26 मार्च और पाकिस्तान

दोस्तों यह लेख पकिस्तान के जीओ टीवी के कार्यकारी सम्पादक हामिद मीर की रचना है। मैंने बस उसे हिंदी में तर्जुमा किया है। मीर साहब से मैंने इसकी इजाज़त नहीं ली। इसकी वजह मेरे पास उनका कोई कॉन्टैक्ट नंबर या पता नहीं था। फिर भी मै इसे उन्ही के नाम से यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ। बारह सौ शब्दों का है इसलिए दो भागों में यहाँ आपके सामने पेश करूँगा। भूल चूक लेनी-देनी...

26 मार्च पाकिस्तान के लिए क्यों माफी दिवस होना चाहिए?
पाकिस्तान के मशहूर टीवी पत्रकार हामिद मीर के मुतिबक, मार्च 1971 में बांग्लादेश में नरसंहार की वारदात को अंजाम देने की वजह से पाकिस्तान सरकार को बांग्लादेश की आवाम से माफी मांगनी चाहिए। 26 मार्च को माफी दिवस के तौर पर मनाया जाना चाहिए। मीर ने कहा कि पाकिस्तान में कुछ लोग मुझसे बेहद नफरत करते हैं। वह मुझसे नफरत करते हैं, क्योंकि दो बरस पहले, मैंने पाकिस्तानी 1971 में सेना की क्रूरता के लिए बांग्लादेशियों से इस्लामाबाद प्रेस क्लब में माफी मांगी थी। वे मुझसे नफरत करते हैं क्योंकि मैंने 1971 में बांग्लादेशियों के साथ सेना की निर्मम और क्रूर कार्रवाई के लिए पाकिस्तान सरकार से भी आधिकारिक तौर पर माफी मांगने की मांग की थी। वे कहते हैं कि मुझे कुछ मालूम नहीं है। वे कहते हैं, मैं एक पाक पाकिस्तानी नहीं है। उनके मुतिबक, 1971 में मैं बहुत छोटा था और मैं हक़ीक़तों से वाक़िफ नहीं हूं। हां, यह सच है कि तब मैं एक छोटा स्कूली बच्चा था, लेकिन मैंने उस नरसंहार के बारे में काफी कुछ सुना और पढ़ा है। भला मैं अपने अब्बा, जो एक प्रोफेसर थे और उन्होंने अक्टूबर 1971 में पंजाब विश्वविद्यालय के छात्रों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ ढाका गए थे, उनकी बातों को कैसे नकार सकता हूं? मेरे अब्बा लाहौर के पंजाब विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के शिक्षक थे। विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनसे छात्रों के प्रतिनिधिमंडल के साथ तुर्की जाने की तैयारी करने को कहा था, लेकिन उन्होंने अपनी इच्छा के मुताबिक लड़कों को ढाका ले गए। वे जानना चाहेत थे कि आखिर ढाका में क्या चल रहा था। मुझे अब भी याद है, ढाका से लौटने के बाद वह कई दिनों तक रोए थे। उन्होंने हमें उस खूनी वारदात की कहानियां बताई थीं। वे कहानियां मेरी मां की कहानी से बिल्कुल मिलती जुलती थी। 1947 में जम्मू से पाकिस्तान में माइग्रेशन के दौरान मेरी मां ने अपने पूरे परिवार को गंवा दिया। उनकी आंखों के सामने हिंदू और सिखों ने उनके भाइयों की हत्या कर दी। उनकी मां का अपहरण कर लिया गया। अपने संबंधियों के शवों के नीचे छिपकर उन्होंने अपनी जान बचाई। मुझे याद है कि मेरी अम्मी खूब रोई थीं, जब अब्बा ने उन्हें बताया कि पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों ने कई बंगाली महिलाओं के साथ बलात्कार किया। मेरी अम्मी ने कहा था, हमने अपने सम्मान के लिए कुर्बानियां दीं, लेकिन क्यों हम एक-दूसरे की इज्जत से खिलवाड़ कर रहे हैं? मेरे अब्बा हमेशा कहा करते थे कि बंगालियों ने पाकिस्तान बनाया और पंजाबियों ने उसे तोड़ा। एकबार उन्होंने कहा कि 23 मार्च को हम पाकिस्तान दिवस के तौर मनाते हैं, 26 मार्च को माफी दिवस हना चाहिए और 16 दिसंबर जिम्मेदारी दिवस के तौर पर मनाया जाना चाहिए। जब 1987 में, मैं पत्रकार बना तो अपने मैंने अपने मरहूम अब्बा के विचारों को समझना शुरू किया।
जब मैंने पहली बार हमूदुर रहमान आयोग की रिपोर्ट पढ़ी तो मुझे शर्मिंदगी का एहसास हुआ। इस पाकिस्तानी की आयोग की रिपोर्ट में बांग्लादेशियों की हत्या और बलात्कार की बात कबूली गई थी। पर इस कागजी सबूत के बावजूद पाकिस्तान में अब भी कई लोग हक़ीक़त को झुठलाते रहे हैं और वे स्टेट ऑफ डिनायल में जी रहे हैं। वे कहते हैं कि शेख मुजीब-उर-रहमान एक देशद्रोही थे, जिन्होंने भारत की मदद से मुक्तिवाहिनी सेना बनाई ओर कई निर्दोष पंजाबियों और बिहारियों को मौत के घाट उतारा। मैं कहता हूं शेख मुजीब पाकिस्तान मूवमेंट के कार्यकर्ता थे। 1966 तक वह मुहम्मद अली जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना के समर्थक थे। उन्होंने महज कुछ प्रांतीय स्वायत्ता मांगी थी, लेकिन सैन्य शासकों ने उन्हें देशद्रोही घोषित कर दिया। दरअसल, ये सैन्य शासक ही देसद्रोही थे, क्योंकि इन सैन्य शासकों की सेना ने उनकी अपनी मां और बहन का बलात्कार किया। कुछ पाकिस्तानी कहते हैं कि मैं झूठा और पाकिस्तान का दुश्मन हूं। भला मैं पाकिस्तान का दुश्मन का कैसे हो सकता हूं? मेपी मां ने पाकिस्तान के लिए ही अपने पूरे परिवार की कुर्बानी दी। मेरी समस्या यह है कि मैं हक़ीक़त को नहीं झुठला सकता। उसे नहीं नकार सकता।

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