पाकिस्तानी मीडिया में हिन्दू

भारत में बमुश्किल ही नामचीन उर्दू अख़बारों के बारे में किसी को जानकारी होगी। मुझे भी बहुत कम उर्दू अखबारों के नाम मालूम हैं। आज के समय में यह सौ फीसदी सच है, यदि किसी को अपनी आवाज़ उठानी हो तो उसे अपना माध्यम चाहिए। शायद यही वजह है कि वक़्त-वक़्त पर मुसलमान अपने लिए अलग राजनीतिक दल और मीडिया की मांग करते हैं। ताकि सत्ता के शीर्ष तक उनकी बात भी पहुँच सके। ताकि वह अपनी बात ज़ोरदार तरीके से सभी के सामने रख सकें।

हम सभी जानते हैं, पकिस्तान एक मज़हबी मुल्क है। एक इस्लामिक मुल्क है। वहा हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों से हमारे मीडिया की खबरें अटी-पड़ी होती है, लेकिन हालात बिलकुल ऐसे भी नहीं। ज़रा पाकिस्तान की यह खबर पढ़िए और खुद ही फैसला कीजिये। पाकिस्तान के सिंध से हिंदू समुदाय के लिए एक समाचार पत्र निकलता है। सिंध के हैदाराबाद से निकलने वाले इस साप्ताहिक समाचार पत्र का नाम 'संदेश' है। अख़बार के संपादक हरजी लाल जी हैं। हरजी लाल ने इसे शुरू किया तो बताया कि जब सिंध में कोई हिंदू लड़की का बलात्कार होता है तो सिंधी अख़बार खबरों के नाम पर महज खानापूर्ति खानापूरी करते हैं और उसे भूल जाते हैं। यह भी नहीं बताते कि गुनहगार पकड़ा गया या नहीं। वह कहते हैं, पिछले साल दिसंबर में कस्तूरी कोहली नामक एक लड़की का बलात्कार हुआ तो मीडिया में यह खबर तो थी लेकिन, अनमने ढंग से खबर छपी और मामला रफा-दफा। इसी तरह कुछ महीने पहले सिंध में ही जब एक हिंदू परिवार ने अपनी तीन बेटियों के साथ ख़ुदकुशी की तो मीडिया ने इस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन संदेश ने इस ख़बर को बढ़ते अंधविश्वास के रुप में अच्छी खासी जगह दी. यह खबर भारतीय मीडिया में भी छाई रही यानी आपके पास माध्यम हो तो हरकोई आपकी बात सुनाने को मजबूर होता है। नहीं तो सभी आपको गूंगा समझते रहते हैं। रही बात पाकिस्तान की तो, यहाँ लगभग 20 लाख हिंदू हैं। इनमें 12 लाख से अधिक सिंध प्रांत में रहते हैं। इनकी समस्याएं भी गंभीर हैं। मुसलमान भी इन अखबारों को शक की नज़र से देखते हैं। हिन्दू समुदाय के लिए शुरू इस अखबार के लोग कहते हैं कि जब से पाकिस्तान बना है कभी कोई दलित हिंदू देश के खिलाफ़ किसी कार्रवाई में शामिल नहीं रहा है। फिर भी हिंदुओं को ग़द्दार समझा जाता है। बाबरी मस्जिद भारत में गिरती है पर इसका मलबा पाकिस्तानी हिंदुओं पर गिरता है। इस तरह यह अखबार सही मायनों में पत्रकारिता का कम कर रही है। वह महज मजहब या किसी की बदनीयती को आधार बनाकर नहीं, बल्कि मुद्दों के आधार पर अपने काम में मशगूल है।

चलते-चलते यही कि समाचार पत्र आर्थिक ज़रूरतों के अभाव में अपनी आखिरी सांसे गिन रहा है।

3 comments:

  1. यह खबर बताना कौनसे अखबार मैं छपी थी

    'दंगे के धंधे की कंपनी' श्रीराम सेना पैसे पर कराती है हिंसा?
    http://anjumsheikh.blogspot.com/2010/05/blog-post_16.html

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  2. अख़बार ही नहीं साडी दुनिया में इंसानियत,सच्चाई और ईमानदारी अंतिम सांसे गिन रही है / इसे हम सब के एकजुटता के प्रयास से ही बचाया जा सकता है ,आप भी कुछ प्रयास कीजिये / इस पोस्ट को पढिये और इंसानियत की मदद कीजिये -http://jantakifir.blogspot.com/2010/05/blog-post_17.html

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