुछ लोग इसे सही ठहराते दिखे। इनके समर्थकों का कहना था कि राज्य ने जो अत्याचार और नरसंहार इन गरीब आदिवासियों पर किया है, उसका क्या जवाब हो सकता है? हां, यह बिल्कुल सच है कि राज्य का अत्याचार कहीं भी कम नहीं है, चाहे आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक या फिर राजनीतिक अत्याचार हो, राज्य का शोषण बर्दाश्त से बाहर है। फिर भी इस बिनाह पर भला 78 निर्दोष जवानों की मौत को कैसे सही ठहराया जा सकता है। जरा कोई मोतिहारी के उस परिवार के पास जा कर देखे कि उस परिवार की क्या हालत है, जिसने अपना सबकुछ गंवा दिया। परिवार की रोजी रोटी का जरिया गंवा दिया। लोग कहते हैं सरकार ने मुआवजा दिया। पर मुआवजा ही इसका समाधान है क्या? इसी तरह लखनऊ के उस परिवार के दर्द को तो बांटे, उस बेटे को तो कोई समझाए जो परीक्षा दे रहा था, परीक्षा की वजह से अपने पिता को आखिरी बार देखने के लिए कितना तड़पा? राजस्थान के उस परिवार और बाप को समझाए, जिसने अपने बेटे को काफी अरमानो से ऑफिसर बनाने के जिद ठानी थी। क्या इसी दिन के लिए कि कोई उसकी मौत को जस्टीफाई करे? हालांकि यह सही है कि सरकार में बैठे हुक्मरान अभी भी इस समस्या को सही तौर पर समझने को तैयार नहीं हैं। वह जनाक्रोश पैदा कर हिंसक लडाई लड़ने को उतावले हो रहे है। सरकार को समझना चाहिए कि यह समस्या उसी की गलत नीतियों और शोषण का नतीजा है। जिसका खामियाजा बेकसूर और गरीब लोग भोग रहे हैं। आरपीएफ के जवानों की तनख्वाह न तो आर्मी जैसी होती है और न ही इन्हें उस तरह की सुविधा दी जाती है। इनकी ट्रेनिंग के नाम पर सरकार तमासा करती रहती है। बगैर आधुनिक हथियार दिए मौत के मुंह में झोंक देती है।

1 comment:

  1. बगैर आधुनिक हथियार दिए मैत के मुंह में झोंक देती है।
    bahoot khoob

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