शादी भी नेशनल फेस्टिवल से कम नहीं

अगले महीने बहन की शादी है। घर में बहुत ही उल्लास और हंसी-खुशी का माहौल होगा। मैं थोड़ी देर से घर पहुंचने वाला हूं। वजह नौकरी। पर इन बातों को छोड़िए। शादी के गीतों को सुनकर एक अजीब सा रोमांच मन में पैदा हो रहा है। आज शारदा सिन्हा की आवाज में भोजपुरी विवाह गीत सुन रहा था।किस तरह शादी के तमाम रस्मों और रीति रिवाजों को एक गाने में समा दिया गया है, देखकर बेहद ताज्जुब होता है। मन बिल्कुल भावुक हो उठा। हल्दी और तमाम रिवाजों को देखते-सुनते हुए मन भावनाओं के समंदर में गोते लगाने लगा। शादी महीने भर बाद होनी है। पर सारा दृश्य आंखों सामने घूम गया। हमारे यहां शादी किसी नेशनल फेस्टिवल से कम नहीं होता। वैसे भी भारत को त्योहारों का देश कहा गया है। यहां शादी के पहले मड़वा मटकोर का रस्म होता है। यह शादी के ठीक एक दिन पहले होता है। माड़ो यानी घर के आंगन में एक छप्पर बनाया जाता है। इसमें बांस के आठ और आम का एक खंभा होता है। शादी के एक दिन पहले इसी में हल्दी और उससे जुड़ी रिवाजों को पंडित जी शास्त्रों के मुतिबक करवाते नजर आते हैं। दुनिया बदल गया। ग्लोबलाइजेशन की भनक गांवों तक पहुंच गई। काफी कुछ वहां भी बदल गया। लेकिन नहीं बदली तो हमारी वहीं संस्कृति-परंपराएँ। अब शादी की बात चल ही पड़ी है तो हरियाणा में एक ही गोत्र में शादी पर उठे बवंडर से सभी वाकिफ होंगे। मैं इस मामले में ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहूंगा बस इतना कि खाप पंचायतें एक ही गोत्र में शादी को सामाजिक तौर पर गलत और पाप मान रहे हैं। उन्हें लगता है कि समान गोत्र में शादी से वंशावली पर प्रतिकूल असर पड़ता है। पर जरा सोचिए जब दुनिया की उत्पत्ति हुई थी तो कितने लोग जीवित थे। जैसा कहा जाता है। सिर्फ दो। मनु और श्रद्धा या एडम और ईव। उन दोनों से ही आज पूरी दुनिया की आबादी अपने संक्रमण या विकास की अवस्था से आगे बढ़ती हुई अरबों तक पहुंच चुकी है। सोचने की बहात यह है कि गोत्र पर विवाद खड़ा करने से पहले हमें सोचना चाहिए हम कहां से चले थे और कहां तक आ गए हैं। यानी सबका वंशज एक है। शादी एक बंधन है लोग कहते ते, पर इनकी फैसलों को देखकर वाकई लगता है, बंधन है। जब आप अपनी जिंदगी का फैसला नहीं कर पा रहे हैं तो यह क्या है?

4 comments:

  1. बहुत बहुत बधाइयाँ !!

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  2. सही कहा!!


    बहन की शादी के लिए बहुत बधाई एवं मंगलकामनाएँ.

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